
शक्ति उपासना के महापर्व नवरात्री में गरबा की आड़ में फूहड़ता, धर्म से भटकते आयोजनों से बचें
गुना से गौरव भट्ट
नवरात्रि का पर्व शक्ति उपासना और भक्ति का समय है। परंतु शहरों में हो रहे गरबा-डांडिया आयोजनों ने इस पवित्र परंपरा का स्वरूप बदल दिया है। जगह-जगह लगे प्रचार पोस्टर और आयोजकों की तैयारी बताती है कि इन आयोजनों में धर्म की जगह फूहड़ता, दिखावा और व्यवसाय हावी हो रहा है।
साल भर मंदिर का रुख तक न करने वाले लोग अचानक बड़े आयोजक बन जाते हैं। उनके पोस्टरों पर धार्मिक भावनाओं के बजाय फिल्मी हस्तियों और चमचमाते विज्ञापनों की भरमार होती है। स्थानीय नागरिकों का कहना है कि गरबा अब भक्ति का मंच नहीं, बल्कि मनोरंजन और पैसे कमाने का जरिया बन गया है।
माता को चाहिए भक्ति, न कि दिखावा
माता रानी को न तो चमचमाते कपड़े चाहिए, न महंगे मेकअप और न ही छोटे परिधान। उन्हें चाहिए सात्विक भक्ति और श्रद्धा। लेकिन आज गरबा आयोजनों में “पापा की परी” और “मम्मी का मुन्ना” फैशनेबल कपड़े और ब्राइडल मेकअप कर पहुंचते हैं। ऐसे आयोजनों में माता की उपासना पीछे छूट जाती है और फूहड़ता सामने आ जाती है।
गरबा की आड़ में बढ़ती लंपट संस्कृति
गरबा-डांडिया अब युवाओं के लिए मिलने-जुलने और असामाजिक गतिविधियों का अड्डा बनते जा रहे हैं। स्कूल-कोचिंग से निकलकर होटल-कैफे कल्चर में रहने वाले युवक-युवतियां यहां वर-वधु की तरह सज-धजकर आते हैं। धार्मिक आस्था की आड़ में यह आयोजन लंपटों को भी आकर्षित करते हैं।
धार्मिक स्वरूप से भटकाव
अनेक आयोजनों में धार्मिक संतों या विद्वानों की जगह फिल्म और टीवी कलाकारों को बुलाया जाता है। प्रचार सामग्री में उनके बदन दिखाऊ फोटो छापे जाते हैं, जिनका धर्म से कोई संबंध नहीं होता। यह न केवल माता की उपासना का अपमान है, बल्कि समाज में अश्लीलता और नैतिक पतन को भी बढ़ावा देता है।
माता-पिता को रहना होगा सजग
विशेषज्ञों का कहना है कि माता-पिता को अपने बच्चों पर विशेष ध्यान देना चाहिए। यदि अचानक बेटा या बेटी गरबा की तैयारी के लिए मेकअप, महंगे कपड़े और पैसों की मांग करे, तो सतर्क हो जाएं। अगर बच्चा सात्विक भाव से, शालीन कपड़े पहनकर पूजा-अर्चना कर गरबा में जाता है तो यह उचित है, लेकिन फैशन और दिखावे के लिए गरबा में जाने पर मामला केवल भक्ति का नहीं रह जाता।
गरबा का असली स्वरूप
गरबा मूल रूप से मां दुर्गा की आराधना का लोकनृत्य है। इसमें भक्त गोल घेरे में दीपक रखकर देवी की स्तुति करते हैं। इसका उद्देश्य शक्ति की भक्ति और आध्यात्मिक साधना है। परंतु आज के आयोजनों में डीजे, महंगे टिकट, चमक-दमक और फूहड़ता ने इस परंपरा को विकृत कर दिया है।
गरबा-डांडिया का आयोजन यदि शुद्ध सात्विक भाव और धार्मिक परंपरा के अनुसार हो तो समाज को जोड़ने वाला सुंदर माध्यम बन सकता है। लेकिन जब इसमें राजनीति, धंधा और अश्लीलता हावी हो जाए, तो यह धर्म का अपमान और समाज के लिए कलंक बन जाता है।




