BJP’s Mission 2023: तब सिंधिया मददगार रहे,अब उनकी भूमिका क्या होगी ?

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BJP’s Mission 2023: तब सिंधिया मददगार रहे,अब उनकी भूमिका क्या होगी ?

BJP’s Mission 2023: तब सिंधिया मददगार रहे,अब उनकी भूमिका क्या होगी ?

मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के सामने अनेक अंदरुनी चुनौतियों में पुराने कार्यकर्ताओं की घनघोर नाराजी के अलावा एक प्रमुख मसला यह भी है कि कांग्रेस से भाजपा में आये ज्योतिरादित्य सिंधिया व उनके समर्थकों की भूमिका कैसी व कितनी रहेगी? दरअसल,अभी तक के परिदृश्य को देखने पर जो नजर आता है, वह यह कि सिंधिया खेमे व मूल भाजपा के बीच सतह पर तो रिश्ते अनुकूल दिखते हैं, किंतु उनमें परस्पर समन्वय हिंदू-मुस्लिम के बीच रिश्तों की तरह है कि एक-दूसरे पर किसी तरह यकीन मजबूत होता ही नहीं । वे संदेह की नजरों से ही नजरें मिलाते हैं। यदि सचमुच ऐसा ही है तो फिर हो चुकी इस बार भाजपा 200 पार।

BJP’s Mission 2023: तब सिंधिया मददगार रहे,अब उनकी भूमिका क्या होगी ?

मार्च 2020 में सिंधिया के भाजपा प्रवेश के बाद से अभी तक के घटनाक्रम का निचोड़ तो यही बताता है कि सिंधिया ने अपने स्तर पर तालमेल,समर्पण में कोई कमी नहीं रखी, किंतु उनके समर्थकों की हरकतों ने भाजपाइयों की नाराजी और बेचैनी दूर नहीं होने दी। कांग्रेसियों के प्रति उनके अनुराग से वे संदेह और शिकायत के दायरे में बने रहे। उन पर टिकट बहिष्कार की लटकती तलवार ने भी सिंधिया समर्थकों की धड़कनों को अस्थिर बना रखा है। चूंकि भाजपा के रंग-ढंग कांग्रेस से बेहद अलग हैं, तो सिंधिया दबाव की राजनीति के सहारे तो उन्हें टिकट की वैतरणी पार नहीं करा सकते।

भाजपा नेतृत्व के सामने सिंधिया समर्थकों को बेवजह तवज्जो न देने के पीछे ठोस कारण यह भी है कि बात केवल इस विधानसभा चुनाव की नहीं है, बल्कि अगले साल लोकसभा चुनाव में भी उनकी भूमिका निश्चित करना है। सिंधिया समर्थकों को अतिरिक्त प्राथमिकता अपने मूल कार्यकर्ताओं में लगातार नाराज बनाये रखेगा तो इसका सीधा प्रतिकूल असर लोकसभा चुनाव पर भी पड़ेगा, जिसके लिये तो प्रदेश और देश का भाजपा नेतृत्व बिलकुल तैयार नहीं होगा। जहां प्रदेश भाजपा इस बार 200 पार का नारा उछाल रही है तो लोकसभा के लिये अनधिकृत तौर पर सही, लेकिन यह नारा तो उछल ही चुका है कि इस बार 400 पार। ये आंकड़ें भले ही विपक्ष की नींद उड़ाने के लिये हो, लेकिन उसे कार्यकर्ताओं में जोश भरने के लिये भी कौतुक करना जरूरी है।

BJP’s Mission 2023: तब सिंधिया मददगार रहे,अब उनकी भूमिका क्या होगी ?

वैसे हाल-फिलहाल सिंधिया की अपेक्षाकृत कम सक्रियता शंकायें खड़ी करती हों, किंतु वे न तो हाशिये पर डाले गये हैं, न उन पर संशय की तलवार लटकी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का पहले उज्जैन में महाकाल लोक की वापसी में,फिर हालिया भोपाल प्रवास से वापसी में सिंधिया को अपने साथ विमान में ले जाना सामान्य-सी बात नहीं है। गृह मंत्री अमित शाह का ग्वालियर प्रवास में राजमहल जाकर भोजन करना,अच्छा वक्त बिताना भी अनुकूल संकेत ही है। अभी राष्ट्रपति का भी महल में जाना उनके कद और प्रतिष्ठा को बरकरार रखने का ही संकेत है। इस माहौल में विधानसभा चुनाव में उनकी भूमिका को लेकर कोई बड़ा झटका देना संभव तो नहीं लगता। बस, संदेह पनपता है तो इतना कि उनके समर्थकों को कम संख्या में टिकट दिये गये तो उनका रवैया कैसा रहेगा? वैसे सिंधिया भी इतने नादान तो नहीं हैं कि वे अपने समूचे राजनीतिक भविष्य को चंद विधानसभा सीटों के लिये दांव पर लगा दें।

दूसरा संकट दिसंबर 2003 से नवंबर 2023 तक के 20 बरस में से कमलनाथ सरकार के करीब ढेढ़ साल कम कर मप्र में भाजपा की सरकार रही है, जिससे मतदाताओं को स्वाभाविक उकताहट हो रही है। मप्र में व्यक्ति केंद्रित होती जा रही भाजपा को इस छवि से निकालने के लिये राष्ट्रीय नेतृत्व भी प्रयासरत है। यदि भाजपा द्व‌ारा दी जा रही सुविधाओं, किये जा रहे वादों ने अपना असर नहीं दिखाया तो लुटिया डूब जाने के लिये तो नहीं छोड़ी जा सकती। तब ऐसा कोई जादू करना जरूरी हो जायेगा, जो समूची बाजी पलट दे, तमाम शिकवे-शिकायतें दूर कर दे, लोगों के मन में भाजपा के प्रति भरोसा और कार्यकर्ताओं में नई उमंग भर दे। राजनीति सड़क पर दिखाये जाने वाले रस्सी पर चलने के करतब या डमरू बजाकर मजमा जमाने वाले जादू के खेल से अलग नहीं है। रस्सी पर चलकर दूसरे छोर तक पहुंचने के लिये जिस लकड़ी को संतुलन बनाने के लिये थामे रखना होता है, वह या डमरू बजाने वाला टोकनी से जो कबूतर या मिठाई निकालकर दर्शकों में उछाल देता है, वैसी आकर्षक घोषणायें पिटारे से नहीं निकली तो नवंबर की राह कठिन समझो ।

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अब जाकर राष्ट्रीय नेतृत्व ने पहल तो प्रारंभ कर दी है। उसके लिये संतोष की बात यह है कि अपने प्रमुख विरोधी कांग्रेस में कोई करंट नजर नहीं आ रहा, किंतु मतदाताओं के मन में जो करंट दौड़ रहा होता है,उसका अनुमान अभी किसी तो नहीं है। सतह से नीचे के इस करंट की तीव्रता जितन अधिक होगी, भाजपा को उतना खतरा अधिक रहेगा।

अपरिमित क्षमताओं के धनी नरेंन्द्र सिंह तोमर

यूं भाजपा का आपदा प्रबंधन तो प्रारंभ हो चुका है। केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर को चुनाव संयोजक बनाकर यह संदेश तो दिया गया है कि भाजपा जिस पारंपरिक तौर-तरीकों से संगठनात्मक कार्यों का क्रियान्वयन करती है, वह शुरू हो चुका है। विकास यात्राओं का क्रम भी इसका हिस्सा है। उसमें प्रदेश के प्रतीक्षारत मुख्यमंत्रियों की भागीदारी भी सुनिश्चित कर दी गई है, ताकि उनके असंतोष को कम किया जा सके और जिम्मेदारी के निर्वाह के प्रति भी वे गंभीर हो सकें। यह उनके लिये परीक्षा की तरह रहेगा।