Big Achievement Of Kailash Vijayvargiya:51 लाख पौधारोपण: एक बार फिर इंदौर का नाम दुनिया में छाया

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Big Achievement Of Kailash Vijayvargiy:51 लाख पौधारोपण: एक बार फिर इंदौर का नाम दुनिया में छाया

मध्यप्रदेश के नगरीय प्रशासन मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने जब से घोषणा की थी कि इंदौर में वे 51 लाख पौधे लगवायेंगे, तब से ही उनके इस दावे को लेकर उत्सव प्रेमी शहर में जन चर्चा होने लगी थी। आज 14 जुलाई 2024 को जब 12 घंटे के अंदर 11 लाख पौधे लगाने का विश्व कीर्तिमान बन चुका है, तब दुनिया में एक बार फिर इंदौर का नाम अलग पहचान बनाने के तौर पर सामने आया है। कैलाश विजयवर्गीय ने दुनिया के सामने एक मिसाल प्रस्तुत की है कि जन प्रतिनिधि पर्यावरण के प्रति केवल मौखिक जागरुकता ही नहीं फैलाता, बल्कि उसे वास्तविकता के धरातल पर उतार कर दिखा सकता है। इसी के साथ एक ऐसा संयोग भी बना है, जब लगातार चार सदियों से इंदौर का नाम विश्व पटल पर चमका है। कैसे,आइये इस पर विस्तार से चर्चा करते हैं।

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इंदौर का नाम दुनिया में सदैव कुछ ऐसे कामों के लिये जाना जाता रहा है, जो उसे विशिष्टता की श्रेणी में लाते हैं। विश्व पटल पर इंदौर को सबसे पहले पहचान दी,होल्कर राजघराने की बहू,तत्कालीन शासिका अहिल्या देवी(1725-1795) ने। उन्होंने लोक कल्याण के अनुपम,अनगिनत काम किये,जिसने उन्हें ख्याति दिलवाई। वैधव्य के अवसाद से उबर कर सादा जीवन जीते हुए उन्होंने एक दक्ष,कर्मठ,न्यायप्रिय और निष्पक्ष रानी की छवि बनाई। इंदौर से करीब सवा सौ किलोमीटर दूर मां नर्मदा के किनारे महेश्वर को राजधानी बनाकर आजीवन वहां रहीं और शासन तंत्र का संचालन करती रहीं। दूसरी तरफ भारत के अलग-अलग कोनों में उन्होंने असंख्य मंदिर तो बनवाये ही, जग प्रसिद्ध घाटों का निर्माण भी कराया, जो आज भी विद्यमान हैं। इस दोहरी भूमिका को पूरे सामंजस्य से निभाने के कारण दुनिया में उनकी उज्ज्वल छवि निर्मित हुई। इस तरह अट्‌ठारहवीं सदी में इंदौर को अलग पहचान मिली।

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दूसरे महान व्यक्ति हुए सर सेठ हुकमचंद(1874-1959)। मात्र 6 वर्ष की उम्र में पारिवारिक कारोबार संभाल लेने वाले हुकमचंदजी ने 16 साल की उम्र तक स्वतंत्र रूप से काम शुरू कर दिया। उन्होंने इंदौर को कपड़ा उद्योग का गढ़ बनाया, जहां मालवा मिल,हुकमचंद मिल,राजकुमार मिल व उज्जैन में हीरा मिल की स्थापना कर इंदौर को दुनिया के नक्शे में जगह दिलाई। साथ ही अपने कारोबार में सौ साल पहले कोलकाता में जुट मिल और ऑयरन मिल स्थापित कर नये प्रतिमान रच दिये। इसीलिये वे मर्चेंट किंग भी कहलाये। इतना ही नहीं तो एक समय ऐसा आया, जब अंग्रेज शासित भारत के छोटे-से शहर इंदौर के सेठ हुकमचंद जो भाव कॉटन के निकालते थे, वह दुनिया के सबसे बड़े कपड़ा केंद्र मैनचेस्टर(ब्रिटेन) में भी उस आधार पर ही कपास की दरें तय होती थीं।हुकमचंद सेठ की दूर दृष्टि ऐसी कि 1933 में व्यापार में पूर्वानुमान(जिसे हम वायदा बाजार कह सकते हैं) कारोबार प्रारंभ कर दिया। उसके बाद तो उनकी ख्याति विश्व व्यापी हो गई। अंग्रेजों के संरक्षण के बावजूद वे स्वदेशी आंदोलन से भी जुड़े रहे। इस तरह से 19वीं-20वीं सदी में भी इंदौर को विशिष्ट पहचान मिली।

 

बीसवीं सदी के आखिर और 21वीं सदी के प्रारंभ में ही इंदौर के नाम दो और ऐसी उपलब्धियां जुड़ी, जिसने विश्व में अलग पहचान बनाई। सत्तर के दशक में पेयजल से बुरी तरह से त्रस्त इंदौर के लोगों ने अभूतपूर्व,अहिंसक जन आंदोलन खड़ा किया, जिसकी वजह से करीब 70 किलोमीटर दूर से नर्मदा नदी का पानी ग्रेविटी के सिद्धांत से इंदौर लाया गया। अब इसके तीन चरण आज करीब 30 लाख के शहर की प्यास बुझा रहे हैं। आम तौर पर ऐसे आंदोलन बेहद लंबे समय तक तो चलते ही हैं, इसमें मत-मतांतर हो जाते हैं, फैसले आधे-अधूरे होते हैं और हिंसा भड़कने के भी अवसर होते हैं। जबकि नर्मदा लाओ आंदोलन में किसी चिड़िया का पंख भी नहीं टूटा। बीसवीं सदी में ही इंदौर शहर को आईआईएम और 21वीं सदी के प्रारंभ में आईआईटी जैसे राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त शैक्षणिक संस्थान मिले। तब तक ये दोनों संस्थान भारत के किसी भी शहर में एकसाथ नहीं थे। 1996 में प्रबंधन संस्थान व 2009 में आईआईटी प्रारंभ हुए। इसने भी इंदौर को नई पहचान दी।

 

अब बात करते हैं,इक्कीसवीं सदी की उत्कृष्ट उपलब्धि की। 2014 में केंद्र में भारतीय जनता पार्टी की सरकार आने के बाद देश भर में स्वच्छता पर काम शुरू हुआ और सबसे उम्दा सफाई रखने वाले शहरों को श्रेष्ठता के लिये पुरस्कृत किया जाने लगा। दिलचस्प और उल्लेखनीय बात यह है कि न केवल भारत में बल्कि विश्व में भी ऐसा उदाहरण संभवत कहीं नहीं होगा कि एक ही शहर को लगातार सात बार प्रथम पुरस्कार मिला हो। इंदौर ने स्वच्छता को स्वभाव बना लिया और नगर निगम से लेकर तो शहरवासियों तक ने इसे अपना जुनून बना लिया। इंदौर की स्वच्छता की प्रशंसा स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अनेक मंचों से बार-बार कर चुके हैं और दुनिया भर में इसकी जानकारी है। यहां आने वाला आश्चर्य से भर उठता है, जब सुनी हुई बातों को उससे कई गुना बेहतर स्वरूप में पाता है। 21वीं सदी में इंदौर की स्वच्छता की भी अलग पहचान बन चुकी है।

 

इसी सिलसिले को आगे बढ़ाया है, कैलाश विजयवर्गीय ने। वे इंदौर के विधायक हैं, मप्र शासन के कैबिनेट मंत्री हैं औऱ् 21‌‌वीं सदी में ही प्रदेश में पहली बार हुए महापौर के सीधे निर्वाचन(2000) में भारी बहुमत से विजयी हो चुके हैं। उन्होंने 2024 की गर्मी में इंदौर को त्राहिमाम करते देख संकल्प लिया कि वे वृहद स्तर पर पौधारोपण कर प्राकृतिक संतुलन बनाने की दिशा में काम करते हुए 51 लाख पौधे लगवायेंगे। तकरीबन डेढ़ माह के अल्प समय में ही योजना को मूर्त रूप देते हुए इसे जन अभियान बनाते हुए जबरदस्त चेतना जगा दी। साथ ही एक ही दिन(14 जुलाई) में 11 लाख पौधे रोपकर गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में इंदौर का नाम दर्ज करवा दिया। उन्होंने संकल्प भी लिया है कि अगले साल भी वे 51 लाख पौधे लगायेंगे। ऐसा ही एक विश्व कीर्तिमानी काम वे 2 मार्च 2020 को कर चुके हैं, जब इंदौर के पितृ पर्वत पर 108 टन वजनी हनुमान जी की प्रतिमा स्थापित की। इस अवसर पर जो भोजन प्रसादी वितरित की गई,उसे करीब 10 लाख लोगों ने ग्रहण किया था। करीब 5 किलोमीटर तक सड़क पर श्रद्धालुओं को बैठाकर उन्हें ससम्मान भोजन कराया गया था। पूरी दुनिया में इतने वृहद पैमाने पर सार्वजनिक भोज शायद ही कहीं हुआ हो। 21वीं सदी के ये दो उल्लेखनीय काम कैलाश विजयवर्गीय के नाम हैं, जो हमेशा याद रखे जायेंगें।