लोगों की जान पर भारी पड़ने लगी है MP में ‘बाबागिरी’

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लोगों की जान पर भारी पड़ने लगी है MP में ‘बाबागिरी’

 

मध्यप्रदेश में ‘बाबागीरी ‘ लोगों की जान पर भारी पड़ने लगी है लेकिन भक्तिभाव में डूबी सरकार और विपक्ष मौन है. प्रशासन की रीढ़ गायब हो चुकी है और कोई कुछ करने के लिए तैयार नहीं है .धर्म के नाम पर दुकानें सजाने के लिए न किसी लायसेंस की जरूरत है और न कोई कर देने की जरूरत .लोग मरते हैं तो मरते रहें. कुबेरेश्वर में कहते हैं कि 10 लाख लोग आ गए थे।

छतरपुर जिले के बागेश्वर धाम और सीहोर जिले के कुबेरेश्वर धाम में इन दिनों मेले लगे हैं. दोनों ही धामों में अराजक व्यवस्था की वजह से दो महिलाओं की मौत हो गयी और तीन हजार से ज्यादा लोगों को अस्पतालों में भर्ती करना पड़ा।

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जिलों की पुलिस और प्रशासन अतीत से भी सबक नहीं लेता और तथाकथित धर्म के ठेकेदार गरीब जनता की जिंदगी से खिलवाड़ करने को स्वतंत्र हो जाते हैं .

पिछले साल भी कुबेरेश्वर धाम के आयोजकों ने शिवरात्रि के समय अराजकता फैलाई थी। फ़लस्वरूप भोपाल- इंदौर हाइवे पर कई घंटे तक न सिर्फ यातायात बाधित हुआ था बल्कि लोगों को भी परेशानी का सामना करना पड़ा था .मजबूरन इस जमावड़े को बीच में ही बैरंग कर दिया गया था .

कुबेरेश्वर धाम पर कोई पंडित प्रदीप मिश्रा अपनी दुकान सजाते हैं. दुनिया को भगवान शिव से मिलाने का दावा करने वाले प्रदीप का लड़का पिछले साल परीक्षा में असफल हो चुका है .

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प्रदीप मिश्रा प्रशासन के लिए पूज्य इसलिए हैं क्योंकि मुख्यमंत्री से लेकर तमाम मंत्री-विधायक उनके यहां माथा टेकने जाते हैं .प्रशासन मजबूरी में मिश्रा जी की सेवा के लिए विवश होता है. इंतजाम करता है जबकि माल कूटते हैं मिश्रा जी .इस बार मिश्रा जी रुद्राक्ष के नाम पर माल कूट रहे थे .उनके यहां भीड़ कीड़े-मकोड़ों की तरह उमड़ती है. पानी की एक बोतल 50 रूपये में बिकने लगती है. पार्किंग व्यवस्था नाकाम होने पर लोग हाईवे पर अपने वाहन खड़े कर देते हैं और पुलिस तापती रह जाती है ,जबकि होना ये चाहिए की इस नितांत निजी आयोजन के लिए पुलिस और प्रशासन को अपनी हर सेवा का न सिर्फ पैसा वसूलना चाहिए बल्कि कोई भी गड़बड़ी होने पर आयोजकों के खिलाफ दंडात्मक कार्रावाई करना चाहिए.

अराजकता की वजह से कुबेरेश्वर धाम में एक महिला की जान चली गयी और तीन हजार से ज्यादा लोग बीमार हो गए .लेकिन प्रशासन हाथ पर हाथ धरे बैठा रहा. पुलिस घिघियाती रही .

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सवाल ये है कि क्या प्रशासन मिश्रा जी को इतनी भीड़ जमा करने की इजाजत देता है ? क्या पुलिस मिश्रा जी से सुरक्षा प्रबंधों के बारे में कोई शपथपत्र लेती है या मुफ्त में सारी सेवाएं दी जाती हैं. कुबेरेश्वर का जमावड़ा न भाजपा की विकासयात्रा है और न सरकार का कोई कार्यक्रम ,जो पूरा प्रशासन और पुलिस यहां जी-जान से जुटी रहती है ,फिर भी व्यवस्थाएं सम्हालने में नाकाम रहती है .

कुबेरेश्वर की ही तरह बागेश्वर धाम में मेला लगा है .लाख-दो लाख लोग यहां पहुँच रहे हैं . सरकारी जमीनों पर अतिक्रमण कर लगा है.पार्किंग के नाम पर अवैध वसूली हो रही है.हारी-बीमारी से राहत पाने के लिए लोग अस्पताल जाने के बजाय इन धामों में आ रहे हैं .लोगों की जान जा रही है लेकिन कोई कुछ करने वाला नहीं,क्योंकि बागेश्वर का शास्त्री हर सरकारी शास्त्र से ऊपर हो चुका है. उसके पास पक्ष -विपक्ष को वश में करने की तमाम ताकत हनुमान जी की कृपा से आ गयी है .सरकारें सामूहिक कन्या विवाह में शास्त्री को तवज्जो दे रहीं हैं .मुख्यमंत्री और पूर्व मुख्यमंत्री शास्त्री के सामने नतमस्तक हैं .

इस तरह के आयोजनों का विरोध करना अपने आपको काफिर साबित करना है .

प्रदेश में स्कूली बच्चों के लिए ये परीक्षा का समय है लेकिन पुलिस इन आयोजनों में लगे ध्वनि विस्तारक यंत्रों को बंद करने में नाकाम है। पूजाघरों पर लगे ये यंत्र सुबह ब्रम्ह मुहूर्त से शुरू होकर आधी रात तक ध्वनि प्रदूषण फैलाते हैं लेकिन किसी को बच्चों की चिंता कहाँ है ? सबको बाबाओं की फ़िक्र है.उनके काम में खलल नहीं पढ़ना चाहिए,अन्यथा ये बाबा पुलिस,प्रशासन,सरकार और विपक्ष की ठठरी बाँध और बंधवा सकते हैं .भीड़ तो पहले से इनकी मुठ्ठी में है .

शिवरात्रि हो या नवरात्रि ,ईद हो या मिलादुन्नवी सभी मौकों पर ये अराजकताएँ सामने आती हैं. धर्म पूजाघरों से निकलकर सड़कों पर आ गया है ,लेकिन कहीं कोई रोकटोक नहीं .आप सड़कों पर नमाज पढ़िए या महा आरतियां कीजिये किसी में साहस नहीं की कोई आपको टोके.लोकतंत्र का असली सुख ये धर्मप्रभु ही उठा रहे हैं .इन आयोजनों के जरिये रातोंरात मालामाल हुए बाबाओं,शास्त्रियों,मौलवियों के यहां कोई आयकर सर्वे नहीं हो सकता .

 

मध्यप्रदेश में धार्मिक स्थलों पर अराजकता और हादसों का लंबा इतिहास है लेकिन प्रदेश की सरकार और प्रशासन ने इनसे कोई सबक नहीं लिया. सरकार और विपक्ष को इस अराजकता में अपने वोटर दिखाई देते हैं और प्रशासन के अधिकारियों को अपनी नौकरी प्यारी लगती है.आखिर कौन पंगा ले इन ढोंगियों से ? एक दशक पहले दतिया के रतनगढ़ में भीड़ की वजह से एक पुल टूटा था और कोई सौ से ज्यादा लोग मर गए थे .उज्जैन तो इस तरह के हादसों का पुराना अड्डा है अब तो बागेश्वर धाम और कुबेरेश्वर धाम ने उज्जैन के महाकाल को भी पीछे छोड़ दिया है .महाकाल के पास कोई शास्त्री या मिश्रा नहीं है .उन्हें अपनी प्रतिष्ठा खुद बचाये रखना पड़ती है .अब महाकाल का प्रबंधन खुद प्रशासन के हाथ में है.

प्रदेश में जगह-जगह प्रकट हो रहे धामों की अराजकता रोकने के लिए अब एक ही विकल्प है कि सरकार इन सभी नए धामों के लिए लायसेंस प्रथा शुरू करे और हर जगह प्रशासन के हाथों में प्रबंधन सौंपे .इन ठिकानों से होने वाली आमदनी को प्रदेश के विकास ,स्वास्थ्य ,तथा चिकित्सा और शिक्षा जैसे कामों में खर्च करे.

मुझे तो लगता है कि लूट के ये अड्डे सरकार के कर्ज का बोझ भी कम करने की क्षमता रखते हैं . समय रहते यदि प्रशासन और सरकार न चेती तो भीड़ के ये नए नाभि केंद्र बहुत बड़ी समस्या का रूप ले लेंगे .

@ राकेश अचल