Bhojshala Survey : भोजशाला के सर्वे की भंग होती गोपनीयता और दावे-प्रतिदावे! 

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Bhojshala Survey : भोजशाला के सर्वे की भंग होती गोपनीयता और दावे-प्रतिदावे!

मीडियावाला के संपादक हेमंत पाल की त्वरित टिप्पणी 

धार शहर में स्थित भोजशाला की सच्चाई जानने के लिए ऑर्कलॉजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया (एएसआई) इन दिनों सर्वे कर रही है। यह सर्वे हाई कोर्ट के निर्देश पर किया जा रहा है। कोर्ट ने हिंदू और मुस्लिम पक्ष के प्रतिनिधियों को भी सर्वे टीम के साथ रहने की इजाजत दी है। लेकिन, दोनों पक्ष सर्वे को लेकर अपने-अपने पक्ष में तर्क कर रहे हैं। जबकि, एएसआई ने अभी तक सर्वे को लेकर कोई बयान नहीं दिया। दोनों धर्मों के प्रतिनिधियों की बयानबाजी सामाजिक सामंजस्य की हवा जरूर बिगाड़ रही है।

अयोध्या, ज्ञानवापी और मथुरा की कृष्ण जन्मभूमि की धार्मिक प्रमाणिकता के लिए कोर्ट के निर्देश पर ऑर्कलॉजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया (एएसआई) ने साइंटिफिक सर्वे किया था। कोर्ट को दी गई अपनी प्रामाणिक रिपोर्ट से एएसआई ने जो साबित किया, वो दुनिया के सामने है। हाई कोर्ट की इंदौर खंडपीठ के निर्देश पर इसी तरह का सर्वे धार की भोजशाला में किया जा रहा है। एएसआई को अपने सर्वे से साबित करना है कि भोजशाला वास्तव में राजा भोज द्वारा निर्मित सरस्वती मंदिर है या मौलाना कमालुद्दीन की बनाई मस्जिद!

दोनों पक्षों के बीच सौ सालों से ज्यादा समय से यह विवाद है। एएसआई को निर्धारित समय में कोर्ट को अपनी रिपोर्ट देना है। एक महीने से एएसआई भोजशाला में सर्वे कर रही है। ये सर्वे दो महीने और चलेगा। अभी तक ऐसे कोई प्रमाण सामने नहीं आए और न आधिकारिक रूप से बताया गया कि दोनों में से किसका दावा पुख्ता है। हाई कोर्ट ने एएसआई को सर्वे करके और अपनी रिपोर्ट जुलाई में सौंपने का निर्देश दिया है। पहले यह रिपोर्ट 29 अप्रैल को दी जाना थी, लेकिन, अब एएसआई ने इसके लिए 8 सप्ताह का अतिरिक्त समय मांगा। क्योंकि, निर्धारित अवधि में काम पूरा होना संभव नहीं है।

सर्वे के प्रमाणिकता को बनाए रखने के लिए कोर्ट के निर्देश पर हिंदू और मुस्लिम प्रतिनिधियों को भी सर्वे टीम के साथ अंदर जाने की इजाजत मिली है। पहले दिन मुस्लिम पक्ष ने सर्वे टीम के साथ परिसर में जाना टाला, उसके बाद से दोनों पक्षों के प्रतिनिधि सर्वे टीम के साथ सुबह से शाम तक मौजूद रहते हैं। इसमें सबसे गौर करने वाली बात यह है कि सर्वे टीम ने अभी तक अपनी तरफ से कोई बयान नहीं दिया। इस तरह के कोई संकेत भी नहीं दिए कि सर्वे के दौरान भोजशाला परिसर से किस तरह के प्रमाण मिल रहे हैं। उन्हें इस तरह का बयान देने की इजाजत भी नहीं है। क्योंकि, उन्हें अपनी रिपोर्ट हाई कोर्ट में जमा करना है। इसके बावजूद देखा गया कि रोज सुबह जब सर्वे टीम के साथ दोनों पक्षों के प्रतिनिधि अंदर जाते हैं, तो वे मीडिया के सामने कोई न कोई ऐसी बात जरूर करके जाते हैं जो इस सर्वे की गोपनीयता को भंग करने जैसी होती है।

मुस्लिम पक्ष के प्रतिनिधि तो सर्वे की जानकारी पर तो ज्यादा नहीं बोलते, लेकिन वे सर्वे में हुए काम को लेकर जिक्र जरूर करते हैं। वे हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में उनके द्वारा लगाई गई आपत्तियों का जिक्र करने के साथ यह भी बताते हैं कि बीते सौ सालों से ज्यादा समय में भोजशाला विवाद में क्या कुछ हुआ! वे अपने तर्कों से यह भी बताने की कोशिश करते हैं कि भोजशाला वास्तव में मुस्लिम स्मारक है, जिस पर हिंदू बेवजह अपना दावा जता रहे है। वे उन तर्कों को भी नकारते हैं, जो हिंदू पक्ष के लोग सामने रखने की कोशिश करते हैं।

इसी तरह हिंदू पक्ष के दोनों प्रतिनिधि मुखरता से इस बात का जिक्र करते हैं कि सर्वे के दौरान अंदर मिलने वाले प्रमाण इस बार का संकेत दे रहे हैं, कि यह सरस्वती मंदिर रहा है। दरअसल, उनके इस तरह के बयान हाई कोर्ट के दिशा-निर्देशों की विपरीत है। क्योंकि, उनके इस तरह के बयानों का कोई मतलब नहीं। वास्तव में तो सीधे-सीधे इस बात की मार्केटिंग करने की भी कोशिश की जा रही है कि एएसआई का यह सर्वे हिंदू धर्मावलंबियों की याचिका पर ही किए जाने के निर्देश हुए हैं। इस तरह की गैर-प्रामाणिक बातें बार-बार करना, इस बात का भी संकेत है कि उनके तर्कों पर ही सर्वे किया जा रहा है। एएसआई की सर्वे रिपोर्ट के हाई कोर्ट में पेश किए जाने से पहले ऐसी बयानबाजी इसकी गोपनीयता को भंग करने जैसा कृत्य कहा जा सकता है।

सर्वे के दौरान जब भी मंगलवार या शुक्रवार आता है, तो हिंदू और मुस्लिम पक्ष के लोग भोजशाला परिसर में जाकर अपनी आराधना करते हैं। शुक्रवार को मुस्लिम नमाज़ अता करने और मंगलवार को हिंदू परिसर में हनुमान चालीसा का पाठ करते हैं। कई साल पहले केंद्र सरकार ने दोनों पक्षों को यह व्यवस्था दी थी, तब से प्रशासन की देखरेख में इसका पालन किया जा रहा है। देखा गया कि सर्वे के दौरान हर मंगलवार को जब हिंदू पक्ष भोजशाला में पूजा-अर्चना के लिए जाते हैं, उस दिन हिंदू पक्ष की तरफ से भोजशाला आंदोलन से जुड़ा कोई बड़ा हिंदूवादी नेता मीडिया के सामने कोई न कोई ऐसी बात जरूर करता है, जो सुर्खी बनती है। वास्तव में तो उन्हें एएसआई सर्वे को लेकर कोई बयान देने की जरूरत है और न इजाजत। लेकिन, फिर भी दोनों पक्षों को जब भी मौका मिलता है, वे अपनी बात करने से नहीं चूकते।

हिंदू पक्ष के लोग बार-बार मथुरा, ज्ञानवापी और अयोध्या के एएसआई सर्वे के नतीजे को आधार बनाकर भोजशाला में भी उसी तरह के प्रमाण मिलने का दावा करते हैं। जबकि, मुस्लिम प्रतिनिधि का दावा रहता है कि 1902 और 1903 में भी इसी तरह का सर्वे हुआ था और उस समय यह मान लिया गया था कि यह मंदिर नहीं है। आज भी उनका दावा है कि 1300 ईस्वी में जब मौलाना कमालुद्दीन यहां आए थे और उन्होंने मस्जिद बनाई थी। उस समय कई तरह यहां कई तरह का रॉ-मटेरियल मस्जिद के निर्माण के लिए लाया गया था। संभवतः उस समय लाए गए रॉ-मैटेरियल में कुछ ऐसी सामग्री आ गई होगी, जो यहां हिंदू धर्म के प्रमाण दे रही है। लेकिन, वास्तव में यहां सरस्वती मंदिर जैसी कोई बात नहीं है।

भोजशाला में बनी एक अक्कल कुईया को लेकर भी दोनों पक्षों के पास ऐसे दावे हैं, जो सर्वे को प्रभावित कर सकते हैं। हिंदुओं का कहना है कि इस तरह की अक्कल कुईया आर्यावर्त में 7 जगह है जिसमें से तीन जगह भारत में है। एक इलाहाबाद में, एक तक्षशिला और तीसरी भोजशाला में। धार की भोजशाला की अक्कल कुईया के बारे में उनका कहना है कि यह सरस्वती नदी से जुड़ा हुआ जल स्रोत था। माना जाता है कि जहां भी शिक्षा के विकसित केंद्र रहे, वहां विद्यार्थियों को ज्ञान देने के लिए इस तरह की कुईया का निर्माण किया गया।

इसमें वे पत्थर पाए गए, जो विलुप्त हुई सरस्वती नदी में होते थे। इसके प्रमाण में हिंदू पक्ष विष्णु श्रीधर वाकणकर की किताब का हवाला देते हैं। जबकि, मुस्लिम पक्ष का कहना है कि वास्तव में यह अक्कल कुईया नहीं, बल्कि मस्जिदों के में पाई जाने वाला जल कुंड है, न कि अक्कल कुईया जैसा कोई प्रमाण। लेकिन, वास्तव में इसकी सच्चाई क्या है यह एएसआई के सर्वे से ही पता चलेगा। लेकिन दोनों पक्षों की बयानबाजी से एक अलग तरह की भावना जन्म ले रही है, जो निश्चित रूप से सामाजिक सामंजस्य के लिए उचित नहीं है।