कोचिंग माफिया व निहित स्वार्थों से बचो (अग्नि) वीरो
अग्निपथ के विरोध में देश भर में युवा सड़क पर उतर गए और विपक्ष ने मौके को लपकने के अंदाज में विरोध के सुर में सुर मिलाया। युवाओं के मामले में कह सकते हैं कि ज्यादातर पथविचलित और दिग्रभमित हैं क्योंकि इनमें से ज्यादातर को इस योजना के मंतव्य और इससे होने वाले लाभ के बारे में पता ही नहीं है। विपक्ष का इरादा स्पष्ट है कि इस कथित असंतोष का भरपूर फायदा उठाया जाए और मोदी सरकार को अस्थिर करने की कोशिश की जाए। वह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के हर सुधारवादी कदम का विरोध करके उन्हें वापस करवाना चाहती है ताकि मोदी सरकार की नैतिक शक्ति क्षीण हो और वह सुधारों से हिचक जाए जिसका लाभ उठाकर विपक्षी दल अपने सत्ता-प्रस्थान को आसान कर सकें।
किसान कानूनों को वापस करवाने को वह अपनी कामयाबी मानता है। उसका प्रकारांतर से यह भी इरादा है कि मोदी सरकार को एक लचीली सरकार ( साफ्ट स्टेट) में तब्दील हो जाए जिसके कारण उसका रुतबा कम हो। कांग्रेस की सारी सरकारें सॉफ्ट स्टेट रही हैं जिसके कारण कई सुधार लागू नहीं हो सके और प्रशासनिक प्रभाव पैदा नहीं हो पाया। केन्द्र सरकार ने कुछ मौकों पर कहा भी है कि पिछले सत्तर सालों में कई मामले दरी के नीचे खिसकाकर रखे गए। समस्याओं की अनदेखी के कारण ये दृश्य-अदृश्य रूप में और ज्यादा पेचीदी हो गईं हैं।
अग्निपथ योजना भी एक प्रयोगशील और गतिशील सरकार का सुधारवादी कदम है। सेनाओं में जड़़ता को समाप्त करना और पारंपरिक तौर-तरीकों में तब्दीली समय की जरूरत है और सेना तथा सैन्य विशेषज्ञों के परामर्श पर इसे तैयार किया गया। रविवार को तीनों सेनाओं के प्रतिनिधियों ने पत्रकार वार्ता करके योजना की अच्छाइयों को देश की जनता के सामने रखा है। इसके अलावा सैन्य विशेषज्ञों की विभिन्न समाचार माध्यमों के जरिये सामने आ रही राय में भी यही पक्ष उभरकर आ रहा है।
यही नहीं, आप समाचार पत्रों के संपादकीय व आलेखों को देख लीजिए। सभी ने इसकी खूबियों का समर्थन किया है। कुछ आशंकाएं व प्रश्न हर अच्छी-बुरी योजना को लेकर हो सकते हैं जिनमें कुछ भी गैरवाजिब नहीं है। उन्हें उठाना चाहिए लेकिन विपक्ष तो इसे वापस लेने की ही बात कर रहा है। यही नहीं, युवाओं को भड़काया जा रहा है। रविवार को कांग्रेस की महासचिव प्रियंका वाड्रा ने अग्निपथ योजना को राष्ट्रविरोधी करार देते हुए कहा कि इसके जरिये भारत की सशस्त्र सेनाओं और युवाओं को खत्म किया जा रहा है। प्रियंका का यह अतिवादी बयान है। उनके भाई राहुल गांधी भी ऐसे ही अतिरंजित बयान देते हैं। इस बयान से श्रीमती वाड्रा सेना को भी राष्ट्रविरोधी होने के दायरे में लाने की अविवेकपूर्ण गलती कर रही हैं।
जहां तक युवाओं को भड़काने की बात है तो कई घटनाओं की पड़ताल से यह स्पष्ट हो गया है कि वे बहकाए गए। अग्निपथ विरोधी आंदोलन बिहार से शुरु हुआ जहां सबसे बड़ा दल उन्हें लगातार उकसा रहा है। इसके बाद विभिन्न प्रदेशों में सड़कों पर कौन लोग उतरे? उनकी प्रोफाइल देखें तो यही पता चलता है कि यह एक गुमराह या बहकाया गया समूह था। मध्यप्रदेश के ग्वालियर अंचल और बिहार में कोचिंग संचालकों का स्पष्ट हाथ निकलकर आया। ग्वालियर में एक कोचिंग संचालक के खिलाफ इस मामले में प्रकरण भी दर्ज किया गया है।
उप्र के अलीगढ़, राजस्थान के सीकर और बिहार के मसौढ़ी में भी प्रशासन को ऐसे ही सूत्र हाथ लगे हैं। सैन्य मामलों के विभाग में अतिरिक्त सचिव लेफ्टिनेंट जनरल अनिल पुरी ने खुद कहा कि अग्निवीर योजना के खिलाफ प्रदर्शनकारियों को विरोधी ताकतों और कोचिंग संस्थानों ने उकसाया। उन्होंने कहा कि कोचिंग संस्थानों में अध्ययन कर रहे 70 प्रतिशत युवा गांवों से हैं। वे कर्ज लेकर पढ़ाई कर रहे हैं। उन्हें कोचिंग संस्थानों ने आश्वासन दिया था और सड़कों पर उतारने में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। किसी योजना का विरोध करना लोकतांत्रिक अधिकार है किंतु हिंसा और सार्वजनिक संपत्ति का नुकसान करना किसी भी उस संगठन या संस्था का काम नहीं हो सकता जो लोकतांत्रिक प्रक्रिया में विश्वास रखता है। विपक्षी दलों ने योजना का विरोध किया है लेकिन युवाओं को हिंसा से परहेज करने के लिए पुरजोर तरीके से बोलने से हिचकते रहे हैं।
उल्टे उनकी ओर से उकसाने वाले बयान ही आते रहे हैं। मोदी सरकार द्वारा चौंकाने वाली तात्कालिकता के साथ योजनाओं को लागू करने और विपक्ष से अपेक्षित व वांछित विमर्श नहीं करने की शिकायत हो सकती है किंतु उसके कारण अराजकता पैदा कर सरकार को विवश करने की रणनीति दूरगामी हित में नहीं है। मोदी सरकार के हर बड़े फैसले के समय सड़कों की राजनीति की जा रही है जिसमें उपद्रव, हिंसा और असामाजिक गतिविघियों के शामिल होने पर कोई गुरेज नहीं किया जा रहा है। राजनीतिक हितों के लिए यह देश के हितों की अनदेखी करना है। जहां तक कांग्रेस का सवाल है तो वह अपनी कमजोरियों को ढांपकर मोदी विरोध के सहारे अपनी डूबती नैया को पार लगाना चाहती है जिसमें वह विवेक खोकर काम करती प्रतीत होती है। इसी वजह से देश की यह पुरानी पार्टी अपने सिद्धांतों से समझौता कर रही है।
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इससे उसे कितना नुकसान हो रहा है, यह अब आकलन करने की जरूरत नहीं है, बहुत स्पष्ट हो चुका है। वह अपनी तरफ से कोई आंदोलन खड़ा नहीं कर सकी है अपितु किसी अन्य शक्ति के द्वारा खड़े किए गए आंदोलन में कूदती है और इन आंदोलन के दिशाहीन होने पर ठीकरा उस पर फूटता है। इस तरह उसे न माया मिलती है, न राम। बदनाम वहीं होती है। देशवासियों को देखना होगा कि सरकार के सॉफ्ट स्टेट होने से समस्याएं बढ़ी हैं जिनका खामियाजा खुद लोग उठा रहे हैं। इससे लोकतंत्र के नाम पर कई राजनेता, राजनीतिक दल व समूह बेजा फायदा उठा रहे हैं और लोकतंत्र व गणतंत्र को कमजोर कर रहे हैं। इसलिए कुछ मामलों में हार्ड स्टेट को स्वीकार करना सीखना होगा। अग्निवीर योजना के लाभों की यहां चर्चा करने के लिए स्थान नहीं है किंतु यह एक सुधार है जिसके बारे में युवाओं को जानने देना चाहिए। युवाओं को भी देर तक गुमराह नहीं किया जा सकता। मोदी सरकरु को इसके साथ आगे बढ़ना चाहिए।