श्रीप्रकाश दीक्षित की विशेष रिपोर्ट
….और दिलचस्प यह की इस उपेक्षा को अपराध उनकी ही सरकार ने बनाया है. दो महीने पहले ही इसका ढिंढोरा पीटते हुए एक अक्टूबर को अंतरराष्ट्रीय वृद्धजन दिवस पर उनकी सरकार ने आधे पेज का विज्ञापन अखबारों में छपवाया है.
इसके तीसरे बिन्दु मे कहा गया है कि वरिष्ठ नागरिकों की उपेक्षा एक संज्ञेय अपराध है जिसके तहत पाँच हजार का जुर्माना या तीन महीने की सजा हो सकती है.
इसे विरोधाभास नहीं तो क्या कहें कि डीए ना देकर प्रदेश के पेंशनरों की उपेक्षा कर उनकी सरकार ही अपराधी बन कठघरे मे खड़ी है..?
यह सही समय है जब उसे छत्तीसगढ़ की सहमति का नाटक बंद कर नियमित शासकीय सेवकों के साथ ही पेंशनरों को भी राहत देने का दो टूक फैसला करना चाहिए.
लगता है कि पेंशनरों को रुला रुला कर राहत देने के लिए मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ की सरकारों में गज़ब की अंडरस्टेंडिंग है.
तभी तो संचार सुविधाओं के इस युग में चिट्ठी पत्री और लिखा पढ़ी का बहाना बना कर पेंशनरों को डीए देने में हमेशा देरी की जाती है.
यह कोविड की महामारी से पहले भी होता रहा है.
यह भी विरोधाभास ही है कि शिवराज सरकार विज्ञापनबाजी, पूर्व मुख्यमंत्रियों की मूर्तियों, नेताओं आदि के स्मारकों और श्रीलंका आदि में मंदिरों के निर्माण पर तो बेदर्दी से जनधन को लुटाती है, पर पेंशनरों को डीए देने में उसे नानी याद आने लगती है. अभी अभी मुख्यमंत्री ने योग आयोग के गठन की घोषणा की है. वे पहले दौर में आनंद विभाग का गठन कर चुके हैं।
शिवराज जी माना कि वोट की गिनती के हिसाब से पेंशनरों की संख्या बहुत कम है। इसके बावजूद भी हम यह मानकर चलते हैं कि उनका आशीर्वाद आपके लिए जरूरी है। इसलिए अब वक्त आ गया है जब आपको पेंशनरों के लिए भी उसी प्रकार DA मंजूर करना चाहिए जिस प्रकार आपने शासकीय अधिकारियों और कर्मचारियों का किया है।