Blating Indore 4:दाल-बाफले, पोहे-जलेबी से बाहर कब निकलेगा इंदौर ?
इसमें कोई संदेह ही नहीं कि इंदौर तेजी से प्रगति कर रहा है। यहां व्यापार,उद्योग,शिक्षा के क्षेत्र में सकारात्मक बदलाव हो रहे हैं। कम से कम मप्र का निवासी अपने बच्चों को उच्च शिक्षा,व्यापार,नौकरी के लिये इंदौर भेजना पसंद करता है। चिंता भी इसलिये अधिक है कि जो प्रतिष्ठा इस शहर की,यहां के लोगों के भावनात्मक लगाव की,तरक्की पसंद होने की है, वह धूमिल न हो। यदि मैंने कुछ कमियों,आवश्यकताओं की ओर ध्यान दिलाने का प्रयास किया भी है तो इसीलिये कि इंदौर से मेरा 45 बरस लंबा लगाव है और महसूस किया है कि इसमें विश्व स्तरीय ख्याति प्राप्त करने की योग्यता है। आज बात कर लेते हैं, उन सकारात्मक परिवर्तनों,सुधारों की जो शहर को नई पहचान देंगे और सुविधाओं के विस्तार को गति देंगे। मप्र शासन,नगर निगम,इंदौर विकास प्राधिकरण मिलकर इंदौर में करीब 2 हजार करोड़ के विकास कार्य संचालित कर रहे हैं, ,जो शहर को आधुनिक,सुविधाजनक बनाने की ओर बढ़ते कदम माने जायेंगे।
इंदौर में विकास कार्य काफी गति से चल रहे हैं, जिसमें फ्लाय ओवर,पुल,रेलवे ओवर ब्रिज और मेट्रो प्रमुख हैं। ऐसा माना जा रहा है कि इनके बनने से शहर के यातायात की दशा सुधरेगी,आवागमन आसान होगा,जो प्रकारांतर से शहर की तरक्की में सहायक होगा। ये परस्पर जुड़ी हुई बातें हैं, लेकिन यह सोचकर बैठ जाने से प्रगति नहीं होगी। विकास ऐसी निरंतर प्रक्रिया है, जिसकी गति धीमी पड़ने या थम जाने का असर तत्काल होता है। इसलिये ऐसे उपायों पर चिंतन और अमल भी आवश्यक है। 12 अक्टूबर को मप्र के मुख्यमंत्री मोहन यादव इंदौर में फूटी कोठी, भंवरकुंआ,लवकुश चौराहा(बाणगंगा-उज्जैन मार्ग) व खजराना चौराहे के फ्लाई ओवर का लोकार्पण करेंगे। इससे करीब 5 लाख लोगों को आवागमन में आसानी होगी।
ऐसे ही खंडवा रोड पर आईटी चौराहा,मूसाखेड़ी चौराहा,निरंजनपुर,सत्य साई चौराहे पर पुल का काम तेजी से चल रहा है। साथ ही बाणगंगा ,हरनिया खेड़ी(राऊ-महू के पास),लसूड़िया मोरी व मांगलिया में रेलवे ओवर ब्रिज भी बनने हैं। इस तरह से अगले दो-तीन साल में शहर को यातायात जाम की असुविधा से काफी हद तक राहत मिलने की आशा की जा सकती है। इसके अलावा मेट्रो का काम भी चल रहा है, जो पूर्णता के लक्ष्य से भले ही दूर हो, लेकिन आगामी 50 वर्ष के परिप्रेक्ष्य में देखें तो यह संतोषजनक उपलब्धि होगी। हालांकि इसके मार्ग व कहां भूमिगत रहे व कहां भूमि पर रहे,इसे लेकर दुविधा बरकरार है। इसका जो भी सर्व सम्मत निराकरण हो,यह भी शहर में नागरिक परिवहन के साधनों को संतोषप्रद स्थिति देने में सहायक होगी। यह भी उतना ही सही है कि रीगल चौराहे से खासकर बड़ी गणपति चौराहे तक या सीधे एअरपोर्ट तक के भी मार्ग को लेकर ढेर सारी आशंकायें हैं। इन पर प्रशासन,जन प्रतिनिधि,मेट्रो विशेषज्ञ,जिम्मेदार नागरिक व संगठन काफी चिंतित हैं। इसलिये भी इसकी गति रुकी-सी है। वैसे जो करीब साढ़े पांच किलो मीटर का ट्रेक तैयार हो रहा है, वहां कोई अड़चन नहीं है, जो इस वर्ष प्रारंभ भी हो जायेगा।
ऐसे में यह प्रश्न स्वाभाविक है कि तब इंदौर के विकास में कहां और क्या अवरोध माना जा रहा है ? जैसा कि मैंने अपने पूर्व के लेखों में स्पष्ट किया है कि केवल विकास कार्य शहर की पहचान या सुविधाजनक स्थिति को परिभाषित नहीं कर सकते। इनके साथ ही व्यवस्थित बसाहट,सुगम यातायात, सड़कों की चौड़ाई,सड़क-फुटपाथ पर अतिक्रमण,स्वास्थ्य सुविधाओं का उम्दापन,जन प्रतिनिधियों की सजगता व जिम्मेदारी का भाव,प्रशासन की मुस्तैदी और शासन की ओर से निरंतर मिलने वाली योजनाओं का समन्वित प्रयास नहीं होगा, तब तक इंदौर का समग्र,समुचित और उल्लेखनीय विकास नहीं हो सकता। इसकी भारी कमी अभी-भी है।
इस शहर के लोगों का बेमिसाल समाज सेवा भाव,जन भागीदारी की तत्परता,मिलनसारिता और अपने बल पर शहर को बेहतर बनाने के लिये किये जाने वाले काम उसे देश के इस स्तर के शहरों में सबसे अलग बनाते हैं। फिर भी इतना काफी नहीं है। यहां के लोग अपने घर के सामने से लेकर अपने व्यापारिक संस्थान तक सामने ही वाहनों की जो साधिकार पार्किंग कर लेते हैं,दुकानों के सामने सड़क व फुटपाथ पर अतिक्रमण कर लेते हैं, ठेलों-रनगाड़ों का जो बेतरतीब आवागमन होता है, चौराहों पर लाल बत्ती का उल्लंघन करते हैं, बायीं तरफ की सड़क घेर कर खड़े हो जाते हैं और पीछे वाले के हॉर्न बजाने पर भी हरी बत्ती होने तक नहीं हटते,वह प्रमुख मसले हैं, जो छोटे नजर आते हैं, लेकिन शहर की छवि निर्माण में विशाल तत्व हैं। इन सबसे माशाअल्लाह तो हैं,हमारे जन प्रतिनिधि,नेता जो तमाम इस तरह के नियम विरुद्ध, अनुशासनहीनता,गैर जिम्मेदाराना काम करने वालों को खुलकर समर्थन देते हैं और शासकीय मशीनरी पर अनावश्यक दबाव बनाते हैं। चौराहे पर ट्रैफिक जवान द्वारा रोकने पर किसी पार्षद,सासंद,विधायक महापौर,पार्षद को फोन लगाना तो ऐसे हैं, जैसे छोटा वच्चा चाकलेट के लिये मचलता है तो अभिभावक उसे दिलाकर चुप करा रहे हों।
जो एक और बड़़ी कमी इस शहर के जन प्रतिनिधियों की है, वह है प्रत्येक छोटे-छोटे कार्यक्रमों में शामिल होना। वे इसे अपनी लोकप्रियता से जोड़कर देखते हैं और मानते हैं कि वे जितना अधिक हार-फूल करवायेंगे,उतना ही अधिक जाने-माने-पहचाने जायेंगे। जबकि वे अपने उस समय का सत्यानाश कर रहे होते हैं, जो उन्हें किसी जनहित के काम के लिये,शहर को व्यवस्थित, अनुशासित, विकसित,आत्म निर्भर और प्रतिष्ठा प्राप्त इंदौर का दर्जा दिलाने में सहायक हो सकते हैं। इसमें पार्षद तो छोड़िये, सांसद,विधायक,महापौर तक शामिल हैं। वैसे अब यह हमारी राष्ट्रीय समस्या बन चुकी है। इससे जितना तेजी से उबरेंगे,उतना अधिक सकारात्मक सोच पनपेगा,शहर की बेहतरी की कल्पना व अमल कर पायेंगे,केंद्र व राज्य शासन के नित-नी योजानायें व कोष ला सकेंगे। जबकि ये काम राजनीतिक पार्टी संगठन के पदाघिकारियों के होने चाहिये। मुझे लगता है,इस तरह का आचरण व सोच जन प्रतिनिधियो को अपेक्षाकृत अधिक लोकप्रिय,सार्थक और सफल बनायेगा।
मेरा मानना है कि अभी-भी कुछ नहीं बिगड़ा है।सबसे पहले तो इंदौर को इस आत्म मुग्धता से बाहर आना होगा कि हमारी पहचान के लिए तो दाल—बाफले और पोहे —जलेबी ही काफी है।यदि इंदौरवासी मिलकर नई कार्य संस्कृति विकसित कर लें तो जिस तरह के नवाचर हमने स्वच्छता में किये हैं और समूचे भारत में उनकी अनुगूंज हुई,अनुसरण हुआ, वैसा ही इस क्षेत्र में भी हो सकता है कि इंदौर में न तो फोकट के कार्यक्रम होते हैं, ना ही वहां के जन प्रतिनिधि इनमें जाकर अपना समय बरबाद करते हैं। अपनी उत्सवप्रियता के लिये दुनिया भर में विख्यात शहर इंदौर के लिये ऐसा कर पाना मुश्किल तो है, नामुमकिन नहीं।
थोड़ा लिखा, ज्यादा समझना ।