भोपाल: भाजपा ने सत्ता और संगठन स्तर पर आदिवासियों का भरोसा जीतने के लिए अपनाई गई रणनीति में जिस तरह से सफलता हासिल की है, अब उसे जिला स्तर पर संगठनात्मक गतिविधियों और विधायकों के संपर्कों के जरिये स्थानीय महत्व पर फोकस किया जाएगा। भाजपा विधायकों की आज से शुरू होने वाली बैठक में यह भी पार्टी की रणनीति का एक अहम हिस्सा होगा। विधायकों को इसके लिए अपने स्तर पर एक सेल बनाकर काम करने का निर्देश भी मुख्यमंत्री, प्रदेश अध्यक्ष और वरिष्ठ नेता दे सकते हैं ताकि जयस, गोंडवाना जैसे क्षेत्रीय दलों की जातीय राजनीति को रोका जा सके।
छह माह से संगठनात्मक और सरकार की योजनाओं के जरिये रणनीति बनाने और उसके क्रियान्वयन में जुटी भाजपा ने कांग्रेस के साथ गोंडवाना, जयस समेत अन्य स्थानीय संगठनों को कमजोर करने में सफलता हासिल की है। विधानसभा चुनावों के दौरान ऐसे संगठनों के स्थानीय नेता आदिवासी बाहुल्य सीट पर भाजपा की जीत में रोड़ा बनते रहे हैं।
भाजपा पिछले छह माह से सिर्फ एक फार्मूले पर काम कर रही है कि आदिवासी के मन में यह भाव पैदा किया जाएगा कि भाजपा अच्छी पार्टी तो है ही, वह अपनी ही पार्टी है। हर आदिवासी के मन में यह भावना लाने का काम किया जा रहा है कि भाजपा ही उनके हित में काम करती है।
इस योजना के लिए संगठन और सरकार के स्तर पर की गई प्लानिंग का असर यह हुआ है कि अलीराजपुर जिले की जोबट और खंडवा लोकसभा सीट की आदिवासी बाहुल्य सीटों पर भाजपा का वोट प्रतिशत बढ़ा है और उपचुनाव में जीत भी हासिल हुई है। अब विधायकों की बैठक में 24 व 25 नवम्बर को इससे संबंधित रणनीति पर फिर चर्चा होगी।
यह थी पिछले चुनाव में स्थिति
वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव परिणाम के आधार पर यह बात साफ हो चुकी है कि प्रदेश के आदिवासी बाहुल्य जबलपुर और इंदौर संभाग की विधानसभा सीटों पर गोंडवाना गणतंत्र पार्टी, जयस समेत अन्य आदिवासी संगठनों का प्रभाव है और चुनाव के दौरान इनसे जुड़े नेताओं को सामने लाकर ये संगठन भाजपा और कांग्रेस के वोट कम करने का काम करते हैं। पिछले चुनाव के दौरान अन्य दलों के रूप में चिन्हित किए गए इन दलों को 5.18 प्रतिशत वोट मिले थे जबकि बसपा को 5.01 प्रतिशत वोट हासिल हुए थे।