महाराष्ट्र की राजनीति सीटों को लेकर भाजपा और विपक्षी गठबंधन उलझन में

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महाराष्ट्र की राजनीति सीटों को लेकर भाजपा और विपक्षी गठबंधन उलझन में

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 नवीन कुमार

महाराष्ट्र में भी दो चरणों के मतदान हो गए हैं और 7 मई को तीसरे चरण के मतदान होने हैं। दो चरणों में कम मतदान होने से राजनीतिक दलों की नींद उड़ी है। कोई भी राजनीतिक दल जनता के मूड को परख नहीं पा रहा। सत्तारूढ़ दल भाजपा यह दावा नहीं कर पा रही है कि मोदी की वापसी हो रही है। कांग्रेस सहित तमाम विपक्षी दल भी अपने ही गणित में उलझा हुआ है। बावजूद इसके भाजपा गठबंधन और विपक्षी गठबंधन अभी भी सीटों के बंटवारे के उलझन को सुलझाने में नाकाम हैं। भाजपा गठबंधन में 9 सीटों पर माथापच्ची चल रही है और भाजपा की तरह ही विपक्ष के घटक दलों ने भी कुछ सीटों पर अपनी दबंगई दिखा दी है। इससे दोनों गठबंधनों के बीच मतभेद बने हुए हैं।

एक-दूसरे पर कमजोर सीटों के बंटवारे में हार का डर जता रहे हैं। भाजपा गठबंधन के शिंदे गुट और अजित गुट आपस में ही मिलकर उलझन को सुलझाने में लगे हुए हैं। लेकिन, कांग्रेस के नेताओं ने अपनी नाराजगी पार्टी के आला नेता तक पहुंचाई। इस वजह से मुंबई कांग्रेस की अध्यक्ष वर्षा गायकवाड को मुंबई उत्तर मध्य से टिकट मिल गया तो वह खुश हो गईं। लेकिन, पार्टी के वरिष्ठ और मुस्लिम नेता नसीम खान नाराज हो गए। उनका कहना है कि पार्टी सिर्फ मुस्लिमों का वोट चाहती है, पर मुस्लिम समुदाय को टिकट देने से परहेज कर रही है। कांग्रेस की इस नीति से मुस्लिम समुदाय नाखुश है और इसका बुरा असर चुनाव में पड़ सकता है।

दरअसल, नसीम भी टिकट मिलने का इंतजार कर रहे थे। उन्हें निराशा हाथ लगी है। वैसे, नसीम न सिर्फ मुस्लिम नेता हैं बल्कि उत्तर भारतीय नेता भी हैं। अगर कांग्रेस ने उन्हें चुनाव मैदान में उतारा होता तो खासकर मुंबई के मुस्लिम और उत्तर भारतीय समाज का वोट कांग्रेस के पाले में आ सकता था। क्योंकि, भाजपा से उत्तर भारतीय समाज खुश नहीं है। वजह यह है कि भाजपा में उत्तर भारतीयों की स्थिति मुसलमानों जैसी है। भाजपा भी उत्तर भारतीयों के सिर्फ वोट चाहती है मगर उसे टिकट देने से परहेज करती है। मुंबई में चुनावी राजनीति में उत्तर भारतीय निर्णायक भूमिका में हैं। लेकिन मोदी की भक्ति में उत्तर भारतीय विद्रोह का रूख अख्तियार नहीं कर पा रहे हैं।

मुसलमानों और उत्तर भारतीयों की स्थिति तो सबके सामने है। लेकिन, सीटों के बंटवारे में जिस तरह से दबाव की राजनीति हो रही है उसमें दोनों गठबंधन के कुछ घटक दलों की हालत मुस्लिमों और उत्तर भारतीयों जैसी ही मानी जा रही है। पहले भाजपा गठबंधन में दबाव तंत्र पर नजर डालते हैं। वैसे, भाजपा ने अपनी यह सोच मजबूत कर रखी है कि सत्ता में उसके सहयोगी दल एकनाथ शिंदे की शिवसेना और अजित पवार की एनसीपी चुनावी मैदान में इतने भरोसेमंद नहीं हैं कि उसके दम पर चुनाव जीता जा सके। इसलिए भाजपा ने सीटों के बंटवारे में अपनी मर्जी चला रही है जिससे खासकर शिंदे अपनी पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं के बीच कमजोर नजर आ रहे हैं।

दो चरणों के हो चुके चुनावों में भी शिंदे की कुछ सीटों पर भाजपा ने अपने उम्मीदवार उतारे। जबकि, शिंदे अपने गुट के साथ पूरी मेहनत से मोदी को तीसरी बार प्रधानमंत्री बनाने के लिए काम कर रहे हैं। शिंदे गुट का मानना है कि भाजपा ने जिस तरह से उनकी सीटों पर अपने उम्मीदवार थोपे उससे उनके समर्थक नाराज हैं। रत्नागिरी-सिंधुदुर्ग में भी लंबे संघर्ष के बाद भाजपा ने नारायण राणे को टिकट दिया। इससे शिंदे गुट बेहद नाराज है। गुट का कहना है कि जिस सीट पर उनके सांसद हैं या 2019 में उनकी पार्टी के उम्मीदवार दूसरे नंबर थे उस सीट पर उनका हक है। लेकिन, उन सीटों पर भाजपा ने अपनी मर्जी चलाई जिससे भाजपा और शिंदे गुट की शिवसेना के बीच अच्छे संबंध नहीं दिख रहे हैं।

शिंदे भी कल्याण से अपने बेटे श्रीकांत शिंदे को टिकट नहीं दिला पाए हैं। हालांकि, भाजपा नेता देवेंद्र फडणवीस ने मीडिया में श्रीकांत शिंदे को उम्मीदवार बताया है! लेकिन, उनके नाम की अब तक अधिकृत रूप से घोषणा नहीं की गई। शिंदे को अब भी कल्याण के अलावा ठाणे, पालघर और मुंबई की सीटों को पाने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। यह माना जाता है कि मुंबई की 6 सीटों में से जितनी ज्यादा सीटों पर जिस पार्टी का कब्जा होगा वही महाराष्ट्र में सबसे बड़ी ताकतवर पार्टी होगी। चूंकि, शिंदे की लड़ाई उद्धव ठाकरे की शिवसेना से है तो वह मुंबई की ज्यादातर सीटों पर दावा कर रहे हैं। लेकिन भाजपा उनके मंसूबे पर पानी फेर रही है।

मुंबई की ज्यादातर सीटें भाजपा अपने पास रखना चाहती है। भाजपा और शिंदे गुट के बीच 9 सीटों के बंटवारे पर तालमेल नहीं बैठ पाई। भाजपा गठबंधन के घटक दलों में अजित गुट भी शामिल है। अजित गुट भी भाजपा के दबाव तंत्र से त्रस्त है। भाजपा ने अजित गुट की सीटों पर भी अपना दावा ठोका है। भाजपा ने माढ़ा सीट पर रणजीतसिंह नाइक निंबालकर को बतौर उम्मीदवार थोपा है। इसका विरोध होने लगा और मौके की नजाकत को परखते हुए शरद पवार ने भाजपा नेता धैर्यशील मोहिते पाटील को अपने पाले में खींच लिया। भाजपा से टिकट नहीं मिलने पर विद्रोही मोहिते पाटील ने शरद का दामन थाम लिया। मोहिते पाटील को एनसीपी नेता और विधान परिषद के पूर्व सभापति रामराजे नाइक निंबालकर का भी समर्थन मिल गया है। भाजपा के कई सीटों पर उम्मीदवार थोपने से घटक दलों के कार्यकर्ताओं में गुस्सा है।

इधर, विपक्षी गठबंधन में भी भाजपा जैसा दबाव तंत्र देखने को मिल रहा है। लेकिन, विपक्ष में एक खासियत यह है कि इसने 48 सीटों को आपस में बांट लिया। बावजूद इसके कांग्रेस इंडिया गठबंधन के महा विकास आघाड़ी के शिवसेना (उद्धव गुट) और एनसीपी (शरद गुट) के रवैए से नाराज है और आरोप लगाया है कि उद्धव और शरद ने उसके बड़े दिल के साथ खिलवाड़ किया है। कांग्रेस के नेताओं का कहना है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में सबसे बड़ा मुद्दा लोकतंत्र और संविधान को बचाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को हराना है। इसलिए कांग्रेस ने सीटों के बंटवारे के लिए अपना दिल बड़ा किया। मगर उद्धव और शरद ने कांग्रेस के कार्यकर्ताओं की भावनाओं का ख्याल नहीं रखा और सीटों के बंटवारे के बावजूद चार सीटों पर उद्धव और शरद ने अपनी मनमानी की।

उद्धव और शरद से जिन चार सीटों को बदलने की बात की जा रही है उसमें से सांगली सीट पर कांग्रेसी कार्यकर्ता सबसे ज्यादा नाराज दिख रहे हैं। यहां पूर्व मुख्यमंत्री वसंत पाटील के पोते विशाल पाटील निर्दलीय उम्मीदवार बन गए हैं और इसका खामियाजा उद्धव गुट के उम्मीदवार चंद्रहार पाटील को भुगतना पड़ेगा। क्योंकि, उद्धव ने इस सीट पर फैसला होने से पहले ही चंद्रहार को उम्मीदवार बना दिया। जबकि कांग्रेस की ओर से शुरू से ही इस सीट की मांग की जा रही थी। शरद पर भी मनमानी करने का आरोप लग रहा है। उन्होंने भी भिवंडी सीट पर समझौता से पहले ही सुरेश म्हात्रे को अपना उम्मीदवार बना दिया। कांग्रेस सांगली और भिवंडी में उद्धव गुट और शरद गुट से अपनी बेहतर स्थिति बता रही है। चुनावी राजनीति है तो स्वार्थ की भी बात आती है।

कार्यकर्ताओं की नाराजगी की बात करते हुए कुछ नेता अपने टिकट की जुगाड़ में भी लग गए। इसमें मुंबई कांग्रेस की अध्यक्ष वर्षा गायकवाड के नाम की भी चर्चा है। वह शुरू से अपने टिकट की जुगाड़ में लगी रहीं और उन्हें सफलता भी मिल गई। उन्हें मुंबई उत्तर मध्य से टिकट मिल गया। वह दलित नेता हैं। उनका मुकाबला भाजपा के उम्मीदवार उज्ज्वल निकम से होगा। इधर कांग्रेस के मुस्लिम नेता नसीम खान टिकट से वंचित रह गए। वह वर्षा से ज्यादा पुराने कांग्रेसी नेता हैं और उनकी पैठ मुसलमानों के साथ उत्तर भारतीयों में ज्यादा है। कांग्रेस के कोटे में मुंबई उत्तर सीट बची हुई है जहां पर किसी को अब तक उम्मीदवार नहीं बनाया गया है। इस सीट को जीतना कांग्रेस के लिए बड़ी चुनौती है।

भाजपा ने यहां से अपने कद्दावर नेता और केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल को मैदान में उतारा है जो प्रचार में जुटे हुए है। कांग्रेस यहां पर मैदान में उतरने से पहले ही हार की स्थिति में दिख रही है। इसलिए उसने इस सीट को उद्धव गुट से बदलने की मांग की है। लेकिन उद्धव गुट ने कहा है कि अगर कांग्रेस को यह सीट नहीं चाहिए तो उद्धव गुट इस सीट पर भी अपने उम्मीदवार उतार सकती है। अब हाथ से यह सीट जाने से बेहतर है कि कांग्रेस इस सीट पर नसीम खान को उतारने के बारे में सोच रही है। लेकिन एक मुस्लिम उम्मीदवार के लिए यह सीट बहुत ज्यादा सुरक्षित नहीं है। क्योंकि, यह सीट मराठी, गुजराती, राजस्थानी और उत्तर भारतीय बहुल है। ऐसे में कांग्रेस के लिए संकट है। अब जिस तरह से सीटों के बंटवारे में कांग्रेस ने अपना दिल बड़ा किया उसी तरह से अपने उम्मीदवार को मैदान में उतारने से लिए भी उसे मतदाताओं के भरोसे अपना दिल बड़ा करना पड़ेगा।