

BJP: नए अध्यक्ष से बनेंगे, नए फील्डर!
छोटू शास्त्री
हेमंत खंडेलवाल के भाजपा प्रदेश अध्यक्ष बनने से उन लोगों को बड़ा नुकसान हुआ, जो निगम-मंडल में एडजस्ट होने के लिए अभी तक वीडी शर्मा के पाले में फील्डिंग कर रहे थे। अचानक स्थिति बदली और नए अध्यक्ष सामने आ गए। ऐसी स्थिति में उन लोगों को समझ में नहीं आ रहा कि अब क्या किया जाए! क्योंकि, हेमंत खंडेलवाल के तेवर देखकर लगता नहीं कि वे वीडी शर्मा को लेकर असमंजस में होंगे। ऐसी स्थिति में नए राजनीतिक फील्डर पैदा होंगे और पुराने घर बैठ जाएंगे। क्योंकि, राजनीति में ऐसा ही होता है। एक नेता के बदलते ही पूरी धारा बदल जाती है।
*मंत्री की राह पर चलते 2 IPS अधिकारी*
प्रदेश सरकार के एक मंत्री द्वारा दान में जमीन लेकर अच्छी खासी फजीहत कराने की स्याही अभी सूखी भी नहीं थी, कि अब पश्चिमी मध्यप्रदेश के दो IPS अधिकारी भी मंत्री जी की राह पर चल पड़े। दरअसल, ये दोनों अधिकारी भी अपनी काली कमाई से किसी गैर रिश्तेदार के नाम जमीन खरीदते हैं, फिर उससे दान में वह जमीनें अपने परिजनों के नाम लिखवा लेते है। बताया जाता है कि यह काम बड़े ही गुपचुप तरीके से अपने गृह प्रदेश में कर रहे थे। लेकिन, अब कुछ दिलजले मय प्रूफ के जानकारी वहां से ले आए है। यानी कि आने वाले दिनों में दोनों अधिकारियों की मुसीबत बढेगी, इसमें अब संदेह नहीं। जानकारी के लिए यह भी बता दे कि ये दोनों अधिकारी अभी बहुत पॉवर में चल रहे है।
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*भाईजान होंगे टारगेट पर*
ये किसी से छिपा नहीं है कि भाजपा का शीर्ष नेतृत्व अपनी विचारधारा को पल्लवित और पोषित करने के लिए जमकर होमवर्क करता है। इस बार जो जानकारी आ रही है, वह बड़ी चौकाने वाली है। बताया जाता है कि अब इस भाजपा सरकार में उन पांच भाईजानोें की कुंडली बनाई जा रही है, जिन पर आने वाले समय में तगडा प्रहार किया जा सके। बताने वाले बताते है कि यह रणनीति अब परवान चढ़ने लगी है। खास बात यह है कि नीति निधारक लोगों की निगाहें इन पर इसलिए टेडी हो गई कि ये भाईजान लोग इस भाजपा सरकार का जमकर दोहन कर रहे है। पॉवर और धन दोनों का भोग भी करके बडे प्रभावशाली बन गए है। जिससे निष्ठावान भाजपाई अपने को ठगा सा महसूस करने लगे थे। खास बात यह है कि इन पांचों भाईजानों का कार्यक्षेत्र इंदौर ही हैं। इन भाईजानों पर अल्लाह खेर रखे।
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*विदिशा का नया फार्मूला और जीतू पटवारी*
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी आजकल पूरे प्रदेश मे घूम तो रहे है, लेकिन अब उनका मन राऊ के बजाय और कही और ज्यादा लगा हुआ दिखाई दे रहा है। क्योकि, अब उन्हे लगने लगा है कि भोपाल के आसपास ज्यादा ध्यान दिया जाये इसी मे भलाई है। राऊ या और भी अन्य जगह कही भी ध्यान लगाया तो अंत मे पछताना ही पडेगा। दरअसल कांग्रेस ने विदिशा फार्मूला को लेकर अच्छा खासा माहौल बना दिया, लेकिन अंदर की बात जानने वाले कहते है कि पटवारी विदिशा जिले की किसी सीट से विधानसभा लड़ेंगे। यानी कि विदिशा फार्मूले मे जीतू पटवारी का फार्मूला आकार ले रहा है।
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*महापौर जी की महा गलतफहमी!*
इंदौर के महापौर का पद कई मामलों में महत्वपूर्ण माना जाता है। इंदौर प्रदेश के बड़े शहरों में है ये कारण तो है ही, सबसे बड़ा कारण है इंदौर को लगातार सात बार देश में स्वच्छ शहर का अवॉर्ड मिलना। महापौर जो दावे और वादे करते रहते हैं, वे पूरे तो छोड़ आधे भी पूरे नहीं होते। नेताओं की तरफ महापौर रोज कोई न कोई घोषणा जरूर करते हैं, पर उन्हें पूरा करने में उनकी कोई पहल दिखाई नहीं देती। पिछले दो साल में महापौर ने ऐसा कोई काम भी शायद नहीं किया, जिसे उनकी विशेष उपलब्धि में दर्ज किया जा सके। बल्कि, लोगों का कहना है कि शहर के गार्डन बर्बाद होते जा रहे हैं, सफाई व्यवस्था लचर हो गई, आंधी के बाद शहर में पेड़ों की जो डालियां टूटी थी, वो 15 दिन बाद भी उठाई नहीं गई।
सबसे बड़ी बात तो यह कि महापौर पुष्यमित्र भार्गव पर यह आप कई बार लग चुके हैं कि वे पूरे इंदौर को अपना भी नहीं मानते। उनकी सारी गतिविधियां और प्रोजेक्ट महू नाका से फूटी कोठी तक सीमित हैं। लोगों को इस बात पर आपत्ति भी है कि महापौर की सारी घोषणाएं इंदौर के क्षेत्र क्रमांक-4 विधानसभा तक सिमटकर रह गई। ये अनुमान इसलिए लगाया जा रहा है कि पिछले दिनों नगरी विकास और आवास मंत्री और भाजपा के कद्दावर नेता कैलाश विजयवर्गीय ने मंच से महापौर को क्षेत्र-4 का विधायक कह दिया था। उन्होंने गलतीं से कहा था या जानबूझकर पर तब से पुष्यमित्र भार्गव अपने आपको भविष्य का विधायक जरूर समझने लगे।कही यह महापौर जी की महा गलतफहमी तो नहीं?
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*भाजपा आदिवासियों की भील जाति से छिटक क्यों रही!*
वैसे तो भाजपा हर समाज और जाति को पर्याप्त महत्व देकर अपनी मजबूती सुनिश्चित करती रही है। लेकिन, इन दिनों भील समाज के प्रति उसका रवैया उदासीन लग रहा, जो किसी को समझ में नहीं आ रहा। दरअसल आदिवासी वर्ग में भीलों की संख्या ज्यादा होने के बाद भी इस वर्ग के नेता कहीं भी भाजपा में फ्रंट लाईन में नहीं दिखाई दे रहे। हालांकि, भाजपा की राष्ट्रीय परिषद में 4 गौड़ और 3 भिलाला समुदाय के नेताओं को ससम्मान तो लिया, किन्तु एक भी भील नेता को नहीं लिया। क्या पार्टी इस समाज को अपने से दूर रखना चाहती है! कारण जो भी हो, पर भील समाज में अंदर ही अंदर आग धधक रही है। आश्चर्य इस बात का है कि जब कांग्रेस अलग ‘भील प्रदेश’ की मांग कर रही है और ‘बाप पार्टी’ भीलों के प्रति बडी उदार है, उसके बाद भी भाजपा में भीलों की उपेक्षा क्या सोचकर की जा रही है यह फिलहाल तो किसी के समझ में नहीं आ रही है!
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*बात निकली है तो दूर तक जायेगी ?*
पी एच ई मंत्री संपतिया उईके इन दिनों काफ़ी परेशान है उनकी परेशानी ये नहीं है की उनके ख़िलाफ़ उनकी ही सरकार के एक अदने अधिकारी ने जाँच के आदेश दे दिये थे , बल्कि वह इसलिए परेशान है की क्या प्रमुख सचिव की बग़ैर सहमति के यह अदना अधिकारी इतना बड़ा कदम उठा सकता था ? बताया जाता है कि इस मामले में सरकार गोपनीय तरीके से अंदर ही अंदर जांच करवा रही है के सारे मामले की जड़ में कौन है। ऐसे में आगे चलकर प्रमुख सचिव की मुश्किलें बढ़ सकती है। दरअसल एक आदिवासी मंत्री और वह भी महिला होने से राजनीतिक दृष्टि से इस मामले ने मुख्यमंत्री को अकारण असहज कर दिया है। सरकार अपनी गोपनीय जांच में इस मामले के मास्टर माइंड को ढूंढ रही है। ज़ाहिर है अब बात निकली है तो दूर तलक तो जाएगी … ..क्यों उईके मैडम ..