
Body Donation:97 वर्ष वय में अमर प्रेरणा: श्रीमती शारदा भीमवाल का शरीर दान एवं शाश्वत प्रसन्नता
डॉ तेज प्रकाश व्यास
इंदौर ने एक बार फिर मानवता की मिसाल पेश करते हुए अंग एवं शरीरदान के क्षेत्र में अग्रणी भूमिका निभाई है। 12 नवम्बर का दिन एक प्रेरणादायी उदाहरण बन गया, जब 97 वर्षीय श्रीमती शारदा भीमवाल ने अपने नेत्र, त्वचा और संपूर्ण शरीर का दान एम.जी.एम. मेडिकल कॉलेज, इंदौर को किया। यह कार्य उनकी करुणा, सेवा और समाज के प्रति समर्पण का अद्भुत प्रतीक है।
आज 12 नवंबर को दोपहर 4 बजे उनके शरीर को अत्यंत सम्मानपूर्वक कॉलेज को सौंपा गया, जहाँ उन्हें गार्ड ऑफ ऑनर देकर श्रद्धांजलि दी गई। कॉलेज के डीन ने उनके परिवारजनों और बच्चों के इस महान निर्णय के लिए हार्दिक आभार व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि इस दान से मेडिकल के विद्यार्थी मानव शरीर रचना (एनाटॉमी) का अध्ययन कर सकेंगे, जिससे चिकित्सा विज्ञान को नई दिशा मिलेगी।
श्रीमती भीमवाल के दो नेत्र ज़रूरतमंद मरीजों को दृष्टि देंगे, जबकि त्वचा जलने वाले रोगियों के उपचार में अमृत समान सिद्ध होगी। उनका शरीर आने वाली पीढ़ियों के डॉक्टरों के लिए ज्ञान का दीप बनेगा।
यह पावन दान हमें याद दिलाता है कि मृत्यु के बाद भी जीवन और शिक्षा बाँटी जा सकती है।
श्रीमती शारदा भीमवाल का यह योगदान मानवता के इतिहास में अमर रहेगा।
वे मेदांता हॉस्पिटल इंदौर के हृदय रोग के प्रसिद्ध हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ. भारत रावत की नानी थीं.
महाप्रयाण पल भी वे प्रसन्न चित्त थीं. यह जीवन में शाश्वत प्रसन्नता का बड़ा पाठ है.
शाश्वत प्रसन्नता: जीवन का परम पाठ
श्रीमती शारदा भीमवाल के महाप्रयाण के क्षण में भी उनका चेहरा प्रसन्न था — यह दृश्य जीवन का एक गूढ़ आध्यात्मिक संदेश देता है। शाश्वत प्रसन्नता वह स्थिति है, जहाँ व्यक्ति आत्मा के सत्य स्वरूप को पहचान लेता है और सुख-दुःख, लाभ-हानि से परे होकर समत्व में स्थित रहता है।
भगवद्गीता में श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं —
“समदुःखसुखं धीरं सोऽमृतत्वाय कल्पते” (गीता 2/15)
अर्थात् जो व्यक्ति दुःख और सुख दोनों में समान भाव रखता है, वही अमृतत्व — अर्थात् अमर शांति — को प्राप्त करता है।

यह प्रसन्नता बाहरी परिस्थितियों से नहीं, बल्कि आत्मस्वीकृति, करुणा और समर्पण से उत्पन्न होती है। जब मनुष्य जीवन को सेवा, प्रेम और ज्ञान के माध्यम से जीता है, तब मृत्यु भी उसके लिए केवल एक परिवर्तन बन जाती है, अंत नहीं।
श्रीमती भीमवाल का हँसमुख और शांत महाप्रयाण हमें यह सिखाता है कि सच्ची आध्यात्मिकता उसी में है, जहाँ जीवन के अंतिम क्षण में भी आत्मा परम शांति में स्थित रहे। यही शाश्वत प्रसन्नता का सर्वोच्च स्वरूप है — जहाँ मनुष्य देह नहीं, दिव्यता का अनुभव करता है





