बिहार के बिस्मार्क “नीतीश कुमार” …

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बिहार के बिस्मार्क “नीतीश कुमार” …

वैसे तो बिहार को गठबंधन राजनीति का गढ़ माना जाता है, लेकिन इसमें भी कर्पूरी  ठाकुर का नाम विशेष रूप से जाना जाता है। और ठाकुर की तरह ही उनके दो राजनीतिक शिष्यों लालू यादव और नीतीश कुमार ने भी गठबंधन की राह पकड़ी। पर नीतीश कुमार ने गठबंधन का जो इतिहास रचा, उसमें अब उनकी बराबरी पर बिहार में कोई नेता नहीं है। जर्मनी के चांसलर रहे बिस्मार्क का नाम विश्व के इतिहास में दर्ज है। बिस्मार्क ने अपनी विदेश नीति के तहत आस्ट्रिया को पराजित किया तथा 21 जर्मन रियासतों को मिलाकर उत्तरी जर्मन संघ का निर्माण किया था। चांसलर पद पर होते हुए भी वह सम्राट विलियम प्रथम की शक्तियों का उपयोग करते थे। सम्राट विलियम प्रथम ने कहा था- ‘वह पांच गेंदों से खेलने वाला, उनमें से दो को हवा में रखने वाला जादूगर था।’ बिहार की राजनीति में यही जादूगरी नीतीश कुमार कर रहे हैं। नीतीश कुमार को बिहार का बिस्मार्क कहा जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं है। यह जादूगरी ही है कि एक तरफ ‘इंडिया’ गठबंधन बनाने में प्रमुख चेहरे नीतीश कुमार अब खुद एनडीए गठबंधन में शामिल हैं।‌ एक ही पंचवर्षीय में तीन बार अलग-अलग गठबंधन में सीएम की शपथ लेना जादूगरी ही तो है। जबकि कम संख्या बल वाले दल का नेता ही लगातार सीएम चेहरा हो। यह सब कुछ मोदी पॉलिटिक्स है या फिर नीतीश कुमार की चाणक्य‌ बुद्धि, यह तो समय ही बताएगा। पर यदि नीतीश कुमार एनडीए नीत‌ केंद्र सरकार में उप प्रधानमंत्री की कुर्सी से नवाजे जाएं, तो कोई आश्चर्य नहीं होगा। वैसे गठबंधन राजनीति में वह भारत‌ रत्न कर्पूरी ठाकुर के योग्य शिष्य साबित हो चुके हैं।

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‘भारत रत्न’ कर्पूरी ठाकुर बिहार की राजनीति में वह नाम है, जिन्हें नीतीश कुमार का राजनीतिक गुरु माना जाता है।और गठबंधन करने में सिद्ध बिहार के दो बार मुख्यमंत्री रहे कर्पूरी ठाकुर राजनीति में कांग्रेस पार्टी की राजनीतिक चालों को भी समझते थे और उन्हें समाजवादी खेमे के नेताओं की महत्वाकांक्षाओं की भी बखूबी परख थी। वे सरकार बनाने के लिए लचीला रूख अपना कर किसी भी दल से गठबंधन कर सरकार बना लेते थे, लेकिन अगर मन मुताबिक काम नहीं हुआ तो गठबंधन तोड़कर निकल भी जाते थे। यही वजह है कि उनके दोस्त और दुश्मन दोनों को ही उनके राजनीतिक फैसलों के बारे में अनिश्चितता बनी रहती थी। और नीतीश कुमार के कर्पूरी ठाकुर के बारे में विचार उनके इस कथन से समझे जा सकते हैं कि “‘मुझे लोकनायक  जयप्रकाश नारायण, छोटे साहब  सत्येन्द्र नारायण सिन्हा और जननायक कर्पूरी ठाकुर के चरणों में जानने और सीखने का मौका मिला है।” और जिस तरह नीतीश कुमार के मुख्यमंत्री पद पर बने रहने और गठबंधन करने और तोड़ने में उनकी कुशलता पर गौर करें तो जगजाहिर है कि वह ही कर्पूरी ठाकुर के असल शिष्य हैं।

भले ही सुशील मोदी, लालू प्रसाद यादव और रामविलास पासवान को भी कर्पूरी ठाकुर का राजनीतिक शिष्य माना जाता है, लेकिन गठबंधन धर्म को कर्पूरी ठाकुर की तरह समझने में नीतीश कुमार की बराबरी कोई दूसरा शिष्य नहीं कर पाया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी अगर किसी राजनेता के कायल होंगे तो वह नाम नीतीश कुमार का ही है। बिहार में जातिगत जनगणना के कांग्रेस के एजेंडे पर अमल कर अपनी विशेष पहचान बना चुके नीतीश कुमार की भूमिका आईएनडीआईए गठबंधन में भी महत्वपूर्ण थी। पर राहुल गांधी की बिहार में सभा के मंच पर शामिल होने से पहले ही नीतीश कुमार आरजेडी-कांग्रेस गठबंधन को तिलांजलि देकर एनडीए-भाजपा के हो गए। ठीक उसी तरह जैसा कर्पूरी ठाकुर के बारे में कहा जाता है कि वे किसी भी दल से गठबंधन कर सरकार बना लेते थे और अगर मन मुताबिक काम नहीं हुआ तो गठबंधन तोड़कर निकल भी जाते थे। यही वजह है कि उनके दोस्त और दुश्मन दोनों को ही उनके राजनीतिक फैसलों के बारे में अनिश्चितता बनी रहती थी। नीतीश कुमार पर उनके राजनीतिक गुरु कर्पूरी ठाकुर की तरह ही यह बातें अक्षरशः सही साबित होती हैं। गठबंधन में शामिल भाजपा-एनडीए को छोड़ना या पकड़ना हो तो वह नीतीश कुमार के बाएं हाथ का खेल है। आरजेडी-कांग्रेस के साथ गठबंधन के लिए हाथ मिलाना हो या ठेंगा दिखाना हो तो भी यह नीतीश कुमार के लिए खेल-खेल की बात है। कब कौन दोस्त बन जाए और कब उससे मन भर जाए, यह कोई दोस्त नहीं बल्कि नीतीश कुमार ही तय करते हैं।

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मोदी-नीतीश के 28 जनवरी 2024 के ट्वीट्स पर नजर डालें तो मोदी ने लिखा है कि बिहार में बनी एनडीए सरकार राज्य के विकास और यहां के लोगों की आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए कोई कोर-कसर नहीं छोड़ेगी। नीतीश कुमार जी को मुख्यमंत्री और सम्राट चौधरी जी एवं विजय सिन्हा जी को उप मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने पर मेरी बहुत-बहुत बधाई। मुझे विश्वास है कि यह टीम पूरे समर्पण भाव से राज्य के मेरे परिवारजनों की सेवा करेगी। तो वहीं राजद गठबंधन से विदा लेकर भाजपा-एनडीए गठबंधन में शामिल हो फिर सीएम की शपथ लेने वाले नीतीश ट्वीट पर अपने विचार साझा कर रहे हैं कि “मैं माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी को उनके द्वारा दी गई बधाई एवं शुभकामना के लिए अपनी ओर से और समस्त बिहारवासियों की ओर से आभार प्रकट करता हूं तथा उनके सहयोग के लिए हृदय से धन्यवाद देता हूं। बिहार में एनडीए गठबंधन के साथ नई सरकार का गठन हो चुका है। जनता मालिक है और उनकी सेवा करना हमारा मूल उद्देश्य है। केंद्र और राज्य में एनडीए गठबंधन की सरकार होने से विकास कार्यों को गति मिलेगी और राज्यवासियों की बेहतरी होगी। मैं माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी को उनके द्वारा दी गई बधाई एवं शुभकामना के लिए अपनी ओर से और समस्त बिहारवासियों की ओर से आभार प्रकट करता हूं तथा उनके सहयोग के लिए हृदय से धन्यवाद देता हूं।

और प्रभु राम जानें कि यह भी एक संयोग ही है या सब सुनियोजित है कि मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की बिहार यात्रा के दस दिन में ही वहां नीतीश कुमार राजद गठबंधन तोड़कर एनडीए के गठबंधन में शामिल हो गए हैं। 18 जनवरी 2024 को मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने पटना में श्री कृष्ण चेतना विचार मंच द्वारा आयोजित अभिनंदन समारोह में भाग लिया था। तो अपने विचार व्यक्त किए थे कि भगवान राम की बाल स्वरूप में प्राण प्रतिष्ठा का आमंत्रण स्वीकार न करने वाले लोगों को अपने फैसले पर पुनर्विचार करने की जरूरत है। भले ही यह संयोग मात्र ही हो, पर दस दिन बाद ही 28 जनवरी 2024 को बिहार में नीतीश कुमार भाजपा गठबंधन की सरकार के सीएम बन गए। ऐसे में डॉ. मोहन यादव को जल्द ही कर्नाटक की एक यात्रा कर ही लेनी चाहिए ताकि वहां भी डबल इंजन की सरकार बन विकास को गति मिलने की राह प्रशस्त हो जाए। वैसे अब देश-दुनिया की नजरें कर्नाटक की तरफ ही हैं। पर बिहार के बिस्मार्क नीतीश कुमार का नाम बिहार के राजनीतिक इतिहास में दर्ज हो चुका है, जो गठबंधन के नाम पर दोस्त और दुश्मनों की समझ के बाहर हैं…।