BJP’s Mission 2023: न जातियां सधी,न कर्मचारी, न कारोबारी

969

BJP’s Mission 2023: न जातियां सधी,न कर्मचारी, न कारोबारी

मध्यप्रदेश में सतह पर भारतीय जनता पार्टी काफी सक्रिय नजर आ रही है, क्योंकि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान रोज नित-नई घोषणायें कर रहे हैं। अलग-अलग पंचायतें बुला रहे हैं। प्रदेश के दूरदराज के हिस्सों की यात्रायें कर रहे हैं। बहन-भांजियों को दुलार रहे हैं। कर्मचारियों को कथित सौगातें दे रहे हैं, लेकिन चुनाव जिताने वाले तथ्यों-मुद्दों की अनदेखी जारी है। जैसे थोकबंद वोटों के लिये जो जातियां पहचानी जाती हैं,वे भाजपा के प्रति चुप्पी साधे हैं और भाजपा ने आंखें मूंद रखी हैं।ये जातियां प्रमुख तौर पर हैं,आदिवासी,बलाई,मालवा,निमाड़ मूल के राजपूत,कलौता। मुस्लिम भी हैं, लेकिन वे भाजपा को वोट नहीं देते। कर्मचारियों की नाराजी करीब 12 वर्ष से पदोन्नति न मिलने को लेकर चल रही है, जिसके दूर हो जाने के लक्षण तो नहीं दिखते।

इसके अलावा दल के स्तर पर यह कि पुराने चावलों को हांडी में कोई नहीं चढ़ा रहा है। इन्हें तो जैसे भंडार गृह में घुन लगने को छोड़ दिया गया है। ये चावल समूची रसोई को बेस्वाद और अधूरा बना देंगे।जिन बासमती के बनने की महक से पूरा मोहल्ला सुगंधित हो उठता था, जिससे चावल बनाने वाले घर के ठाट-बाट की चर्चा होती थी। वह इस बार नदारद है। पार्टी के वरिष्ठजन मानते हैं कि इस बार के मुख्यमंत्रित्व काल में शिवराज सिंह चौहान पता नहीं क्यों एकला चलो रे की नीति अपनाये रहे। जबकि सरकारी साधनों के बूते छवि निर्माण एकाकी प्रयास होते हैं, जब तक पार्टी कार्यकर्ता मौखिक तौर पर अपने क्षेत्र में जनता के हितों वाले निर्णय न बताये तो।

पार्टी में यह बात कई बार उठी कि बलाई समाज को प्रतिनिधित्व नहीं दिया गया। इंदौर से मंत्री कांग्रेस से आये तुलसी सिलावट और राज्य मंत्री दर्जा प्राप्त सावन सोनकर खटिक समाज के हैं, न कि बलाई समाज के। इसी तरह से प्रताप करोसिया वाल्मिकी हैं।थावरचंद गोहलोत कर्नाटक के राज्यपाल हैं, लेकिन वे जनसंघ के समय से नेता हैं। जबकि आ‌श्यकता किसी नये खून को तवज्जो देने की थी। राजपूत कोटे से उषा ठाकुर को माना जाता है, लेकिन दशकों से इंदौर में बसने के बावजूद वे भी राजपूतों में उत्तर प्रदेश मूल की ही मानी जाती हैं। बदनावर से राज्यवर्धन सिंह दत्तीगांव राजस्थान के राठौर हैं, वे भी कांग्रेस से आये हैं। मालवा-निमाड़ के राजपूत आम तौर पर चौहान,परमार,परिहार उपनाम लगाते हैं, उन्हें नहीं साधा जा सका। हिंदूसिंह परमार के बाद जनसंघ-भाजपा से इस इलाके का कोई राजपूत प्रतिनिधित्व नहीं पा सका। उनमें नाराजी अभी सतह के नीचे तैर रही है। आदिवासी वर्ग के बीच से कोई बड़ा नेता भाजपा के पास नहीं है। उधर,जयस की दलितों और कांग्रेस से जुगलबंदी जम गई तो भाजपा के खेल में पिछड़ने की आशंका बनी हुई है।

एक वरिष्ठ नेता ने बताया कि बूथ मैनेजमेंट की ओर भी संगठन ध्यान नहीं दे रहा है। वे बताते हैं कि एक बूथ पर एक हजार मतदाता तक ठीक है, लेकिन चुनाव आयोग ने खर्च कम करने के नाम पर 1400 से 1800 मतदाता वाले बूथ तक बना दिये। उनके अनुसार महू तहसील के कोदरिया गांव में 4 बूथ कर दिये, जिससे कुछ बूथ 1400 से 1800 मतदाताओं वाले हो गये। चुनाव आयोग ने दावा किया कि उसने बूथों की संख्या कम कर करीब 150 करोड़ रुपये बचाने का दावा किया, लेकिन ये बचत भाजपा को मतदान प्रतिशत बढ़ाने से रोकेगी। इस पर संगठन,सरकार कोई ध्यान ही नहीं दे रही।

एक उद्योगपति की नाराजी गौर करने लायक है। उन्होंने बताया कि प्रदेश और देश के बाहर से उद्योगपतियों को बुलाकर एक हजार रूपये वर्गफीट की जमीन सौ रुपये वर्गफीट में दी जा रही है, जबकि स्थानीय उद्योगपति को कोई रियायत नहीं दी जा रही। उलटे उसे उद्योग लगाने में आज भी काफी मशक्कत करना पड़ रही है। इतना ही नहीं तो बड़े उद्योगों को 2023 तक की सब्सिडी दे दी गई, जबकि छोटे-मझौले उद्योगों को 2016-17 तक की सब्सिडी ही मिली है और उन्हें अपना अधिकार पाने अदालत की शरण तक जाना पड़ रहा है।

पार्टी के बड़े नेताओं की पीड़ा यह भी है कि मुख्यमंत्री को आम कार्यकर्ता से मिलने,उनकी बात सुनने को समय और मन ही नहीं है, जबकि उसे संगठन में रीढ़ की हड्‌डी माना गया है। वे इंदौर जैसे शहर में आते हैं तो अफलातून कार्यक्रमों में हिस्सा लेते हैं और हमेशा भीड़ से घिरे रहते हैं। आम कार्यकर्ता न तो उन तक पहुंच पाता है, न ही मुख्यमंत्री ऐसा कोई कार्यक्रम बनाकर आते हैं। इंदौर के प्रभारी गृह मंत्री तो इंदौर ही कम आते हैं और जब आते भी हैं तो रेसीडेंसी से कलेक्टोरेट तक घूमकर लौट जाते हैं। दूसरे मंत्रियों का भी यही रवैया रहा। ऐसे में इस आखिरी छोर के सिपाही की उपेक्षा का अच्छा संदेश नहीं जा रहा है।

प्रदेश के युवाओं को व्यापक पैमाने पर रोजगार देने की योजना के अभाव का जिक्र भी कार्यकर्ता करते हैं। वे कौशल विकास के साथ रोजगार देने को सीमित प्रभाव वाली योजना मानते हैं, जिससे कुछेक सैकड़ा या हजार युवा ही लाभान्वित हो पायेगा। लाड़ली बहना योजना में भी कमियों की ओर ध्यान दिलाते हुए बताया गया कि गरीबी रेखा से नीचे की केवल विवाहित,विधवा,परित्यक्ता महिलाओं को इसमें शामिल किया गया,जबकि 21 वर्ष से अधिक की भी ऐसी महिलाओं की संख्या भी काफी हैं, जो अविवाहित जीवन जीने को विवश हैं, लेकिन उन्हें योजना के लाभ से वंचित रखा गया है। होना यह चाहिये था कि 21 वर्ष से ऊपर की सारी महिलाओं को इसका पात्र बनाना था।

हाल ही में भाजपा के राष्ट्रीय नेतृत्व ने कुछ संकेत तो ऐसे दिये हैं, जिससे यह माना जा रहा है कि वे मप्र में भाजपा को व्यक्ति केंद्रित बनाने को रोक रहे हैं। मुख्यमंत्री ने जिस आशीर्वाद यात्रा की घोषणा की थी, उसे रोकना ऐसा ही कदम है। उसकी बजाय अब मालवा-निमाड़, चंबल,महाकौशल,बुंदेलखंड में विकास यात्रायें निकलेंगी, जिसमें हाल ही में मनोनीत चुनाव संयोजक नरेंद्र सिंह तोमर के अलावा ज्योतिरादित्य सिंधिया,कैलाश विजयवर्गीय आदि नेता अलग-अलग इलाकों में इसमे साथ होंगे।

इस माहौल में मप्र भाजपा के पूर्व अध्यक्ष और देश के वर्तमान कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर को चुनाव संयोजक बनाना कांटों का ताज पहनाने जैसा माना जा रहा है। वजह है समय कम होना। फिर भी वे जितना कार्यकर्ताओं-नेताओं को एकजुट कर पायेंगे और मतदाताओं के बीच सरकार की उपलब्धियों,कार्यों को पहुंचा पायेंगे,सरकार फिर से बनने पर किन योजनाओं पर अमल करा पायेंगे,इसकी आश्वस्ति पर ही सारा दारोमदार रहेगा।