Blame On EVM: EVM पर ठीकरा
EVM अर्थात् इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन के अंदर अपने ऊपर आरोप सहने की अनोखी क्षमता है। विपरीत परिस्थितियों में यह विपक्षी दलों को अपनी हार का ठीकरा फोड़ने के लिए एक शरणस्थली का काम करती है। विडंबना यह भी है कि आज का सत्ता पक्ष जब विपक्ष में था, और हार का सामना करता था, तो वह भी EVM को अपनी हार के कारणों के लिये बहाने के तौर पर प्रयोग करता था। आज के विपक्षी दल तब सरकार में थे और उन्हें EVM पर पूरा भरोसा था।
कहा जाता है कि 1982 में पहली बार केरल में किसी चुनाव में EVM का प्रयोग किया गया था। 1989 में सरकार के ही सार्वजनिक उद्योग भारत इलेक्ट्रिकल्स ने EVM मशीन का निर्माण करना प्रारंभ किया। नब्बे के दशक में इसमें अनेक सुरक्षा के फ़ीचर डाले गए। अटल बिहारी बाजपेयी की NDA सरकार ने 1998 से 2001 के बीच में चरणबद्ध तरीक़े से इनका प्रयोग सभी चुनावों में प्रारंभ कर दिया। पुराने लोगों को आज भी उत्तर भारत के अनेक क्षेत्रों में, EVM के प्रयोग के पहले के समय, बूथ कैप्चरिंग, वोट छापना आदि शब्द याद होंगे। इन्हीं क्षेत्रों में चुनाव के समय हिंसक होली खेलने का अच्छा अवसर भी प्राप्त होता था।
ख़ैर, यदि गंभीरता से बात की जाए तो EVM एक स्टैंड अलोन मशीन है अर्थात इसका इंटरनेट से कोई कनेक्शन नहीं है। इसके अंदर ऐसा कोई भी पुर्ज़ा नहीं है जो इसे इंटरनेट से कनेक्ट कर सके। इस कारण इसे बाहर से हैक नहीं किया जा सकता। कोई संदेह न रहने के लिए इसे बिजली के स्थान पर बैटरी से चलाया जाता है। एक मिनट में पाँच से अधिक वोट इसमें नहीं डाले जा सकते हैं। अतः ज़बरदस्ती एक साथ सैकड़ों वोट इसमें नहीं डाले जा सकते हैं। 2011 में सुप्रीम कोर्ट ने इनमें VVPAT अर्थात वोटर वेरिफाईएबल पेपर ऑडिट ट्रेल की व्यवस्था करने का आदेश दिया, जिसे कुछ प्रतिशत मशीनों में लगाया गया। इससे कोई मतदाता यह सुनिश्चित कर सकता है कि उसने जिस पार्टी को वोट दिया है उसका वोट उसी पार्टी को गया है। इसकी व्यवस्था हर मशीन में धीरे धीरे बढ़ायी जा रही है। मतगणना प्रारंभ होने से पहले सभी पार्टियों के एजेंटों के समक्ष हर मशीन का ट्रायल भी होता है, जिसमें सैंपल के रूप में एजेंटों के समक्ष वोट दिए जाते हैं, और फिर उसका टोटल उनके सामने प्रस्तुत किया जाता है। इस टेस्ट के बाद ही मतदान प्रारंभ होता है।
केजरीवाल सहित कुछ अन्य विपक्षी राजनीतिक नेताओं ने EVM मशीन को हैक करने की चुनौती दी थी। भारत के निर्वाचन आयोग ने कुछ EVM मशीनें मेज़ पर रखकर सारे राजनीतिक दलों को चुनौती दी थी कि वे अपने बड़े से बड़े इलेक्ट्रॉनिक एक्सपर्ट को लेकर आएँ, और जितना भी समय लगे, इस मशीन को हैक करके दिखाएं। कोई आश्चर्य नहीं कि कोई भी व्यक्ति सामने नहीं आया।
इतना अवश्य हो गया है कि अब हारने वाली पार्टी EVM के ख़िलाफ़ बहुत ज़ोरदार शब्दों में आरोप लगाने के स्थान पर दबी ज़बान से ही आरोप लगाती है। हाल ही में संपन्न हुए विधानसभा चुनावों के बाद भी ऐसी ही स्थिति बनी है।
कांग्रेस सहित अनेक अन्य पार्टियों ने घोषणा की है कि वे यदि सत्ता में आएंगे तो EVM का प्रयोग बंद कर उसके स्थान पर पुरानी पद्धति के काग़ज़ के मत पत्र प्रचलन में लाएंगे। इसके लिए उन्होंने अमेरिका और जापान में ऐसे ही मत पत्रों का प्रयोग किए जाने की बात कही है। उन्होंने इस बात पर ध्यान नहीं दिया कि भारत में बहुत बड़ी संख्या में उम्मीदवार खड़े होते हैं, और कहीं कहीं तो मत पत्र छोटे अख़बार का स्वरूप ले लेता है। भारत के मतदाताओं की विशाल संख्या यदि इतने अधिक काग़ज़ का प्रयोग करेगी, तो कुछ ही आम चुनावों में भारत के जंगल समाप्त हो जाएंगे। भारत के मतदाता अब EVM मशीन के अभ्यस्त हो गये हैं। सामान्य विवेक यह कहता है कि सभी राजनैतिक दल EVM के प्रयोग को बंद करने के स्थान पर इसकी गुणवत्ता और सुरक्षा को और सुदृढ़ एवं सुनिश्चित करने की बात करें।