Bihar Elections 2025: NDA ने साधा समीकरण, Grand Alliance अब भी उलझा

_रणनीति बनाम समन्वय की निर्णायक जंग_

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Bihar Elections 2025: NDA ने साधा समीकरण, Grand Alliance अब भी उलझा

✍️ राजेश जयंत

पटना। बिहार की सियासत एक बार फिर चरम पर है। राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) ने सीट शेयरिंग का पत्ता खोलकर राजनीतिक मैदान में बढ़त बना ली है, जबकि विपक्षी महागठबंधन अब भी सुलह-संतुलन की जद्दोजहद में फंसा है।

243 सदस्यीय विधानसभा की लड़ाई में यह स्पष्ट संकेत है कि 2025 का चुनाव केवल गठबंधनों की नहीं, बल्कि रणनीति बनाम असमंजस की टक्कर होगा।

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*NDA का गणित- “बराबरी का फार्मूला, संदेश एकता का”*

एनडीए ने इस बार सीटों का बंटवारा बिना शोर-शराबे के किया- भाजपा 101, जेडीयू 101, एलजेपी (रामविलास) 29, उपेंद्र कुशवाहा की RLM और जीतन राम मांझी की HAM को 6-6 सीटें।

यह फार्मूला न केवल राजनीतिक संतुलन का संकेत देता है, बल्कि नीतीश कुमार और भाजपा के बीच साझे नेतृत्व की सहमति को भी मजबूत करता है।

2020 में भाजपा ने 110 सीटों पर लड़कर 74 जीती थीं, जबकि जेडीयू ने 115 सीटों पर चुनाव लड़ा और 43 पर विजय पाई थी। इस बार “बराबरी” के समीकरण से गठबंधन ने यह संदेश दिया है कि “अब न बड़ा-छोटा, बस साथ चलना ही लक्ष्य है।”

भाजपा के संगठनात्मक कौशल और जेडीयू के जनाधार का मेल एनडीए को रणनीतिक बढ़त देता दिख रहा है। चुनावी प्रबंधन में समयबद्धता, सोशल इंजीनियरिंग और बूथ स्तर तक की तैयारी पर भाजपा ने महीनों पहले काम शुरू कर दिया है।

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*महागठबंधन की मुश्किल- “नेतृत्व स्पष्ट, तालमेल अस्पष्ट”*

उधर, महागठबंधन (राजद, कांग्रेस, वामदल) में सीट बंटवारे की गुत्थी अब तक सुलझ नहीं पाई है। तेजस्वी यादव “परिवर्तन” का नारा बुलंद कर रहे हैं, लेकिन भीतरखाने सीट वितरण और उम्मीदवार चयन को लेकर मतभेद गहराते जा रहे हैं।

कांग्रेस 70 सीटों से कम पर तैयार नहीं, जबकि राजद उसे 50 के भीतर सीमित रखना चाहता है। वामदल अपने पारंपरिक गढ़- बेगूसराय, आरा और सिवान में न्यूनतम 15 सीटें मांग रहे हैं।

यह स्थिति बताती है कि विपक्ष अभी भी “कौन कितनी सीट पर लड़ेगा” में उलझा है, जबकि एनडीए “कौन कब मैदान में उतरेगा” पर काम शुरू कर चुका है।

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*जनता की नब्ज और सियासी संकेत*

बिहार में जातीय समीकरण अब भी निर्णायक हैं, पर 2020 के बाद युवाओं में रोज़गार, शिक्षा और स्थानीय विकास सबसे बड़ी प्राथमिकता बन चुकी है।

नीतीश कुमार की “अनुभव और स्थिरता” बनाम तेजस्वी यादव की “ऊर्जा और वादों की राजनीति” यही टकराव इस बार का असली विमर्श तय करेगा।

 

राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि “एनडीए की तैयारी व्यवस्थित और सामूहिक है, जबकि महागठबंधन की रणनीति प्रतिक्रियात्मक और बिखरी हुई दिखती है।”

यही कारण है कि NDA का सीट फार्मूला सिर्फ गणित नहीं, बल्कि संदेश का तंत्र बन गया है- “हम तैयार हैं, आप लड़िए।”

 

*निष्कर्ष (Final Verdict)*

बिहार की सियासत एक बार फिर समीकरणों के जाल में उलझी है, लेकिन इस बार तस्वीर पहले से कहीं ज्यादा दिलचस्प है। NDA ने जहां सीट बंटवारे को लेकर समय से पहले स्पष्टता दिखाकर संगठनात्मक अनुशासन और नेतृत्व की मजबूती का संकेत दिया है, वहीं Grand Alliance अब भी रणनीति के भीतर आपसी तालमेल और भरोसे की कमी से जूझता दिखाई दे रहा है।

जनता की नब्ज़ बताती है कि विकास बनाम वादों की जंग इस बार निर्णायक होगी।

एनडीए का “संयुक्त मोर्चा” तैयार है, जबकि महागठबंधन को अपने अंदरूनी मतभेदों को थामना होगा।

चुनावी चौसर बिछ चुकी है, अब देखना यह है कि जनता का अंतिम “Verdict” किसके पक्ष में आता है

संगठित रणनीति वाले एनडीए के या नये वादों से भरे महागठबंधन के।

बिहार की जनता का फैसला ही इस चुनाव का असली निर्णायक अध्याय लिखेगा।