बहुत गरजे पर नहीं बरस पाए बदरा…
पंद्रहवीं विधानसभा का अंतिम सत्र। सत्र के पहले गर्जना बहुत हुई। सत्र पांच दिन का था। विपक्ष की शिकायत थी कि पांच दिन के छोटे सत्र का मतलब ही क्या? ज्यादा दिन का सत्र बुलाने से आखिर डरती क्यों है सरकार? वैसे तो इसका जवाब देकर सत्र से पहले ही विधानसभा अध्यक्ष गिरीश गौतम कांग्रेस को आइना दिखा चुके थे। उनका कहना था कि कांग्रेस ने पंद्रहवीं विधानसभा में जब पंद्रह महीने राज किया, तब कितने लंबे सत्र बुलाए? विधानसभा अध्यक्ष की कांग्रेस को नसीहत और सीधा सा मतलब यही था कि पहले अपने गिरेबान में झांक लो, फिर किसी और पर कीचड़ उछालो यारो। सत्र मानसूनी था, सो रुक-रुककर ही सही उम्मीद यही थी कि खूब देर तक बादल बरसते रहेंगे।
जनहित के मुद्दे विधानसभा में इधर से उधर दौड़ लगाते रहेंगे और लहराते रहेंगे। पर यह सब दिवास्वप्न ही साबित हुआ। कहने को तो सत्र दो दिन तक चला। पर दो दिन में सत्र ढाई घंटे चलकर अनिश्चित काल के लिए विराम हो गया। बहुत उम्मीद थी कि पांच दिन का सत्र जनहित के मुद्दों पर समय कम पड़ने की शिकायत संग संपन्न होगा। पर न शिकायत, पर पूरा गिला कि थोड़ा सा तो कुछ और ठहरते सत्र। जनहित के मुद्दे पर आवाज रिकॉर्ड बनकर अपने बहुत सारे निशान तो छोड़ जाती। पर उधर नाथ मौन थे और इधर सत्र ज्यादा साथ नहीं दे पाया। 11 जुलाई को शुरू और 12 जुलाई 2023 को अनिश्चित काल के लिए स्थगित।
सांख्यिकी पर नजर डालें तो पांच दिन की जगह दो दिन और हर दिन दस-बारह घंटे की जगह दो दिन में बस ढाई घंटे। सत्र से पहले विधानसभा अध्यक्ष का यह दर्द मुनासिब ही था कि सदस्य चाहें तो पांच दिन में पंद्रह दिन की भरपाई कर सकते हैं वरना पंद्रह दिन का सत्र भी पंद्रह घंटे में ही खत्म हो जाए तो ऐसे दिनों की गिनती से क्या पेट भर जाएगा जनता का। जिनकी गाढ़ी कमाई से सत्र हर पल सांसें लेता है।
तो पांच बैठकें प्रस्तावित थीं, दो हो पाईं और तीन निरस्त करनी पड़ीं। स्थगन की 37 सूचनाएं प्राप्त, सभी 37 अग्राह्य। नियम 267-क के अधीन 67 सूचनाएं प्राप्त, 20 सदन में पठित और 47 अग्राह्य। ध्यानाकर्षण की 368 सूचनाएं प्राप्त, 20 ग्राह्य लेकिन 9 शामिल और तीन शून्य काल में परिवर्तित, बाकी 356 अग्राह्य। हालांकि शासकीय काम पूरा हो गया। सातों विधेयक पारित हो गए। अनुपूरक बजट पारित हो गया। और उधर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के सामने नाथ और कांग्रेस राहुल गांधी के मामले पर मौन थी, तो सदन में संसदीय कार्य मंत्री ने उनके सम्मान में मौन साध लिया था। जब सत्र अनिश्चित काल के लिए स्थगित हो गया, तब नाथ को समय से पहले मौन तोड़ कर मीडिया से मुखातिब होना पड़ा।
नाथ ने कहा कि मध्यप्रदेश विधानसभा में कुछ ही घंटों चले मानसून सत्र के अचानक सत्रावसान किए जाने कि घोषणा की मुझे पूरी आशंका थी। महाकाल लोक में हुए भ्रष्टाचार, सतपुड़ा का प्रायोजित अग्निकांड, महंगाई बेरोज़गारी, ध्वस्त हो चुकी क़ानून व्यवस्था जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों को लेकर सदन में बहस करने का सरकार में नैतिक साहस नहीं है। सरकार गंभीर मुद्दों पर सदन का सामना करना तो दूर, अब प्रदेश का सामना करने में असफल और अक्षम साबित हो गई है। जबकि हर वर्ग परेशान है, आक्रोशित और व्यथित है। इन सबसे अलग सरकार ने प्रायोजित तरीक़े से कुछ ही घंटों में सदन के इस आख़िरी सत्र का समापन कर संवैधानिक मूल्यों का मखौल उड़ाया है। अब हम सड़कों पर इनके विरुद्ध संघर्ष करेंगे।
संसदीय कार्य मंत्री ने भी अपनी बात रखी कि कांग्रेस को न आदिवासियों की चिंता, न किसानों और नौजवानों की। कमलनाथ जब से मध्यप्रदेश आए, तब से एक ही लिखी लिखाई स्क्रिप्ट पढ़ रहे हैं। इन्हें सिर्फ गांधी परिवार की चिंता है। मौन रखने पहले कमलनाथ गए, बाद में एक-एक कर कांग्रेस के विधायक जाते रहे। महाकाल का अपमान, वंदेमातरम राष्ट्रगीत का अपमान जैसी बातें इनकी आदत में हैं। शेर भी पढ़ा और बोले – बदहवास हुए इस तरह कांग्रेस के लोग, जो पेड़ खोखले थे उन्हीं से लिपट गए।
खैर हंगामा खूब हुआ, पर समय कम मिला। और सरकार ने भी अपना काम किया और विपक्ष को पूरा समय दिया कि सदन की जगह सड़क पर संघर्ष करो। बाकी चुनावी माहौल बन चुका है। अब सब पहुंच ही रहे हैं जनता के दरबार में। विधानसभा सत्र से पहले जो गर्जना थी, मानसूनी सत्र में माननीय उतना बरस नहीं पाए। अब मैदान खुला है जितना चाहे गरजो और जितना मन हो बरसो…।