Bhopal Becomes Delhi In Air Pollution: वायु प्रदूषण में भोपाल बना दिल्ली

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Bhopal Becomes Delhi In Air Pollution: वायु प्रदूषण में भोपाल बना दिल्ली

एनके त्रिपाठी की खास रिपोर्ट

 

भोपाल: सुरम्य पहाड़ियों,सुंदर झीलों और हरीतिमा से आच्छादित भोपाल एक निर्मल वातावरण की भ्रांति उत्पन्न करता है। इसीलिए यहाँ के निवासियों ने वायु प्रदूषण को कभी भी गंभीरता से नहीं लिया है। स्थानीय मीडिया भी पर्यावरण के प्रति जागरूकता से अछूता प्रतीत हो रहा है।

आज मैंने दोपहर 12 बजे वायु का प्रदूषण नापने वाले अपने मीटर से जब प्रदूषण की नाप ली तो AQI 312 था। मैंने मीटर के मॉनिटर का चित्र लिया जिसे आप यहाँ देख सकते हैं। इसमें आप नीचे भारतीय झंडे के रंगों के नीचे 312 की रीडिंग देख सकते हैं। यह प्रदूषण दोपहर के समय का है , रात्रि और प्रातः काल यह प्रदूषण और भी अधिक रहा होगा।

पर्यावरणविदों से चर्चा करने पर पता चला कि पिछले 10 दिनों से भोपाल का AQI लगातार 300 के ऊपर चल रहा है जो बहुत ख़राब है। उन्होंने इसका कारण यह बताया कि पश्चिमी विक्षोभ के कारण उत्तर भारत से आने वाली हवाएँ अपने साथ वहाँ की प्रदूषित हवा भी लेकर आ रही है। उनका आंकलन है कि उत्तरी हवाओं के कारण लगभग 25 प्रतिशत प्रदूषण और बढ़ा है। चूँकि सामान्य रूप से भोपाल में प्रदूषण रहता ही है, इसलिए अतिरिक्त प्रदूषण से वर्तमान स्थिति स्वास्थ्य के दृष्टि से बहुत ही गंभीर हो गई है।

मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि स्थानीय मीडिया ने वायु प्रदूषण के संबंध में लगभग पूरी उदासीनता बरती है। इस कारण नगर निगम और प्रशासन पर कोई क़दम उठाने का भी कोई दबाव नहीं है। भोपाल के प्रदूषण का मुख्य कारण धूल और धुआँ है। भोपाल की अधबनी सड़कें तथा सड़कों के गड्ढों की धूल वाहनों के चलने से उड़ती है जो वायुमंडल की ठंडी हवा के कारण पृथ्वी के सतह से लगी रहती है। इसके अतिरिक्त शहर के अनेक स्थानों में जनता के लोग और कभी कभी स्वयं निगम कर्मी कूड़े के ढेर में आग लगा देते हैं। जाड़ों की रात में आग तापने के लिए टायर आदि भी जलाया जाता है। इन बातों पर प्रशासन और नगर निगम का बहुत कम ध्यान जाता है। ज़िम्मेदार अधिकारियों पर जनमत का अधिक दबाव नहीं रहता है। ऐसी स्थिति में वायु के इस प्रबल प्रदूषण से बच्चों और बूढ़ों के अतिरिक्त नौजवान लोग भी सीधे या परोक्ष रूप से प्रभावित हो रहे हैं। अस्पतालों में तरह-तरह के मरीज़ पहुँच रहे है। कुछ दशक पूर्व जाड़ों को स्वास्थ्य के लिए अच्छे दिन माना जाता था, आज यह पूरे उत्तर भारत का अभिशाप बना हुआ है।