BJP फिर से कार्यकारी अध्यक्ष: अपनों से डर या रणनीतिक मजबूरी

सोशल मीडिया विश्लेषण

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BJP फिर से कार्यकारी अध्यक्ष: अपनों से डर या रणनीतिक मजबूरी

▪️राजेश जयंत▪️

नई दिल्ली। भारतीय जनता पार्टी द्वारा नए कार्यकारी राष्ट्रीय अध्यक्ष की घोषणा के बाद राजनीतिक हलकों से अधिक हलचल सोशल मीडिया पर देखने को मिल रही है। ट्विटर, फेसबुक और व्हाट्सएप जैसे प्लेटफॉर्म पर पार्टी समर्थकों, आलोचकों और राजनीतिक विश्लेषकों के बीच तीखी बहस छिड़ गई है। चर्चा का केंद्र यह है कि पार्टी ने इस बार भी पूर्णकालिक राष्ट्रीय अध्यक्ष के बजाय कार्यकारी अध्यक्ष की व्यवस्था क्यों चुनी।

▪️अपनों से डर की थ्योरी

▫️सोशल मीडिया पर वायरल पोस्ट और टिप्पणियों में यह दावा किया जा रहा है कि पार्टी का शीर्ष नेतृत्व विपक्ष से नहीं बल्कि पार्टी के भीतर उभरते मजबूत नेताओं से अधिक सतर्क है। कई यूजर्स का कहना है कि पहले भी जेपी नड्डा को पूर्ण अधिकारों के साथ राष्ट्रीय अध्यक्ष नहीं बनाया गया था, बल्कि कार्यकारी अध्यक्ष की भूमिका दी गई थी। उनका तर्क है कि कार्यकारी अध्यक्ष रहते हुए नड्डा को वह स्वतंत्रता और राजनीतिक सम्मान नहीं मिला, जो पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्षों को प्राप्त रहा है।

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▪️नितिन नबीन के जरिए नियंत्रण की चर्चा

▫️ऑनलाइन चर्चाओं में यह बात भी उभरकर सामने आ रही है कि इस बार भी कार्यकारी अध्यक्ष की व्यवस्था इसलिए की गई है ताकि संगठन पर वास्तविक नियंत्रण सीमित हाथों में बना रहे। कुछ पोस्टों में यह दावा किया जा रहा है कि नितिन नबीन जैसे नेताओं के माध्यम से पार्टी की दैनिक संगठनात्मक गतिविधियों को संचालित किया जाएगा, जिससे शीर्ष नेतृत्व की पकड़ मजबूत बनी रहे।

▪️शिवराज सिंह चौहान का नाम और संभावनाएं

▫️सोशल मीडिया विमर्श में पूर्व मुख्यमंत्री और केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान का नाम भी बार-बार सामने आ रहा है। कई यूजर्स का मत है कि यदि शिवराज सिंह चौहान जैसे जनाधार और संगठनात्मक अनुभव वाले नेता को राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया जाता, तो पार्टी के भीतर सत्ता संतुलन बदल सकता था। इन्हीं आशंकाओं के चलते कार्यकारी अध्यक्ष का विकल्प चुना गया, ऐसी धारणा सोशल मीडिया पर व्यापक रूप से व्यक्त की जा रही है।

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▪️रणनीति या मजबूरी

▫️हालांकि, भाजपा समर्थक वर्ग का एक हिस्सा इन आरोपों को खारिज करते हुए इसे पार्टी की सोची-समझी संगठनात्मक रणनीति बता रहा है। उनका कहना है कि आगामी चुनावी चुनौतियों, राज्यों के संतुलन और केंद्र की प्राथमिकताओं को देखते हुए कार्यकारी अध्यक्ष का मॉडल अधिक व्यावहारिक है।

▪️संगठन के भीतर संकेत

▫️राजनीतिक जानकार मानते हैं कि कार्यकारी अध्यक्ष की व्यवस्था पार्टी में शक्ति के केंद्रीकरण और नियंत्रण की राजनीति को दर्शाती है। वहीं कुछ विश्लेषक इसे संक्रमण काल की रणनीति मानते हैं, जहां नेतृत्व स्थायित्व के साथ-साथ लचीलापन भी बनाए रखना चाहता है।

▪️चलते चलते ••••

▫️बीजेपी के नए कार्यकारी राष्ट्रीय अध्यक्ष को लेकर उठी सोशल मीडिया बहस यह संकेत देती है कि पार्टी के भीतर नेतृत्व, नियंत्रण और भविष्य की दिशा को लेकर प्रश्न मौजूद हैं। यह असंतोष है, आशंका है या रणनीतिक भ्रम, इसका जवाब आने वाले समय में संगठनात्मक फैसलों और राजनीतिक घटनाक्रमों से ही स्पष्ट होगा।