Benincasa hispida[winter melon ]: नवरात्रि के चतुर्थ दिवस पर क्यो खास है पेठा यानि कुष्मांड

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Benincasa hispida[winter melon ]

Benincasa hispida [winter melon ]: नवरात्रि के चतुर्थ दिवस पर क्यो खास है पेठा यानि कुष्मांड

आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को शारदीय नवरात्र का चतुर्थ दिवस होता है।
नवरात्रि का चौथे दिन माता कुष्मांडा की उपासना की जाती है। शाब्दिक रूप से कुष्मांडा का अर्थ है- ब्रम्हांडीय गोलाकार संरचना, इसके अतिरिक्त इसका एक अन्य अर्थ मंद मंद मुस्कान भी होता है। क्योंकि आदिशक्ति स्वरूपा ने अपनी दिव्य मुस्कान से एक छोटे अंडाकार क्षेत्र या पिंड के रूप में ब्रम्हांड की उत्पत्ति की थी, इसीलिये माता का यह नाम कुष्मांडा पड़ा। आज के दिन की प्रमुख वनस्पति है कुष्मांड अर्थात पेठा।
माता कुष्मांडा कौन हैं :
माता कूष्माण्डा अष्टभुजा धारी हैं व स्वास्थ्य लाभ प्रदान करके धन और ऊर्जा का संचार करती हैं। उनके सात हाथों में कमंडल, धनुष, बाण, कमल-पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र और गदा हैंऔर आठवें हाथ में जप माला है, जो सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली है। उनका वाहन सिंह है तथा उनका वास सूर्यमंडल के भीतर है। ऐसा माना जाता है कि जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था, चारो ओर अंधकार ही अंधकार था, तब कुष्माण्डा देवी ने ब्रह्मांड की रचना की थी। जैसे ही मां कुष्मांडा ने ब्रह्मांड की रचना की तो उस में से दिव्य प्रकाश की किरणें निकल कर पूरे अंतरिक्ष में फैल गई। जिसकी वजह से अंतरिक्ष का हर कोना अब लाखों रोशनी से जगमगा उठा। आधुनिक विज्ञान की बिग बैंग थ्योरी भी यही कहती है, है न कमाल की बात?
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अतः ये ही सृष्टि की आदि-स्वरूपा, आदिशक्ति हैं। इनका निवास सूर्यमंडल के भीतर के लोक में है। वहाँ निवास कर सकने की क्षमता और शक्ति केवल कुष्माण्डा माता में ही है। माता के सूर्य किरणों के समान प्रकाशवान तेज से दशों दिशाएं प्रकाशित होती हैं।
पूजन विधि :
नवरात्रि के चौथे दिन, सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें। देवी कुष्मांडा का ध्यान करें और उनकी स्तुति करें। उन्हें लाल फूल, फल, और मिठाई अर्पित करें। इसके बाद, कुष्मांडा मंत्र का जाप करें और अंत में, देवी की आरती उतारें और उनसे आशीर्वाद लें। माता कुष्मांडा की पूजा से भक्तों के रोग, शोक, और कष्ट दूर होते हैं तथा उनकी कृपा से आयु, यश, बल, और आरोग्य में वृद्धि होती है।
पेठा वनस्पति का परिचय:
कुष्मांड या कूष्मांड का फल भुआ, पेठा, भतुआ, कोंहड़ा, कुम्हड़ा आदि नामों से भी जाना जाता है। इसका लैटिन नाम ‘बेनिनकेसा हिस्पिडा’ (Benincasa hispida) है।
आइये जानते हैं, कि कैसे कोई फल सृजनकारक शक्तियों से परिपूर्ण है। माता कुष्मांडा का रंग है लाल और वनस्पति है कूष्माण्ड यानी सफेद कुम्हड़ा जिसे सामान्यतः पेठा के नाम से भी जानते है। वानस्पतिक रूप से इसे बेनीकास्पा हिप्सिडा कहा जाता है, जो कुकरबिटेसी कुल का सदस्य है। यह लता पर लगता है और सब्जी के रूप में खाया जाता है। फल के ऊपर मोम जैसे पदार्थ की राख के समान दिखने वाली परत जमी रहने के कारण अंग्रेजी में इसे एश गुआर्ड कहा जाता है। ग्रामीण क्षेत्रो में इसे कीसकर बड़ी तथा आलू के साथ तिल के बिजौरे बनाने में प्रयोग करते हैं। इससे ही विशेष विधि द्वारा पेठा व गुलाब कतरी तैयार कर ली जाती है।
आयुर्वेद व पारंपरिक चिकित्सा पद्धति में यह बलवर्षक, मूत्रल तथा कृमिनाशक माना जाता है। इसके बीजों में कैल्शियम, तथा फॉस्फोरस प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। जबकि फलों में कार्बोहाइड्रेट तथा विटामिन पाये जाते हैं। कुष्मांड फल में शरीर की ऊर्जा को संकेन्द्रित कर नवजीवन प्रदान करने की शक्ति है अतः आज के दिन माता रानी को पेठा का भोग लगाएं और स्वयं इसे अपने खानपान में भी शामिल करें।
कुष्माण्डा मंत्र:
1. ॐ देवी कुष्माण्डा नम:
2. सुरासम्पूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च।
दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे॥
3. या देवी सर्वभूतेषु माँ कूष्माण्डा रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
अर्थ : हे माँ! सर्वत्र विराजमान और कूष्माण्डा के रूप में प्रसिद्ध अम्बे, मै अप[को प्रणाम करता हूँ, आपको मेरा बारंबार नमन है। अतः हे माँ, मुझे समस्त पापों से मुक्ति प्रदान करें।
डॉ विकास शर्मा
वनस्पति शास्त्र विभाग
शासकीय महाविद्यालय चौरई
जिला छिंदवाड़ा (म प्र)