Blasting Indore:विस्फोटों के मुहाने पर इंदौर

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Blasting Indore:विस्फोटों के मुहाने पर इंदौर

ये ऐसा वि्स्फोट है, जिसकी गूंज तो नहीं उठेगी, लेकिन इसका असर दशकों तक कायम रहेगा। न लपटें उटेंगी, न दमकलें दौड़ती नजर आयेंगी, न कोई दिलासे काम आयेंगे,लेकिन बरबादी का आकार-प्रकार भयावह होगा। इस दास्तान की इबारत लिखी जा चुकी है, बस विस्तार से वर्णन किया जाना शेष है। ये विस्फोट होगा इंदौर में यातायात की चरम अराजक अव्यवस्था का,आबादी का, अनियोजित बसाहट का,बेतरतीब विकास का, वाहनों के अंबार का, नेतृत्व में कल्पनाशीलता के अभाव का,कार्य योजना बनाकर अमल में ढिलाई का, शासकीय मशीनरी के मनमाने रवैये का, नागरिकों के चादर मुंह पर डालकर सो जाने का। बेहद डरावने कल की ओर इंदौर के कदम तेजी के साथ बढ़ रहे हैं और वह इतने भर से फूला नहीं समा रहा कि इंदौर देश में सबसे स्वच्छ शहर का तमगा सात बार प्राप्त कर चुका है, जो उसके हर मामले में तीस मार खां हो जाने का प्रमाण-पत्र है।

 

इस तरह की बातें निराशाजनक,बेचैन व हतोत्साहित करने वाली लग सकती है, किंतु वर्तमान का सच इसी का बखान कर रहा है। भोर हो चुकी है, लेकिेन मुसाफिर जागने को तैयार ही नहीं । बेपरवाही की नीम बेहोशी की आगोश में सपनों के मोहपाश में बंधा सोया पड़ा है। गोया, आंखें जब खुलेंगी तो सपनों का मनमोहक संसार दरवाजे पर दस्तक दे रहा होगा।

 

कहने को ये तमाम मसले आये दिन इंदौर के अखबारों की सुर्खियां बनती रहती हैं। नेताओं के जोशीले भाषण और उनमें संकल्प होते रहते हैं, किंतु हकीकत में तो चादर बुरी तरह से मैली हुई पड़ी है। तेजी से भाग रहे समय, विकास की छटपटाहट में किसी भी योजना को अंधानुकरण की तरह लागू करने का बेतुकापन, भविष्य के व्यवस्थित,सुंदर,नियोजित शहर की किताबी कल्पना में खोये रहने की दीवानगी ने इंदौर को कूड़ा हो जाने की गहरी खाई की ओर धकेलना तो प्रारंभ कर ही दिया है। हालात ये हैं कि किसी भी शहर के मूल चरित्र के प्रमुख मुद्दे यातायात की समस्या को ही सुरसा का मुंह बनने से रोकने का कोई सार्थक प्रयास ही नहीं हो रहा, जो इसके अधोगति की सुदृढ़ आधारशिला रखेगा। आइये, पहले इस मुद्दे पर ही बात कर लेते हैं।

 

कहने-सुनने में यातायात की अव्यवस्था एक सामान्य मुद्दा लग सकता है। आप कह सकते हैं कि यह तो वि्श्व स्तरीय समस्या है। वह है भी, लेकिन क्या केवल इतना कह देने से इससे निपटा जा सकता है? ऐसा होने के चार प्रमुख कारण होते हैं। बढ़ती आबादी, बेतहाशा बढ़ते वाहन,यातायात महकमे में बल की कमी और लोगो में यातायात नियमों के प्रति जागरुकता का अभाव। लेकिन क्या ये मुद्दे ऐसे हैं कि जिनका निदान असंभव है ? खासकर इंदौर जैसे विकासशील शहर के लिये । तेज गति से विकसित होते इंदौर के लिये यही सबसे सही समय है, जब अगले पचास,सौ साल के लिये योजना बनाई जा सकती है। दुनिया के विकसित हो रहे प्रमुख सौ शहरों में इंदौर 32 वें स्थान पर है तो आईटी क्षेत्र में वह फिलीपींस,वियतनाम.इंडोनेशिया से टक्कर ले रहा है,जहां तेजी से दुनिया की आईटी कंपनियां कारोबार प्रारंभ कर रही है। ऐसे में इंदौर में आबादी बढ़ने के अनुपात में विकास के स्वरूप का भी निर्धारण किया जाना असंभव या दुष्कर तो नहीं हो सकता।

 

यातायात को लेकर इंदौर में पिछले करीब 20 वर्ष से केवल प्रयोग हो रहे हैं। नया अधिकारी, नया नेता,नई शहर परिषद,नये रायचंद अलग-अलग दिशा में घोड़े दौड़ाते हैं,जिससे रथ कहीं आगे तो बढ़ता नहीं, बल्कि मिट्‌टी में अधिक धंस जाता है। यातायात सुधार के नाम पर या तो पुल,फ्लाय ओवर,ग्रेड सेपरेटर बनाने का सुझाव दे दिया जाता है या चालानी कार्रवाई तेज कर दी जाती है। जबकि बेंगलुरु के ख्यात यातायात विशेषज्ञ आशीष वर्मा ने 2022 में इंदौर में ही एक व्याख्यान में यह स्पष्ट किया था कि पुल,फ्लाय ओवर बनाने से यातायात जाम की समस्या से निजात नहीं मिल सकती। इसके लिये समग्र योजना पर एकसाथ अमल आव‌श्यक है। मुझे पूरा भरोसा है कि उनके विचारों को जानने-समझने के लिये इंदौर के किसी भी आधिकारिक व्यक्ति ने उनसे कतई संपर्क नहीं किया होगा या उन्हें कार्य योजना बनाने में मदद के लिये आग्रह नहीं किया होगा।

 

हम इंदौर में यातायात जाम की दैनंदिन स्थिति से जब उलझते हैं, तब अनेक उपाय ध्यान में आते हैं। इसी आधार पर कुछ सुझाव यहां प्रस्तुत हैं , जिन्हें व्यावहारिक पाये जाने पर अमल किया जाये तो काफी राहत मिल सकती है-

 

॰॰ शहर के कुछ प्रमुख बाजारों में नये व्यावसायिक भवन बनाने पर रोक लगे।

 

॰॰ बहुमंजिला व्यावसायिक व रहवासी भवनों में सभी के अपेक्षित वाहनों की पार्किंग के बिना पूर्णता प्रमाण पत्र न दिया जाये।

 

॰॰ कुछ अति व्यस्त मार्गों पर अलग-अलग वाहनों जैसे सिटी बस,स्कूल बस, लोडिंग रिक्शा,मेटाडोर, ई रिक्शा व दो पहिया वाहनों का प्रवेश प्रतिबंधित किया जाये।

 

॰॰ नो सिग्नल चौराहे विकसित किये जाने की योजना बने, जिस तरह से कोटा में बिना सिग्नल के यातायात संचालित है।

 

॰॰ दिल्ली की तरह कुछ चौराहों की रोटरी ऐसे बने,जहां से वाहन बिना रुके आ-जा सकें।

 

॰॰ फ्लाय ओवर की संरचना तितली के आकार की हो।

 

॰॰ पूरे वर्ष भर चौराहों पर क्र्मवार महाविद्यालयीन छात्रों से भी यातायात संचालन कराया जाये, ताकि बुलिस बल की कमी से निपटा जा सके व भविष्य के नागरिकों के मन में यातायात के संस्कार जागृत हों। हाल ही में यातायात मित्र की योजना तो प्रारंभ हुई, लेकिन इस पर अमल शुरू नहीं हो सका है।

 

॰॰ बीच शहर में जितने भी प्रमुख बाजार हैं, उन्हें धीरे-धीरे शहर के चारों तरफ स्थानांतरित किये जायें, ताकि घोर अराजकता की स्थिति ही न बने।

 

॰॰ अब शहर का विकास खंडवा रोड व राउ-महू की तरफ किया जाये, जिससे उ्ज्जैन,बिचौली,देवास रोड से दबाव कम हो।

 

॰॰ सांवेर रोड से हाथी पाला तक अभी-भी बैलों से संचालित रनगाड़ों से सरिये का ढलान होता है, जो शहर की सुरक्षा के लिहाज से व धीमे यातायात की वजह से परेशानी भरा है। इसे तत्काल बंद किया जाना चाहिये।

 

॰॰ ई रिक्शा जब से आये हैं, तब से शहर के यातायात को कूड़ा करने में योगदान दे रहे हैं। इनके मार्ग निर्धारित किये जाने चाहिये।

 

॰॰ स्कूल बसें शहर के भीड़ भरे इलाकों मे तो जाती ही हैं, वे बस्तियों की तंग गलियों से भी निकलती हैं। इनके मार्ग निर्धारण भी तत्काल किये जाने चाहिये।

 

॰॰ लेफ्ट टर्न को सख्ती पूर्वक खाली रखा जाये, जो अभी सीधे जाने वालों वाहनों से पटे रहते हैं।

 

॰॰ जब सीसीटीवी से सिग्नल उल्लंघन पर चालान घर भेज दिये जाते हैं तो चौराहों पर तैनान यातायात जवानों के एक तरफ खड़े होकर तमाशा देखने व पूरे समय मोबाइल संचालन के लिये भी विभागीय कार्रवाई होना चाहिये।

 

॰॰ शहर के अनेक भीड़ भरे व यातायात के दबाव वाले रास्तों पर सौंदर्यीकरण के नाम पर करोड़ों रुपये खर्च कर 10-15 फीट तक के फुटपाथ बना दिये गये हैं, इन्हें तत्काल 5 फीट तक सीमित करना चाहिये। खास कर ग्रेटर कैलाश रोड,चिड़िया घर से नौलखा चौराहा आदि।

 

॰॰ शहर में शासकीय व नगर निगम के जो खुले स्थान है,उन पर किसी भी तरह के निर्माण पर रोक लगाना चाहिये,ताकि सीमेंट का जंगल बनाने से बचा जा सके और शहर को श्वांस लेने की जगह बची रहे।

 

॰॰ रीगल टाकीज जैसी जगह पर व्यावसायिक इमारत बनाने की बजाय पार्किंग बनाना चाहिये,ताकि महारानी रोड,सियागंज,जिला कोर्ट,कमिश्नर कार्यालय,वाणिज्यिक कर कार्यालय जाने वाले लोगों को पार्किंग सुविधा मिल सके।

 

मेरा ऐसा मानना है कि इस तरह के उपाय से यातायात जाम की समस्या से पूरी तरह छुटकारा भले न मिले, लेकिन काफी सीमा तक राहत तो मिल ही सकती है। बेशक, लोगों में यातायात संवेदना का नितांत अभाव भी प्रमुख कारण है ही, लेकिन प्रशासनिक व्यवस्था भी उतनी ही कारगर होना आ‌वश्यक है।(क्रमश:)