
Bihar Elections 2025: वोट अधिकार यात्रा और लाखों सरकारी नौकरी का वादा खारिज, बिहारी बोले: फिर से नीतीश कुमार
– राजेश जयंत
बिहार के राजनीतिक परिदृश्य ने एक बार फिर यह साबित कर दिया कि मतदाता किसी भी चुनावी नारों, भीड़ भड़काने वाली यात्राओं या आकर्षक घोषणाओं से बहकता नहीं है। महागठबंधन ने चुनाव से पहले जितने भी तीर छोड़े, सपनों को जितनी भी चमक दी और युवाओं को लुभाने के लिए जितने भी वादे पेश किए, सब कुछ उसी क्षण ढह गया जब जनता ने EVM के सामने खड़े होकर अपना वास्तविक निर्णय सुना दिया। मतदाता ने साफ कहा कि उसे हवा में उछाले वादों का बाजार नहीं चाहिए बल्कि भरोसे की वह जमीन चाहिए जहां स्थिरता और अनुभव हो। इसी भरोसे ने एक बार फिर नीतीश कुमार के नाम पर मुहर लगा दी।
▪️यात्राओं और नारों की आंधी मतदाता के विवेक पर नहीं चली
महागठबंधन को पूरा भरोसा था कि बेरोजगारी का मुद्दा, युवाओं की बेचैनी और लाखों सरकारी नौकरी का वादा उन्हें बढ़त दिलाएगा। वोट अधिकार यात्रा को उन्होंने परिवर्तन की लहर मान लिया था। लेकिन नतीजों ने उनके पूरे राजनीतिक समीकरण को उलट दिया। बिहार के मतदाताओं ने यह साफ कर दिया कि भावनात्मक नारों की लहरें चाहे कितनी ही उठें पर चलती वही हैं जो विश्वास और व्यवहारिकता से जुड़ी हों। नौकरी के वादे आकर्षक जरूर होते हैं पर जब उनमें ठोस विश्वसनीयता का अभाव दिखता है तो जनता उन्हें बिना देर किए खारिज कर देती है।
▪️इतने शोर-वादों से आखिर हासिल क्या
महागठबंधन को अब गंभीरता से सोचना होगा कि उनकी इतनी आक्रामक रैलियां, भारी-भरकम जनसभाएं और बड़े-बड़े दावे आखिर किस काम आए। जनता जब फैसला करती है तो न तो भावनात्मक भाषण चलता है और न ही आंकड़ों का खेल। जनता नेतृत्व की विश्वसनीयता, प्रशासनिक स्थिरता और पिछले कार्यकाल के प्रदर्शन को प्राथमिकता देती है। नीतीश कुमार का फिर से चुना जाना इस बात का संकेत है कि बिहार का मतदाता जोखिम उठाकर प्रयोग नहीं करना चाहता बल्कि अनुभवी और संतुलित नेतृत्व पर विश्वास करता है।
▪️युवा गुस्से को वोट मानने की भूल
महागठबंधन की चुनावी रणनीति की सबसे बड़ी कमजोरी यह रही कि उन्होंने युवाओं की नाराजगी को सीधे वोट में बदलने का भरोसा कर लिया। पर बिहार के नौजवानों ने अपना परिपक्व चेहरा दिखाया। वह सोशल मीडिया पर नाराज दिख सकते हैं, सभाओं में नारे लगा सकते हैं, पर वोट देते समय वे सत्ता और स्थिरता की गंभीरता को ध्यान में रखते हैं। यात्रा, पोस्टर या ट्रेंड तय कर सकते हैं कि चर्चा किसकी होगी, पर निर्णय वही तय करता है जो जनता को भरोसेमंद लगे।
▪️लाखों नौकरियों का वादा किंतु भरोसे की कमी
लाखों सरकारी नौकरियों की घोषणा सुनने में जितनी बड़ी लगती है, क्रियान्वयन में वह उतनी ही कठिन होती है। जब जनता को उसमें न ऑपरेशनल प्लान दिखा, न प्रशासनिक व्यवस्था का भरोसा, तो उन्होंने इस वादे को सपनों की फेरी समझकर किनारे कर दिया। इस चुनाव ने साबित किया कि मतदाता सिर्फ सुनना नहीं चाहता बल्कि यह भी देखता है कि कौन अपनी बात निभाने की क्षमता रखता है।
▪️अब महागठबंधन के सामने असली सवाल
अब प्रश्न यह है कि क्या महागठबंधन इस जनादेश को समझने का साहस दिखाएगा। क्या वे अपनी रणनीति, नेतृत्व और मुद्दों के चयन का पुनर्मूल्यांकन करेंगे या फिर वही पुराने नारे, वही आरोप और वही चुनावी आक्रोश लेकर अगले चक्र की प्रतीक्षा करेंगे। Bihar की जनता ने एक बार फिर स्पष्ट कर दिया है कि केवल प्रदर्शन, भीड़ और बयानबाजी से जनादेश नहीं मिलता, उसके लिए विश्वसनीयता और ठोस कार्ययोजना चाहिए।
▪️जनादेश का स्पष्ट संदेश
2025 का यह जनादेश सिर्फ एक चुनाव परिणाम नहीं बल्कि एक मजबूत राजनीतिक संकेत है कि जनता चकाचौंध से नहीं, विश्वास से प्रभावित होती है। इस चुनाव ने यह संदेश दोहरा दिया है कि राजनीति में भारी भीड़, ऊंचे वादे और लंबी यात्राएं तभी सफल होती हैं जब उनके पीछे भरोसे की ताकत हो। जनता ने इस बार स्पष्ट रूप से बता दिया है कि भरोसे का नाम नीतीश कुमार है और इसी भरोसे के दम पर उन्होंने एक बार फिर उन्हें चुनावी विजयीपथ पर पहुंचाया है।




