एक सरपंच साहब ने तीन दिन पहले ही भ्रष्टाचार मुक्त पंचायत बनाने की शपथ ली थी। और ये जांच एजेंसियों को ईमानदारों की छवि खराब करने के अलावा जीवन में कुछ नहीं सूझता। बेचारे राजा हरिश्चंद्र के बाद दूसरे नंबर के सत्यवादी सरपंच साहब को तीन दिन बाद ही जांच एजेंसी ने थोड़ी यानि ऊंट के मुंह में जीरा लायक भी नहीं …समझ रहा ना विनोद सिर्फ एक लाख की रिश्वत लेते धर दबोचा। खबर लोग ऐसे चटखारे लेकर चबा रहे हैं, जैसे हजारों करोड़ का घोटाला जैसा भ्रष्टाचार सामने आ गया हो। देख रहा है ना बिनोद, अब सरपंच का चुनाव लड़ पाना कोई मामूली बात है क्या। लाखों के वारे-न्यारे होते हैं। बेचारा सरपंच क्या करता और क्या न करता। किसी की जमीन की रजिस्ट्री का मामला था, तो लालच आ ही गया कि उधारी चुकाने का सिलसिला ही शुरू हो जाए। सरपंच साहब को क्या पता था कि ससुरा जाल में फंसाने के लिए दाना डाल रहा है। विरोधी पक्ष की साजिश थी, बेचारा दाना चुगने के नाम पर धरा गया ईमानदार सरपंच। देख रहा है ना… घोर कलियुग आ गया है अब बिनोद…।
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अब ऊ सरपंच की बात तो ठीक है कि लोकतंत्र बचाने की खातिर चुनाव लड़ा था। लेकिन उधर राजधानी में बाबू के यहां पचासी लाख तो नकद ही मिल गए जांच एजेंसी को। बाबू जीवन भर कड़की में गुजार-गुजार कर बच्चों को बढ़ा कर पाया था। ईश्वर को दया आ गई और डॉक्टरन की पढ़ाई वाले कॉलेजन-अस्पतालन कौ बाबू बना दओ। अब बेचारो बाबू दयावान। कॉलेजन-अस्पतालन के बंद होवै की नौबत आ जाए, ऐसी-ऐसी गलती पकड़ में आ गईं। बाबू जी के सामने आकै गिड़गिड़ान लगे बेचारे अस्पताल वाले। तबऊ बात न बनीं तो खीसैं निपोर कैं मक्खन लगान लगे। फिरऊं काम न बनत दिखाओ तो लक्ष्मी जी को लालच दैन लगे। बेचारे बाबू को मन दया से पानी-पानी हो गओ, तब तक नईंं माने जै गलती करवे बारे अस्पतालन के मालिक। सो बाबूजी भी लेत रओ लक्ष्मी और करत रओ दया और सुधारत रओ मरीजन और डॉक्टरी की पढ़ाई करवे वाले विद्यार्थियों को भविष्य। अब ई जांच एजेंसी बालन खौं ई दयावान बाबू पै भी दया नईं आई। और बिना शिकायत कै भी, आय से अधिक संपत्ति कौ मामलौ बनाकैं धमक परे बड़े भोर से बाबू जी के घर। बाबू के हाथ-पांव फूल गऐ और ऊंनें तो फिनायल गटक के जान देवे में कौनऊ कसर नईं छोड़ी। वो तो ईश्वर खौं दया आ गई बेचारे बाबू पै, सो जान बख्श दई। पर तबऊ ई जांच एजेंसी वारन को दिल नईं पसीजौ। बेचारे बाबू को दिल तो हर गलती करवे बारे पे पसीज जात तौ, बस थोड़ी सी मान-मनौव्वल में। अब पचासी लाख और दुनिया की जायदाद देखकैं ई एजेंसी वारन ने बाबू जी की इतनी बदनामी कर दई के फिनायल पीकै जिंदा बच गए बाबू जी अब जिंदा लाश बन गए। का करैं इन एजेंसी वारन खो। देख रहा है ना बिनोद, घोर कलियुग आ गऔं अब तो…।
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बाबू जी कौ मन ई सै ज्यादा दुखी है कि पचासी लाख में हमें फिनायल पीनै पड़ रऔ और वे सब गुलछर्रा मार रयै जिनकै पास करोड़ों और अरबों को हिसाब नईंया। सही है ना बिनोद…। अब ऊ मंत्री की प्रेमिका के घर से मिले नोटन खौं गिनत-गिनत तौ मशीनें ही थक गईं बंगाल में। बेचारो गरीब बाबू के घर पचासी लाख नकद का मिले, सब आंखें फार-फार के नजर लगा रए पूरे महकमे खौं। सही है ना बिनोद।
और ऊं बड़े बाबू बनी मेमसाहब के घर-परिवार में भी तौ नोटन के गद्दा भरे मिले थे। ठहाका मार कै हंसई पड़े बाबू जी उनकी याद कर कैं कि उनके साहब भी तौ अस्पतालई खोल रए थे। का करैं, ई अस्पतालन खौंई नजर लग गई है। नौन-मिर्ची लैके नजर उतारवे जैसी नौबत आ गई। घोर कलियुग आ गऔ। देख रहा है बिनोद…।
अब उन विधायकन के घरन से करोड़ों मिल गए, तब कौनऊ के पेट में दर्द नहीं भयौ। बेचारन पर भ्रष्टाचार के आरोपन में नख से सिर तक डूबी पार्टी ने भी रहम नई करी और पार्टी से दूध में पड़ी मक्खी की तरह निकार कैं फैंक दओ। अब तुम्हई बताओ बिनोद कै सदस्यन खौं खरीदवै में कैऊ जनपद और जिला पंचायत अध्यक्षन के दावेदारन के घर के खपरा बिक गए। तौ का हमें पता नईंया कै विधायक बनवौ कितनौ कठिन काम है। अब वे बेचारे अगले चुनाव लड़वे की तैयारी कर रए थे और जांच एजेंसी ने उनईं पे छापा डार दऔ। कितनी जादती है ना बिनोद…।
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अब जब बड़े साहब खुदईं कतते कै एक रुपईया भेजत तो नैचे तक पंद्रह पईसा पहुंच पात, तब कोऊ खौं कौनऊं समस्या नई हती। अब जब सब हिसाब सीधौ खातन से हौन लगौ, तब भी बेचारे ईमानदारी से काम में जुटे इज्जतदार बाबू, अफसरनन खौं इन एजेंसियन ने बदनाम करके रख दऔ। जीवौई तो हराम कर दऔ इनकौ। दाग ऐसो लग जात कै फिर न जीतन बनत और न मरतन। समझ रए न बिनोद…।
वे मूंछन वारे नेताजी ठीकई तो कहत ते न मूछें ऐंठ कैं कि रुपईया खुदा नहीं तो खुदा से कम भी नहीं है साहब…। और वों कहावत भी तो बहुतई पुरानी है कै बाप बड़ो न भईया और सबसे बड़ो रुपईया…। अब चलो बिनोद…वौ पंद्रह अगस्त आ रऔ है सो हर घर तिरंगा लगावे को काम करने है…। अब ई नजर भी रखने है कि एजेंसी वारे तिरंगा बेचवे बारन खौं भी बदनामी और मुसीबत में न डार देवै। देखत रईओ बिनोद…। मध्यप्रदेश में आखिर लगनई लगे आरोप और फिर चल गओ आरोप-प्रत्यारोप का दौर। तिरंगा अभियान पर कांग्रेस के आरोप-प्रत्यारोपों खौं लैकें आखिर सीएम शिवराज खौं ट्विटर पर लिखनेई परौ, ‘देख रहा है बिनोद…ये कांग्रेसी अब तिरंगे पर भी राजनीति कर रहे हैं!’ और वे विपक्षी जिन पर ईडी को छापा पड़ रऔ, उनके नेता सरकार खौं धमका रऐ कै वक्त बदलै तब जौ परंपरा कौ शिकार अबै हंसवे वारे नेतन के मौड़ी-मौड़न खौं सोई भुगतने परे। काय सै कै मुखिया कै तो बाल-बच्चा नईंयां सो धमकी भी बाकी नेतन खौंईं दै सकत। मतलब चोरन खौं पकरवे में भी धमकी मिल रई, देख रहा है ना बिनोद…। आजादी के 75 साल हो गए और अमृत महोत्सव मनावे और स्वर्णिम भारत बनावे की तैयारियां चल रईं है। अब गांव की पंचायत के मुखिया से लेकर प्रदेश और देश के मुखिया तक के मुंह पर विकास और भरोसा के अलावा कोनऊं शब्द नईंयां। दिन-रात मेहनत हो रई, देख रहा है ना बिनोद…।