देहदान

92

देहदान

मां आप चिंता नहीं करें मैं समझा बूझाकर तुम्हें वापिस अपने घर ले आऊंगा अच्छा मैं चलता हूं मेरे ऑफिस का टाइम हो गया है खाना फ्रूट्स थैली में रखे हैं आप समय पर खा लेना बेटा मां के पांव छूकर चला गया
ट्रेन में सीटी दे दी और चल पड़ी अपने गंतव्य की ओर ।पेड़ पौधे पीछे छूटते जा रहे थे और मैं पीछे से आगे की और दौड़ रही थी विचारों में ।
कितना हंसना खिलाखिलाता परिवार था मेरा दो बेटे आज्ञाकारी उन्हें पढ़ाया लिखाया एक डॉक्टर और एक इंजीनियर बन गया ।बड़े चाव से उनकी शादी करी बहुओं की खनकती आवाज किसी मंदिर की धीमी घंटिया सी लगती । परिवार बढ़ता रहा पोते पोती आ गए । उनमें मैं श्रीनाथजी के वैष्णो देवी के दर्शन करती।
समय तीव्र गति से आगे बढ़ रहा था सभी परिचित मेरे प्यारे परिवार की बढाई करते नहीं थकते कितना संस्कारवान परिवार है अकेले रहकर भी इन बच्चों को इतना अच्छा बनाया है और मैं अपने आप में सिमट जाती ।मालूम नहीं किसकी नजर लग गई मेरे इस प्यार से परिवार को एक दिन एक दिन मेरे कमरे मेंछोटा बेटा रवि आया कहने लगा मां आपकी बहू नौकरी करना चाहती है कहती हैअपनी योग्यता का उपयोग करूंगी । इस कारण वह डिप्रेशन में रहती है और आपको तकलीफ होती है।आप खुश रहें हम यही चाहते हैं ।मैंने कहा कोई बात नहीं बेटा सुमन नौकरी करना चाहती है तो अच्छी बात है ।बेटे ने कहा हां सुमन चाहती है कि जॉइंट फैमिली में रहकर नौकरी करना मुश्किल है ,वह अलग रहकर अपना परिवार बसाना चाहती है और मैंने अपने मन पर पत्थर रखकर उसे अलग रहने की इजाजत दे दी ।
दूसरा बेटा राजीव बहुत अच्छा है बहू पहले तो बहुत अच्छी थी मगर छोटे के अलग होते ही उसने तेवर दिखाने शुरू कर दिए मेरी हर बात उसे गलत लगती बार-बार टोकती यह मत करो यह मत करो किसी को भी घर पर मत बुलाओ । फिर मैं दूर होती गई अपने परिवार से अपने परिचितों से अपनी सहेलियों से । बहू रोज कुछ ना कुछ कहती रहती और मैं रोती रहती कई कई दिन खाना भी नहीं खाती दीवारों से सिर फोड़ती । बेटा पूछता तो झूठ बोलती खा लिया है
बेटे ने मेरे जन्मदिन पर एक छोटी सी पार्टी रखी थी मैं भी सबसे हंस बोल रही थी और आनंद ले रही थी ।घर लौटे तो बहू ने बहुत कुछ कहा कि आप दूसरों का ध्यान रखते हैं मेरा नहीं खूब समझाया ऐसी बात नहीं है माफी भी मांगी फिर भी उसने मुझे खूब ।भला बुरा कहा और बोलना बंद कर दिया ।
खैर समय अपनी गति से चल रहा था मेहमान आए हुए थे उनके सामने उसने मुझे गुस्से में बातें की और कहा कि तुम्हारे कारण मैं परेशान हो गई हूं मैंने भी गुस्से में कहा कि मैं कल चली जाऊंगी। छोटी बहू को तो कोई मतलब ही नहीं था ।
मेरी सहेली रीना का एक छोटा सा मंदिर है और कुछ कमरे बने हुए हैं वहां पर । मुझ जैसी कई बुजुर्ग अभागिन महिलाएं वहां रहती है मैंनेवहां जाने का फैसला कर लिया बेटे से कहा मेरा रिजर्वेशन करवा दो और मैं ट्रेन से वहां चली गई। सभी ने मेरा मन से स्वागत किया । कुछ समय लगता है एडजस्ट होने में फिर भी मैं वहां रच बस गई। मन खाली रहता आंखें कई बार आंसुओं से भीग जाती। सभी मेरा बहुत ध्यान रखते ।सखी रीना विशेष तौर से ध्यान रखती । दोनों बेटे के कभी-कभी फोन आते मां कैसी है आप बस यही वार्तालाप होता था
यहां रहते 10 साल हो गए रोज शाम बादलों से बातें करती कि जिस प्रकार तुम्हारा धरती से मिलान नहीं होता है वैसा
ही हम सब का जीवन है । तारों को निहारती गिनती हूं उनसे कहती कोई तो आकर मेरी गोदी में समा जाओ तुम्हें खूब प्यार करूंगी ।
वैसे तो रीना मेरा पूरा ध्यान रखती परंतु एक दिन शाम को मेरे पास आकर बैठ गई और कहा बोलो मनु तुम क्यों अपने में खोई रहती हो सबके साथ हंसो बोलो सब से मिलो ऐसी क्या बात हो गई कि जिन बच्चों को तुमने मेहनत मजदूरी करके पढ़ाया लिखाया वे तुमसे विमुख हो गए ।यह सब भाग्य की बात है। समय कभी अपने हाथ में नहीं रहता है
हां एक बात तुमसे अवश्य कहना चाहती हूं कि जब मुझे कुछ हो जाए तो मेरे बच्चों को मेरी देह को हाथ मत लगाने देना मेरा देहदान कर देना यह अधिकार में तुम्हें देता हूं क्योंकि डॉक्टर बनने वाले बच्चे पढ़ सकेंगे ।मेरे ऊपर कर्ज है मैंने बेटे को डॉक्टर बनाया तो उसने भी किसी की देह से पढ़ाई की होगी मैं उरिण हो जाऊंगी इस कर्ज से ।
एक बात अवश्य है रीना कि पत्नी आने पर मां पराई हो जाती है सास ससुर का दर्द उन्हें अपना लगता है मां तो जैसे उनकी जिंदगी का कोई हिस्सा ही नहीं है
कई बार सोचती हूं कि मेरी भी कोई बेटी होती तो उससे मैं अपना दुख दर्द बांटती और वह मुझे खुश रखने की कोशिश कोशिश करतीमेरी बात सुनने की मन में रखती और मेरे प्रति उसका दर्द रहता परंतु क्या करूं बेटी ही नहीं है और हुई थी वह भी भगवान के पास चली गई कुछ घंटे जी कर ।
तुम जानती हो कि आबू में मेरी बड़ी बहन रहती है वह मुझ में बहन कम बेटी ज्यादा देखती है ।वहां भी मैं अक्सर जाती रहती हूं और जहां तक मुझसे बनता है उसके मन को सुकून देती हूं उश रोज फोन पर बातें करती हूं उसकी रोज की कहानी चाहे 10 बार कहे। उन्हें सुनती हूं वह भी यही कहती है कि तुम मेरी बेटी हो हां अगर बहुएं सास ससुर का थोड़ा सा भी ध्यान रखें तो वह तो निहाल हो जाते हैं उन पर । अपना सब कुछ लुटा देते हैं । जब बेटा जन्म लेता है तो उसके लिए वह शुरू से ही बहू की कल्पना करती है कि मेरी बहू ऐसी होगी और अपनी हर चीज सहेज कर बेटे को घर को सोना चांदी घर मकान सब उसको दे देती है मगर उसे क्या मिलता है ।
मालूम नहीं मैंने कौन सा गुनाह किया था जिसकी सजा मुझे मिल रही है और ऐसा कौन सा पुण्य किया कि तुम जैसी सखी मुझे मिली है ।
अच्छा रीना तुम अपना काम करो मुझे भी नींद आ रही है और मैं भी अब सोंउंगी बस एक गिलास दूध भिजवा देना पी कर सो जाऊंगी
और फिर मैं ऐसी सोई कि सुबह वापस उठी ही नहीं । मेरी आंखें बंद थी धड़कन बंद थी विचार बंद थे मालूम नहीं वह कैसे ऐसे बंद हो गए और मैं अपने प्रभु के चरणों में सदा के लिए सो गई क्योंकि मौत ही है बड़ी जिंदगी तुझ है एक दिन उसकी बाहों में सो ही गई
मेरी तस्वीर पर फूलों की माला रोज चढ़ाते हैं पंडित को खाना खिलाते हैं मगर इससे क्या फायदा
मैंने देह दान करके एक अच्छा काम ही किया होगा ना ।लकड़ी लगी ना किसी को कंधे पर उठाकर ले जाना पड़ा और न ही अस्थियों को गंगाजल में विसर्जन करने पड़ा । मैं अंत समय में उन सभी को माफ करती हूं जिन्होंने मेरे साथ कुछ भी गलत किया हो और मैं भी मुक्त होती हूं उन्हें माफ़ करके
अलविदा
मेरी सखी सदा के लिए
मुन्नी गर्ग