अजय कुमार चतुर्वेदी की खास ख़बर
नई दिल्ली: देश के सबसे बड़े बैंक ऋण घोटाले में सीबीआई जांच के साथ ही राजनीतिक बयानबाजी भी शुरू हो गई है। जांच एजेंसी ने इस मामले में चल रही बयानबाजी पर विराम लगाने की कोशिश भी की गयी है।
कांग्रेस ने जब आरोप लगाया कि मोदी सरकार की गलत नीतियों के कारण ही इतना बड़ा घोटाला हुआ और घोटालेबाज देश से भाग गये। सीबीआई ने कुछ ही घंटों बाद बयान जारी कर कहा कि यह घोटाला यूपीए सरकार में फला फूला। घोटाला करीब २३ हजार करोड़ रुपये का है। जिसमें एबीजी शिपयार्ड के के निदेशकों का नाम आया है। सीबीआई ने शिपयार्ड के दो निदेशकों के खिलाफ लुक आऊट नोटिस जारी कर दिया है।
आखिर इस घोटाले का पता इतनी देर से क्यों पता चला? इसके पीछे भी राजनीतिक कारण ही जिम्मेदार बताए जा रहे हैं। केंद्र में जब से मोदी सरकार बनी है, तब से विपक्षी दलो वाली राज्य सरकारों ने केंद्रीय जांच एजेंसियों का विरोध करना शूरु कर दिया। कुछ राज्यों ने तो इन जांच एजेंसियों को अनुमति देनी बंद कर दी। सीबीआई ने भी इस मुद्दे का जिक्र किया है।
जानकारों का कहना है कि बैंकों की लचर व्यवस्था भी ऐसे मामलों के लिए जिम्मेदार है। एबीजी शिपयार्ड १९८५ से अस्तित्व में है। बताया जाता है कि छोटे उपभोक्ता को लोन देने में जिस प्रकार बैंक जांच करते हैं उतनी ही कथित लापरवाही बडे लोन मामलों में बरती जाती है।
हालांकि वर्तमान सरकार की सख्ती के कारण बैंकों की कार्यप्रणाली में काफी सुधार आया है और उनका एन पी ए भी कम हुआ है। बहरहाल, सीबीआई को इस सबसे बडे बैंक ऋण घोटाले में प्रभावी कार्रवाई फिलहाल एक कड़ी चुनौती है।