Azhar Hashmi : दुआओं से भरे हुए थे हाशमी जी

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Azhar Hashmi : दुआओं से भरे हुए थे हाशमी जी

डाॅ.मुरलीधर चाँदनीवाला

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‘मुझको राम वाला हिन्दुस्तान चाहिए’ और ‘बेटियाँ पावन दुआएँ हैं’ जैसे अमर गीतों के रचनाकार अज़हर हाशमी जी नहीं रहे। उन्होंने आज शाम छः बजे रतलाम के निजी अस्पताल ‘आरोग्यम्’ में शरीर छोड़ दिया।

रतलाम जैसा छोटा शहर भारत भर में हाशमी जी के कारण ही पहचान में आया था। हाशमी जी मूलतः तो राजस्थान के झालावाड़ जिले के ग्राम पिड़ावा के थे, लेकिन वे स्कूली और उच्च शिक्षा के बाद पूरी तरह से रतलाम में ही रच-बस गये। उनकी परवरिश एक सूफी संत के परिवार में हुई, जिसका परिणाम यह है कि हाशमी जी सूफी कवि थे, सूफी लेखक थे। उनके विचारों के शिल्प में गीता और कुरान के जोड़ साफ-साफ दिखाई देते हैं। हाशमी जी जितने अधिकार से गीता पर व्याख्यान देते रहे, उतने ही अधिकार से कुरान शरीफ पर। वे प्रेम और सद्भाव को गाते थे, मनुष्यता का स्वर बनाते थे, करुणा के शब्द बुनते थे, धूमिल होती जा रही समाज की संरचना में अपनेपन के सुनहले रंग भरते थे
प्रोफेसर अजहर हाशमी विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन से वर्ष 1972 में राजनीतिशास्त्र में स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त कर महाविद्यालय में प्राध्यापक नियुक्त हुए। वे अपने अध्यापन में जान डाल देने वाले अनूठे प्राध्यापक तो थे ही, विद्यार्थियों से तादात्म्य बनाकर जादू बिखेरता भी जानते थे। पचास बरस पहले पढ़ाये गये उनके पाठ आज तक उनके छात्र नहीं भूले हैं।

हाशमी जी गोपालदास नीरज, शिवमंगलसिंह’सुमन, अटलबिहारी वाजपेयी, शरद जोशी, बालकवि बैरागी सहित राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय कवियों के चहेते थे, और उनके साथ मंच साझा कर चुके थे। उनकी व्यंजनाएँ बहुत मौलिक होती थीं, और कभी-कभी बहुत मारक भी होती थीं।

अज़हर हाशमी ने बहुत लम्बी-लम्बी कविताएँ या गद्य नहीं लिखा। उन्होंने आजीवन छुटपुट ही लिखा, लेकिन खूब जमकर लिखा। उनकी कविताएं पाठ्यपुस्तकों में हैं, पढ़ाई जाती हैं। उनके लेख, टिप्पणियाँ, वैचारिक स्तंभ जब भी पत्र-पत्रिकाओं में आते थे, धूम मच जाती थी। वे बहुत निर्भीक होकर लिखने वाले साहित्यकारों में गिने जाते रहे। वे सफल गीतकार थे, सफल व्यंग्यकार थे, सफल वक्ता थे, लेकिन एक अलग विशेषता, जो उनके नाम पर दर्ज है, वह है उनका एक योग्य शिक्षक होना। उनके जितने भी शिष्य हैं, वे हाशमी जी को गुरुवर के रूप में ही पूजते रहे हैं। उनके विद्यार्थी जहाँ भी रहे, अपने गुरु के प्रति सहज श्रद्धा भाव से भरे रहे। उनसे बहुत अधिक उम्र के नेता और अधिकारी, शिक्षक और छात्र, कवि और लेखक हाशमी जी के आगे शीश झुकाते थे।

अज़हर हाशमी जी सर्वथा एक मौलिक व्यक्तित्व के धनी थे। वे सबसे अलग, सबसे निराले बना रहे। अपने व्याख्यान में वे साधिकार मौलिक स्थापनाएँ करते थे। व्याख्यान देते वक्त वे एक-एक श्रोता को अपने साथ जोड़ने की कला में भी माहिर थे। वे सबको ऊँचा उठा देने वाले ऐसे आचार्य थे, जिस पर गर्व करने वालों की संख्या का अनुमान लगाना कठिन है। हाशमी जी के साहित्यिक रिश्ते देशभर में कहाँ-कहाँ, किस-किस से जुड़े हैं, इसका अंदाजा लगाना मुश्किल है।

रतलाम में वे जहाँ रहते थे, वह एक बहुत ही छोटा सा घर है, मुश्किल से दो कमरों का। उनका घर किताबों का घर हैं। सच कहा जाये, तो वे अपने घर में नहीं, किताबों के घर में रहते थे। किताबों से घिरा रहने वाला यह शख्स आगन्तुकों की दिल से अगवानी करता था। हाशमी जी ने विवाह नहीं किया, अकेले ही रहे, लेकिन कितने-कितने परिवारों को रस से सींचा है उन्होंने, यह कौन नहीं जानता। उनके घर आकर कोई भी आज तक खाली हाथ नहीं गया। वे अपने शिष्यों पर दोनों हाथों से लुटाने वाले अनोखे गुरु थे। उनके पास जब भी कोई गया, कम से कम एक पेन तो उपहार में लेकर ही लौटा, साथ में और भी बहुत कुछ। उनके घर आने वाले की बिदाई भी खास अंदाज में होती थी। हाशमी जी द्वार से बाहर सड़क तक चले आते हैं अपने आशीषों से लबरेज करते हुए।

हाशमी जी के पास कार नहीं थी। बरसों तक वे अपनी छोटी सी लूना पर चलते रहे, लेकिन अपने परिचितों को आकाश में उड़ते हुए देखना चाहते रहे। घर-संसार नहीं फैलाया, लेकिन जन-जीवन से भरे हुए संसार को इज्जत दी, उसे प्रेम से सींचा। वे ज्योतिष के अच्छे जानकार हैं, कुछ मंत्रसिद्धियाँ भी थीं उनके पास, जिनका उपयोग वे सबकी भलाई के लिये करते देखे गये। हाशमी जी अपने पास कुछ भी नहीं रखते थे। उनके पास जो कुछ भी था, सब न्यौछावर करने के लिये था।

हाशमी जी महाविद्यालय में राजनीतिशास्त्र के प्रोफेसर रहे। कई युवाओं के जीवन की दिशा बदली है उन्होंने। जिन युवाओं की पीठ पर हाशमी जी का हाथ था, वे अब भी स्वयं को अपराजेय मानते हैं। हाँ, हाशमी जी बहिर्मुखी थे, अत्यंत लोकप्रिय थे, सबको अपनी ओर आकर्षित कर लेते थे, मिलने के लिये हाथ आगे बढ़ाते थे। ये सब वे गुण हैं, जो हाशमी जी ने अर्जित किये हैं।

विगत कुछ महीनों से हाशमी जी गम्भीर रूप से अस्वस्थ चल रहे हैं। पिछले वर्ष इन्हीं दिनों वे बहुत गम्भीर रूप से अस्वस्थ हुए, लेकिन वे अप्रत्याशित रूप से स्वस्थ भी हो गये थे। इस बार स्थिति कुछ विकट थी। एक महीने से हाशमी जी रतलाम स्थित आरोग्यम् हॉस्पिटल में थे, और अब अपने पैतृक निवास पर जाने की जिद पर थे। आज जब उन्होंने शरीर छोड़ा, तब वे वे किसी सूफी संत या सद्गुरु की श्रेणी में पहुँचे हुए लग रहे थे।

हाशमी जी कल तक आगन्तुकों से साहित्य की चर्चा करते रहे। कल शाम अस्पताल के कमरे में ही उनके गीतों की महफिल भी सजी हुई देखी गई। किरण छाबड़ा और संगीता जैन ने हाशमी जी को उनके ही लिखे गीत गाकर सुनाकर मंत्रमुग्ध कर दिया। भी उनसे साहित्य की चर्चा होती रही। हास्पिटल में उनके दोनों छोटे भाई पिछले कई दिनों से उनकी देख-रेख कर रहे थे, लेकिन स्वयं हाशमी जी सबके लिये दुआएँ करते देखे गये।

प्रोफेसर अजहर हाशमी ने पचहत्तर शरद-वसंत देखे। वे संत कबीर के मिजाज वाले कवि थे, कबीर जयंती के दिन ही अनंत में विलीन हो गये।

डाॅ.मुरलीधर चाँदनीवाला,रतलाम 

 

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