
Biryani Video: लोकतंत्र की थाली में परोसी जा रही ‘बिरयानी राजनीति’,बिहार चुनाव में ‘रेवड़ी संस्कृति’ पर बवाल
विक्रम सेन की रिपोर्ट
किशनगंज/नई दिल्ली । बिहार की राजनीति में इन दिनों एक “बिरयानी वीडियो” ने गर्मी बढ़ा दी है।
किशनगंज जिले की बहादुरगंज विधानसभा सीट से एआईएमआईएम (AIMIM) के प्रत्याशी तौसीफ आलम के नामांकन के मौके पर समर्थकों को बिरयानी बांटने का आयोजन अब वोटरों को लुभाने वाली ‘रेवड़ी राजनीति’ का नया प्रतीक बन गया है।
नामांकन से पहले आयोजित दुआ कार्यक्रम में हजारों की भीड़ उमड़ पड़ी, लेकिन जब बिरयानी के डिब्बे बंटने शुरू हुए, तो हालात काबू से बाहर हो गए।
लोग इस कदर टूट पड़े कि देखते ही देखते भगदड़ मच गई — डिब्बे छीनने, धक्का-मुक्की और गिरने-पड़ने के दृश्य सोशल मीडिया पर वायरल हो गए।
‘बिरयानी वितरण’ बना चुनावी तमाशा
जानकारी के अनुसार, पूर्व विधायक तौसीफ आलम ने गुरुवार को नामांकन दाखिल करने से पूर्व एक धार्मिक दुआ कार्यक्रम रखा था।
उन्होंने सोशल मीडिया पर पहले ही घोषणा की थी कि कार्यक्रम के बाद “बिरयानी का इंतज़ाम रहेगा” — और यही पोस्ट अब राजनीतिक चर्चा का विषय बन गई है।
जैसे ही भोजन आया, भीड़ ने नियंत्रण खो दिया। लोग डिब्बे लूटते हुए नजर आए, कई जमीन पर गिर गए, तो कुछ लोगों ने खाना लेकर भागने की कोशिश की।
मोबाइल कैमरों में कैद यह वीडियो अब इंटरनेट मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहा है।
*सोशल मीडिया पर प्रतिक्रियाओं की बाढ़*
वीडियो को एक्स (पूर्व ट्विटर) पर @MrTiwaria नाम के अकाउंट से साझा किया गया है, जिसे अब तक 7000 से अधिक बार देखा जा चुका है।
एक यूज़र ने लिखा — “यह चुनावी बिरयानी नहीं, लोकतंत्र की हकीकत है।”
दूसरे ने व्यंग्य किया — “बिरयानी भी अब वोट बैंक का नया मसाला बन गई है।”
पाकिस्तानियों जैसा माहौल बना दिया है बिहार के मुसलमानों ने भारत के बिहार को 😡😡
बिहार– किशनगंज जिले की बहादुरगंज विधानसभा सीट से AIMIM प्रत्याशी तौसीफ आलम के नॉमिनेशन प्रोग्राम में बिरयानी के लिए लूट मची !! pic.twitter.com/unQaKQOp4w
— Mr. Tiwari 🇮🇳 (@MrTiwaria) October 16, 2025
कई लोगों ने चिंता जताई कि “भोजन के नाम पर भीड़ का यह दृश्य बिहार की सामाजिक विडंबना दर्शाता है।”
*प्रत्याशी का पक्ष और नियमों की अनदेखी*
जब इस मामले पर तौसीफ आलम से सवाल किया गया तो उन्होंने कहा — “यह कोई चुनावी स्टंट नहीं था। फातेहा खानी के बाद प्रेमपूर्वक बिरयानी बनाई गई थी। यह भीड़ मुझसे स्नेह रखने वाले लोगों की थी।”
हालाँकि, नामांकन के दौरान उनके समर्थक निर्वाचन नियमों की खुली अवहेलना करते देखे गए।
जहाँ अनुमंडल कार्यालय में उम्मीदवार के साथ केवल चार लोगों को प्रवेश की अनुमति थी, वहाँ दर्जनों समर्थक उनके साथ भीतर पहुँच गए और कार्यालयों में भीड़ लगाए रहे।
*‘रेवड़ी संस्कृति’ का चुनावी स्वाद*
विशेषज्ञों का मानना है कि “बिरयानी वितरण” जैसी घटनाएँ भारत की चुनावी संस्कृति में पनप रही ‘रेवड़ी राजनीति’ की एक झलक हैं —
जहाँ दल और उम्मीदवार, जनता की वास्तविक समस्याओं पर विमर्श करने के बजाय खाद्य, वस्त्र या नकद लाभ जैसी तत्कालीन लालच को प्राथमिकता देने लगे हैं।
बिहार की बहादुरगंज विधानसभा सीट से वायरल हुआ “बिरयानी भगदड़ वीडियो” केवल एक हास्यास्पद दृश्य नहीं, बल्कि लोकतंत्र के उस कमजोर पहलू की झलक है जहाँ वोट को अब संवैधानिक चेतना नहीं, बल्कि थाली में परोसे गए स्वाद से साधा जा रहा है। चुनाव के मौसम में ‘रेवड़ी संस्कृति’ की यह परंपरा अब केवल घोषणाओं तक सीमित नहीं रही — वह धरातल पर भोजन, उपहार, वस्त्र और नकद के रूप में मतदाता की अंतरात्मा पर सीधा प्रभाव डालने लगी है।
यह स्थिति न केवल चुनावी शुचिता के सिद्धांतों के खिलाफ है, बल्कि यह लोकतंत्र की आत्मा — “विचार आधारित मताधिकार” — को आर्थिक और भावनात्मक प्रलोभनों के जाल में बाँध देती है जहाँ जनता की प्राथमिकता नीति, चरित्र और कार्यक्षमता होनी चाहिए, वहाँ “बिरयानी” या “रेवड़ी” का वितरण उसकी राजनीतिक दृष्टि को धुंधला कर देता है।
*बिहार में ‘फ्रीबी पॉलिटिक्स’ की परंपरा*
बिहार की राजनीति में ‘फ्रीबी’ या ‘रेवड़ी संस्कृति’ नई नहीं है।
कभी मुफ्त साइकिल, कभी लैपटॉप, तो कभी राशन और नकद सहायता —
हर चुनाव में राजनीतिक दल किसी न किसी रूप में वोटरों को तत्काल लाभ देने का वादा करते रहे हैं।
अब यह परंपरा “बिरयानी से वोट की भूख मिटाने” तक पहुँच गई है।
राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि यह संस्कृति लोकतंत्र की परिपक्वता पर प्रश्नचिह्न है, क्योंकि मतदान के निर्णय को आर्थिक या भौतिक प्रलोभनों से प्रभावित नहीं होना चाहिए।
*चुनाव की पृष्ठभूमि*
बिहार में विधानसभा चुनाव 6 और 11 नवंबर 2025 को होने हैं।
नामांकन प्रक्रिया जारी है और सभी दल शक्ति प्रदर्शन व भीड़ प्रबंधन के प्रयोग कर रहे हैं।
ऐसे में “बिरयानी वाली भगदड़” ने एक बड़ा राजनीतिक संकेत दिया है कि इस बार भी चुनावी मैदान में मुद्दों से ज़्यादा “मुफ्त की पेशकशें” और “भावनात्मक प्रदर्शन” हावी हैं।
किशनगंज की यह घटना सिर्फ एक वीडियो नहीं, बल्कि उस राजनीतिक मानसिकता का दर्पण है, जिसमें
जनहित के मुद्दे पीछे और “रेवड़ी की राजनीति” आगे है।
बिरयानी की एक प्लेट ने बिहार की राजनीति में वह स्वाद भर दिया है, जो लोकतंत्र के स्वास्थ्य के लिए कटु, विचारणीय और चेतावनी पूर्ण है।




