
Big and Relieving News: यमन में भारतीय नर्स “निमिषा” की फांसी टली, उम्मीद बाकी लेकिन खतरा बरकरार!
रुचि बागड़देव की रिपोर्ट
यमन में फांसी की सजा झेल रहीं केरल की भारतीय नर्स निमिषा प्रिया के मामले में एक बड़ी और राहत भरी खबर आई है।
कल 16 जुलाई 2025 को दी जाने वाली फांसी की सजा को यमन के अधिकारियों ने एक दिन पहले यानी 15 जुलाई* को स्थगित कर दिया है। यह फैसला मिसाल बन गया है- एक तरफ मौत की तारीख तय, दूसरी ओर आखिरी वक्त की उम्मीदें जिंदा।
पूरा घटनाक्रम क्या है?
निमिषा 2008 में यमन गई थीं। 2015 में उन्होंने यमनी नागरिक तलाल मेहदी के साथ क्लीनिक खोला। वहां के कानून के अनुसार, बिजनेस के लिए स्थानीय पार्टनर जरूरी था। लेकिन कुछ ही समय में संबंध बिगड़ गए। निमिषा ने आरोप लगाया कि तलाल ने उनका शोषण किया, पासपोर्ट जब्त कर लिया और जबरन खुद को उनका पति घोषित कर दिया।
2017 में उन्होंने तलाल को बेहोश करने के लिए दवा दी, लेकिन ओवरडोज़ से उसकी मौत हो गई। इसके बाद यमन की अदालतों ने उन्हें हत्या का दोषी कर मृत्युदंड सुनाया- जिसे सुप्रीम कोर्ट और राष्ट्रपति ने भी बरकरार रखा।
कैसे मिली राहत?
भारत सरकार, सामाजिक कार्यकर्ता और अंतरराष्ट्रीय मंचों द्वारा लगातार की जा रही अपीलों के बाद, ब्लड मनी (दीया) और मानवीय आधार पर सजा को टालने की कोशिशें रंग लाईं। विदेश मंत्रालय, भारतीय दूतावास और भारत में चलाए जा रहे #SaveNimisha अभियान के दबाव के बीच यमन प्रशासन ने फांसी रोक दी।
निमिषा की मां प्रेमा पिछले एक साल से यमन में डटी हुई हैं। पूरे भारत से समर्थन जुट रहा है- केरल सरकार, सांसद, नागरिक संगठन और आम जनता फंड जुटाकर ब्लड मनी देने की कोशिशें कर रहे हैं ताकि मृतक के परिवार से समझौता हो सके। लेकिन अब तक उस परिवार ने कोई सहमति नहीं जताई है।
क्या आगे कोई रास्ता है?
यह स्थगन स्थायी राहत नहीं है। अब सब कुछ ब्लड मनी के सहमति पत्र पर टिका है। अगर मृतक परिवार माफीनामा देता है और समझौता साइन करता है, तभी निमिषा प्रिया की जान बचाई जा सकती है। भारत सरकार की तरफ से हरसंभव कोशिशें जारी हैं, लेकिन वक्त बेहद कम है।
यह मामला न सिर्फ एक कानूनी लड़ाई है, बल्कि मानवीय संवेदना, कूटनीति और अंतरराष्ट्रीय रिश्तों की परीक्षा भी है। फांसी टल गई है, पर खतरा बरकरार है।





