आदिवासी नेता के पार्टी छोड़ने से पंगु हो जाएगी भाजपा!
छत्तीसगढ़ भारतीय जनता पार्टी के अंदर अनुशासन और सब कुछ ठीक-ठाक होने का दावा करने वाली भाजपा सदमे में है। पार्टी के अंदर सुलग रही नाराजी खुलकर सामने आ गई और प्रदेश में फिर भाजपा की सरकार बनाने की रणनीति को जोरदार झटका लगा। भाजपा के कद्दावर आदिवासी नेता नंदकुमार साय ने पार्टी के कतिपय प्रतिद्वंद्वियों के रवैए से नाराज होकर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का हाथ का साथ थाम लिया। कांग्रेस प्रवेश के साथ साय ने कहा कि कचरे से खाद बना लो, यह अच्छी बात है। फिर रासायनिक खाद तो बंद कर देना चाहिए ये बीमारी फैलाती हैं!
तीन बार विधायक, तीन बार लोकसभा सदस्य, दो बार राज्यसभा सदस्य, दो बार भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष रहे नंदकुमार साय अविभाजित मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के और केंद्र में राष्ट्रीय अनूसूचित जनजाति आयोग के अध्यक्ष पद पर भी रहे। इतना सब पाने के बावजूद आखिर साय के लिए ऐसी कौन सी परिस्थितियां बदल गई थी, कि उन्हें कांग्रेस का दामन थामने मजबूर होना पड़ा! हालांकि, भाजपा उनके बदले दूसरे आदिवासी नेता को मौका देने के फेर में था, और शायद उन्हें इस बात का अहसास हो गया था।
साय के बारे में जग जाहिर था की वे नमक नही खाते थे। तो क्या ये माना जाए कि वे किसी के साथ नमक अदायगी नही करगें! अब सवाल खड़ा होता है के लंबे समय तक भाजपा का दामन थामने वाले और अपने आपको एक सफल राजनीतिज्ञ के रूप में स्थापित करने वाले डॉ नंद कुमार साय का हश्र स्व विद्याचरण शुक्ल की तरह तो नहीं हो जाएगा। वे भी भाजपा में शामिल हुए थे और तवज्जो नहीं मिलने पर फिर कांग्रेस में आने को मजबूर हुए थे। कहीं ऐसा तो नहीं की छत्तीसगढ़ की कद्दावर भाजपा सांसद रहीं स्व करुणा शुक्ला की तरह तो नहीं हो जाएगा, जब उन्हें कांग्रेस ने कभी अच्छा पद नही दिया। वैसे तो साय को कांग्रेस में जाना ही था, तो इस समय का चयन उचित नहीं कहा जा सकता! उन्हें कुछ और रुककर कांग्रेस में जाना चाहिए था। इससे कांग्रेस को लाभ मिल सकता और कांग्रेस को भी इतनी जल्दी क्या था कि उन्हें शामिल करना पड़ा। तात्कालिक लाभ तो कांग्रेस जरूर उठा लेगा, थोड़ा रुककर ये फैसला किया होता तो इसका लाभ उन्हें जरूर ज्यादा मिलता।
हालांकि, साय ने सोशल मीडिया स्टेटस में लिखा है …
धूमिल नहीं है लक्ष्य मेरा,
अम्बर समान यह साफ है
उम्र नहीं है बाधा मेरी,
मेरे रक्त में अब भी ताप है
सहस्त्र पाप मेरे नाम हो जाएं,
चाहे बिसरे मेरे काम हो जाएं,
मेरे तन-मन का हर एक कण,
इस माटी को समर्पित है
मेरे जीवन का हर एक क्षण,
जन-सेवा में अर्पित है।
(अब ये आने वाला समय ही बताएगा कि साय के कांग्रेस में शामिल होने का लाभ कांग्रेस चुनाव में कितना उठा पाती है)
डॉ नंदकुमार के कांग्रेस में जाने और भाजपा छोड़ने के बाद जहां भाजपा के अंदर आदिवासी वोट बैंक के नुकसान का खतरा मंडराने लगा है। वहीं, दूसरी और एक सशक्त आदिवासी चेहरा के कांग्रेस में शामिल होने के बाद कांग्रेस के अंदर भूपेश बघेल की मुख्यमंत्री की कुर्सी को लेकर भी राजनीतिक गलियारों में चर्चाओं का दौर शुरू हो गया। हालांकि अभी विधानसभा चुनाव के लिए लगभग 6 महीने का समय बाकी है। ऐसे हालात में भाजपा अपने आदिवासी वोट बैंक को साधने के लिए क्या रणनीति अपनाती है और कांग्रेस डॉ नंदकुमार साय का लाभ किस तरह से उठा पाती है, यह देखने वाली बात होगी। फिर भी भाजपा के लिए आत्ममंथन का दौर शुरू हो गया है, और चुनावी कवायद को लेकर रणनीति में जुटी भाजपा के रणनीतिकार अब नंदकुमार साय की रिक्तता को कैसे भर पाएंगे यह सवाल भी सामने आ गया।