Bjp Politics: कार्यकारी अध्यक्ष से कायस्थ वोट बैंक पर नजर

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Bjp Politics: कार्यकारी अध्यक्ष से कायस्थ वोट बैंक पर नजर

रमण रावल

भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने हमेशा की तरह इस बार भी चौंकाते हुए कार्यकारी अध्यक्ष के लिये जिन नितिन नबीन सिन्हा को नामित किया है, वे बहुत सारे मायनों में कुछ हटकर हैं। सबसे पहले तो वे अपेक्षाकृत युवा अध्यक्ष हैं।नितिन व भाजपा दोनों की उम्र 45 वर्ष हैं ।दोनों का जन्म 1980 में हुआ। फिर भाजयुमो के राष्ट्रीय महामंत्री व बिहार के अध्यक्ष रहे हैं याने संगठन क्षमता की परीक्षा पास कर चुके हैं। फिर बिहार में विधायक व मंत्री का दायित्व निभाया है याने संवैधानिक दायित्व की जानकारी है। पिता नबीन किशोर प्रसाद सिन्हा भी भाजपा के विधायक व तपोनिष्ठ नेता रहे हैं। इसके साथ उल्लेखनीय पहलू यह है कि नितिन नबीन कायस्थ समुदाय का प्रतिनिधित्व करते हैं, जिसका हाल-फिलहाल भाजपा में समुचित प्रतिनिधित्व नहीं था।

अब प्रमुख रूप से दो-तीन बातें सामने आती हैं। इतने युवा को भले ही अभी कार्यकारी अध्यक्ष बनाया हो, लेकिन ऐसी क्या परिस्थितियां पैदा हो गई कि उन्हें लाना पड़ा ? दूसरी बात यह कि क्या वे ही आगे चलकर पूर्णकालिक अध्यक्ष भी बनाये जायेंगे ? दूसरे सवाल का जवाब भी जल्दी ही मिल जायेगा, लेकिन संभावना तो यही जान पड़ती है । इस समय राजनीति का अनिवार्य तकाजा हो चला है जातिवादी समीकरण । एक समय भाजपा में यशवंत सिन्हा,रविशंकर प्रसाद,शत्रुघ्न सिन्हा जैसे दिग्गज कायस्थ नेता हुआ करते थे । रविशंकर प्रसाद तो अभी-भी भाजपा में हैं, लेकिन वजनदार नहीं रहे। ऐसे में नितिन नबीन का पदार्पण भाजपा के प्रति कायस्थों के आकर्षण को बढ़ायेगा ।

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इसके अलावा भाजपा नेतृत्व का अगला बड़ा लक्ष्य बंगाल फतह करना है। वहां भी कायस्थों का जबरदस्त वर्चस्व है। स्वामी विवेकानंद भी कायस्थ थे, जिन्हें भाजपा-संघ काफी मानता है। बंगाल में ज्यादातर बड़े जमींदार,कारोबारी भी इसी वर्ग से हैं। फिर, बंगाल व बिहार के साथ-साथ देश भर में भी शिक्षा व प्रशासन के क्षेत्र में कायस्थों की बहुलता है। यह वर्ग भाजपा का पक्षधर तो माना जाता है, किंतु अब उसे अधिक समर्थन मिलने की उम्मीद हो जाती है। फिर बंगाल में बिहारी मजदूर व नौकरीपेशा लोग भी बड़ी संख्या में हैं। नितिन नबीन के बहाने उन्हें साधना आसान हो सकता है।

नितिन नबीन भाजपा या राजनीति के लिये देश भर में चर्चित नाम भले न हो, लेकिन उनकी सांगठिनक क्षमता, भाजपा के प्रति उनकी निष्ठा पर नेतृत्व को कतई संदेह नहीं है। वे बिहार के पटना जिले की बांकीपुर विधानसभा कसीट से पांचवीं बार विधायक हैं और दूसरी बार मंत्री बने हैं। वे छत्तीसगढ़ के प्रभारी भी रहे हैं। उनकी छवि उजली तो है ही, वे अभी तक निर्विवाद भी रहे हैं। भाजपा की राष्ट्रीय जिम्मेदारी निभाने के लिये ये तत्व काफी मायने रखते हैं। उनके पास बहुत कुछ कर दिखाने के लिये और भाजपा नेतृत्व को उन्हें आजमाने के लिये भी पर्याप्त समय रहेगा। वैसे भाजपा ने यह पहली बार नहीं किया कि किसी को प्रादेशिक राजनीति से उठाकर सीधे राष्ट्रीय अध्यक्ष बना दिया हो। इससे पहले जब नितिन गडकरी को राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया था, तब वे महाराष्ट्र विधान परिषद के सदस्य थे। इस मायने में नितिन नबीन तो अधिक अनुभवी हैं।

वैसे यह जरूरी नहीं कि उन्हें पूर्णकालिक अध्यक्ष भी बना दिया जाये ।वे यदि मानकों पर खरे नहीं उतर पाये तो अध्यक्ष के लिये भी फिर से कोई चमकदार नाम सामने आ सकता है। वैसे नितिन नबीन के मनोनयन से शिवराज सिंह चौहान को लेकर दो दिन से चल रही उन चर्चाओं पर विराम लग गया कि उन्हें अध्यक्ष बनाया जा रहा है। याद रहे, उनके भोपाल-दिल्ली स्थित बंगलों की अतिरिक्त सुरक्षा किये जाने के बाद से इस तरह के कयास लगाये जा रहे थे। बहरहाल।

जिस तरह से बिहार विधानसभा चुनाव में जनता ने भाजपा को दिल खोलकर समर्थन दिया,इस परिप्रेक्ष्य में भाजपा के लिये जरूरी हो चला था कि वह बिहार को भरपूर तवज्जो दे, जो कि उसने दी भी। इससे बिहार का कायस्थ वर्ग तो उनके लिये उदार रहेगा ही, बंगाल में बसे करीब 29 लाख कायस्थों का क्या रूझान रहता है, यह वहां के विधानसभा चुनाव परिणामों से ही पता चल पायेगा । 2026 में भाजपा की राजनीति में राष्ट्रीय व प्रदेशों के स्तर पर भी चुनौती भरे व उतने ही अवसरों से भरपूर भी होंगे । बिहार ने भाजपा को नई ऊंचाई दी है, जो उसके लिये उत्साहपूर्ण है। बिहार के ही नितिन पर अब ये जिम्मेदारी है कि वे अपने पर किये भरोसे को कितना सही ठहरा पाते हैं।