Blasting Indore-3 :पार्किंग की कमी ने भी कबाड़ा कर रखा है

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Blasting Indore-3 :पार्किंग की कमी ने भी कबाड़ा कर रखा है

इंदौर शहर का एक बड़ा और विचारणीय मुद्दा पार्किंग व्यवस्था का भी है, जो फिलहाल तो यातायात की तरह चरमराई हुई है। इंदौर में पार्किंग अव्यवस्था के लिये यातायात पुलिस, शहर सरकार व नागरिक समान रूप से जिम्मेदार हैं।

 

शहर में जितनी दुरावस्था यातायात जाम की है, वैसी ही दुर्दशा पार्किंग की अनुपलब्धता की है। कार पार्किंग के तो ये हाल हैं कि बिना चालक के यदि आप शहर में निकले हैं तो आधा समय जगह ढूंढने में चला जाता है। वह भी सड़क किनारे ही समझ लीजिये। उसके भी कारण हैं। एक तो सशुल्क व निशुल्क पार्किंग बेहद कम हैं। जो हैं, वे अपर्याप्त हैं। जो गिनी-चुनी पार्किंग हैं, वहां पर आसपास के व्यापारी,रहवासी बाकायदा मासिक शुल्क देकर पार्किंग कर लेते हैं । ऐसा भी नहीं है कि नागरिक कम लापरवाह हैं। इंदौरियों की पहली कोशिश तो सड़क किनारे कार खड़ी कर चल देने की है। फिर वो किसी की दुकान या घर हो,नजर हटी और दुर्घटना घटी। फिर आप उसे ढूंढते रहो।

 

ऐसा ही हाल दोपहिया वाहन चालकों का है। वे तो और भी बुरी गत से वाहन कहीं भी खड़ा कर देते हैं। ये दोपहिया शहर के यातायात का सर्वाधिक सत्यानाश कर रहे हैं। किसी भी वाहन के दायें-बायें से गलत दिशा से ओवर टेक करना, लेफ्ट टर्न रोककर खड़े होना,लेफ्ट टर्न पर आकर राइट टर्न लेना या सीधे चले जाना आम बात है। ऐसे ही अन्य वाहनों के आगे इस तरह अपना वाहन पार्क कर जाते हैं कि वो या तो इंतजार करे या घसीट कर वाहन एक तरफ करे। हो सकता है, यातायात पुलिस के लिये ये मसले छोटे हों, लेकिन गौर करें तो समस्या के मूल में इनका अहम योगदान है।

 

आरटीओ कार्यालय के सूत्रों(अधिकृत इसलिये नहीं कि स्मार्ट चिप कंपनी इंदौर से अपना कारोबार समेट कर चली गई और सारा रिकॉ़र्ड कंप्यूटर में दर्ज होने से बताया नहीं जा सका), वाहन कारोबार के जानकारों के अनुसार इंदौर में प्रतिदिन करीब 100 कारें व 500 दोपहिया वाहन बिक रहे हैं। इस तरह ये सालाना आंकड़ा 36 हजार कारों व पौने दो लाख दोहपिया वाहनों का होता है। अब आप देखिये कि जिस शहर की आबादी करीब 33 लाख(बाहरी क्षेत्र मिलाकर) हो याने जहां औसत 8 लाख परिवार रहते हों, वहां प्रतिवर्ष औसत 4 में से एक परिवार कोई न कोई वाहन खरीदते हैं। ऐसा नहीं है कि उनके पास पहले से कोई वाहन न हो। ऐसे असंख्य परिवार हैं, जहां के प्रत्येक सदस्य के पास कार,दोपहिया वाहन है और उससे अधिक भी हैं। एक व्यक्ति औसत 10 वर्ष तक कार या दोपहिया वाहन का उपयोग करता हो तो पिछले 10 वर्ष में साढ़े तीन लाख कारें व 17 लाख से अधिक दोपहिया वाहन इंदौर की सड़कों पर दौड़ रहे हैं। याने प्रत्येक तीसके व्यक्ति के पास कोई वाहन है। इनकी खरीद-बिक्री के बाद भी ये आंकड़ें कमोबेश आसपास ही रहते होंगे।

 

इन वाहनों के अलावा सिटी बसें, स्कूल बसें,सरवटे व गंगवाल बस स्टैंड से चलने वाली बसें, विभिन्न ट्रेवल्स कंपनियों की राज्यीय व अंतरप्रांतीय बसें, ऑटो रिक्शा, ई रिक्शा,नगर सेवा वाहन,लोडिंग वाहन,पानी व ईंधन के टैंकर,कुछ निश्चित स्थानों पर आने-जाने वाले ट्रक मिलाकर न्यूनतम 5 हजार वाहन भी इंदौर की सड़कों को रौंदते हुए चल रहे हैं और मनमानी जगह रुकते भी हैं और पार्क भी होते ही हैं। रिंग रोड व बायपास तो ट्रकों,ट्रेवल्स बसों का आरामगाह है ही। मजाल है,कोई इनका व्यवस्थापन करे। अलबत्ता पुलिस व यातायात पुलिस के कतिपय जवान अधिकारी रंगदारी अवश्य वसूलते रहते हैं। जब इंदौर शहर से इतनी विकराल ज्यादती हो रही है तो ठेले,गुमटी,अतिक्रमण,फुटपाथ पर दुकानें और दुकानों का सामान रखना तो मामूली बात है।

 

इनसे सड़कों का रखरखाव बढ़ता जा रहा है और पेट्रोल-डीजल से होने वाला प्रदूषण शहरवासियों के फेफड़ों में घुस रहा है। जब से बैंकों ने वाहन खरीदी के लिये कर्ज देना प्रारंभ किया है, तब से सब्जी,पेपर,अटाले,दूध,फेरी वाले जैसे कमजोर तबके के लोगों ने भी वाहनों की खरीदारी बढ़ा दी। भले ही कर्ज के बोझ तले उसका घरेलू खर्च गड़़बड़ा जाये।

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इसमें आपत्ति की बात तो नहीं है, लेकिन चिंताजनक और विचारणीय यह है कि ज्यादातर लोग अपने वाहन घर के अंदर न रखकर बाहर सड़क,फुटपाथ पर खड़े कर रहे हैं। इससे तंग बस्तियां तो ठीक छोटी-बड़ी,पॉश कॉलोनियों तक का दम घुट रहा है। इस समस्या की ओर तो किसी संबंधित मशीनरी का ध्यान ही नहीं है। इसमें एक दिलचस्प और विरोधाभासी पहलू यह है कि शहर में ऑटो डीलर के यहां आने वाले प्रत्येक वाहन का पार्किंग शुल्क नगर निगम द्वारा सीधे डीलर से तत्काल वसूल लिया जाता है। यह रकम वाहन के आकार व कीमत के अनुसार एक हजार से पांच हजार रुपये तक होता है। वाहन बिना बिके भी रहे तो निगम को शुल्क देना जरूरी है। साथ ही अनेक मौकों पर कंपनी किसी वाहन को निर्माण में किसी चूक के चलते वापस ले लेती है। तब भी निगम वसूली रकम नहीं लौटाता है, जो डीलर या ग्राहक का नुकसान है। 2012 में बने कानून पर 17 मार्च 2015 से अमल हो रहा है। यह रकम किसी भी वाहन पर लगने वाले रोड टैक्स,संपत्ति कर के अलावा है।

इसी तरह प्रत्येक भवन निर्माण के लिये भी मप्र भूमि विकास अधिनियम 2012 में पार्किंग की जगह का निर्धारण किया गया है, लेकिन नगर निगम व्यावसायिक व बहुमंजिला रहवासी भवनों को छोड़कर इस ओर शायद ही ध्यान देता हो। कानून के प्रावधान क्रमांक आई-1 के नियम 84(1) के अनुसार 7.50 लाख आबादी से ऊपर से शहर के लिये(यह अलग-अलग आबादी के लिये पृथक नियम है) एक कार के लिये 13.5 वर्ग फीट जगह आवश्यक है। दोपहिया के लिये सवा वर्ग फीट चाहिये। साथ ही पार्किंग स्थान की भवन की खिड़की व दरवाजे से 15 फीट की दूरी भी जरूरी है, ताकि हवा,रोशनी बाधित न हो। साथ ही कॉमन वॉल वाले रो हाउस तथा स्वतंत्र भवन भी कितना ही छोटा हो, उसमें एक कार की पार्किंग की जगह छोड़ना आवश्यक है। यदि तल को पार्किंग के लिये छोड़ रहे हैं तो 6 फीट ऊंचाई के बाद निर्माण किया जा सकता है।

इस तरह हम देखें तो नगर निगम,आरटीओ,शासन जीएसटी, वाणिज्यिक कर, रोड टैक्स, पार्किंग शुल्क ले रही है, किंतु पार्किंग के लिये समुचित स्थान और व्यवस्थित सड़कें उपलब्ध नहीं करा पा रही है और सारा दोष वाहन मालिकों पर थोप देती है। अभी-भी समय है, जब नगर निगम,स्थानीय प्रशासन,यातायात पुलिस मिलकर इंदौर में पार्किंग की समस्या का यथा संभव निदान सोचें। शहर में जहां भी रिक्त स्थान है, वहां व्यावसायिक भवन बनाने की बजाय पार्किंग के लिये जगह उपलब्ध कराये। इससे शहर गैर जरूरी रूप से सीमेंट का जंगल बनने से बचेगा और शहर में खुले स्थान होने से शहर को भी सांस लेने में सुविधा रहेगी। यदि उसे नये व्यावसायिक क्षेत्र विकसित करना ही है तो शहर के बाहरी हिस्से में करना चाहिये।