बाबूमोशाय, जिंदगी बड़ी होनी चाहिए, लंबी नहीं…” 

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बाबूमोशाय, जिंदगी बड़ी होनी चाहिए, लंबी नहीं…” 

कौशल किशोर चतुर्वेदी

जिंदगी में अगर सकारात्मकता है तो कोई समस्या नहीं हो सकती। एलन मस्क हों, रतन टाटा हों या फिर कोई दूसरे सफल चेहरे, सकारात्मक भाव ही उनकी सफलता का राज है। सकारात्मकता किताब पढ़ने से नहीं आती है बल्कि अभ्यास करने से ही आती है। यह अभ्यास मुश्किल नहीं है। डेढ़ मिनट का अभ्यास आपको सकारात्मक बना सकता है। तो शुरू करें अभ्यास। सैकड़ों की संख्या में लोगों ने सहमति जताई। और अभ्यास शुरू हो जाता है।

“सभी लोग अपनी आंखें बंद कर लीजिए। गहरी सांस लीजिए। सांस पर पूरा ध्यान केंद्रित कीजिए। बस तीस सेकंड और बचे। कल्पना कीजिए कि 18 अप्रैल 2026 को आप क्या कर रहे होंगे। आपके मन में दस विचार आएंगे। कोई एक विचार को प्राथमिकता से चुन लीजिए। और विजुअलाइज कीजिए कि एक साल बाद आप कहां होंगे। आपके मन की कौन सी इच्छा पूरी होगी। अब दोनों हाथों को रगड़ कर आंखों पर रखिए। और आंखें खोल लीजिए।”

अब बताईए किसी के मन में कोई नकारात्मक विचार आया। सभी का जवाब था नहीं। और इस अभ्यास में शामिल मेरा भी यही मत था। और यह अभ्यास कराने वाले थे प्रख्यात मैनेजमेंट गुरु एन. रघुरमन। जिन्होंने डेढ़ मिनट के अभ्यास में यह साबित कर दिया कि सकारात्मक होना कितना आसान है। कार्यक्रम था आरोग्य भारती भोपाल महानगर के मासिक प्रबोधन का। और प्रबोधन का विषय था “स्वास्थ्य प्रबंधन से जीवन प्रबंधन”। मैनेजमेंट गुरु ने यह सिद्ध कर दिया कि अगर भाव सकारात्मक हैं तो जीवन प्रबंधन श्रेष्ठतम रहेगा और तब स्वास्थ्य के प्रबंधन की चिंता ही नहीं करनी पड़ेगी। नकारात्मक भाव को पास भी न आने दो। आने की कोशिश भी करे तो उसे पूरी तरह से रिजेक्ट कर दो। इस बात को उन्होंने मेडिकल साइंस की भाषा में समझाते हुए दिमाग के तीन हिस्सों पीछे का हिस्सा, बीच का हिस्सा और सामने का हिस्सा यानि फ्रंटल माइंड की थ्योरी भी समझाई। और फ्रंटल माइंड को सकारात्मकता का भंडार बताया। अभ्यास से इसका पूरा अनुभव भी किया जा सकता है। तो उन्होंने सुबह जल्दी उठने का महत्व भी बताया कि वह चार बजे उठते हैं, रतन टाटा चार बजे उठते थे। और टाटा कहते थे कि वह दूसरे लोगों से एक घंटा आगे चल रहे हैं। सुबह उठना जीवन में समस्याओं का अंत करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है। रात में सोते समय आप पांच बातें सोच लें और सुबह आपको उनका जवाब मिल जाएगा। और सुबह उठकर सबसे कठिन कार्य को सबसे पहले खत्म कर व्यक्ति दिनभर को आसान बनाकर दूसरों से आगे हो जाता है। दिल से चाहने पर यह सभी संभव है। “ओम शांति ओम” फिल्म में शाहरूख खान का डॉयलाग जब उन्होंने शुरू किया तो सभी विद्यार्थियों को जुबानी याद था। डॉयलाग यह है कि “कहते हैं अगर किसी चीज़ को दिल से चाहो तो पूरी कायनात उसे तुमसे मिलाने की कोशिश में लग जाती है।”

अब मुख्य वक्ता के बाद बारी आई अध्यक्षीय उद्बोधन की। तब प्रमुख सचिव स्वास्थ्य संदीप यादव ने माइक संभाला। और साझा किया कि एन रघुरामन के बाद उनके बोलने और सुनने का कार्यक्रम औपचारिकता है। पर जब उन्होंने बोलना शुरू किया तो युवा, बड़े और बुजुर्ग सभी तालियां बजाकर सकारात्मक प्रतिक्रिया देते रहे। उन्होंने परिवार की खुशहाली के लिए स्वस्थ रहने को अनिवार्य बताया। और स्वस्थ रहने पर ही श्रेष्ठतम जीवन प्रबंधन संभव है। उन्होंने आनंद फिल्म का एक बेहतरीन डॉयलाग सुनाया कि “बाबूमोशाय, जिंदगी बड़ी होनी चाहिए, लंबी नहीं”। और यह सुनकर तालियों की गड़गड़ाहट से सभागार गूंज गया। संदीप यादव ने बताया कि “स्वास्थ्य ही जीवन की असली पूंजी है। मध्यप्रदेश सरकार स्वास्थ्य के क्षेत्र में बहुआयामी प्रयास कर रही है, जिसमें आधुनिक चिकित्सा पद्धतियों के साथ-साथ आयुर्वेद, योग, नेचुरोपैथी जैसी भारतीय चिकित्सा पद्धतियों को भी समान महत्व दिया जा रहा है। स्वस्थ समाज के निर्माण में जनजागरूकता की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है, और इस दिशा में आरोग्य भारती का योगदान अत्यंत सराहनीय है। तो डॉ. अशोक कुमार वार्ष्णेय ने आरोग्य भारती के माध्यम से देशभर में चल रहे स्वास्थ्य जागरूकता अभियानों की विस्तार से जानकारी दी। उन्होंने बताया कि कैसे यह संगठन जनसामान्य को जीवनशैली संबंधी छोटे-छोटे बदलावों के माध्यम से दीर्घकालिक स्वास्थ्य लाभ देने हेतु प्रयासरत है।

तो वर्तमान समय में जब जीवन भागदौड़ और तनाव से भरा हुआ है, ऐसे में स्वास्थ्य और सकारात्मक सोच के महत्व को समझना पहले से कहीं अधिक आवश्यक हो गया है। तो आओ सब मिलकर सकारात्मक सोच बनकर जीवन, देश और प्रदेश को शिखर पर ले जाने की तैयारी करते हैं…आरोग्य भारती का आभार, जिसने प्रबोधन के जरिए “स्वास्थ्य प्रबंधन से जीवन प्रबंधन” की राह दिखाई। अगर व्यक्ति स्वस्थ है तो जिंदगी वाकई बड़ी होती है, लंबी नहीं हो पाती

…।