Broom : लक्ष्मी का प्रतीक है झाडूृ

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हमारी मान्यताएं –

Broom : लक्ष्मी का प्रतीक है झाडूृ

डॉ. सुमन चौरे
झाड़ू देते-देते गीता कुछ स्वगत संभाषण कर रही थी! मुझे लगा, घर के विषय में कुछ बोल रही है। मैंने पास जाकर सुना, तो वह तुरंत बोली, ‘‘जीजी, ऊपर की झाड़ू टूट गई है, नई ला दो; अगर ऊपर भूल जाती हूँ, तो झाड़ू े लेने नीचआना पड़ता है। ऊपर-नीचे के चक्कर हाते हैं।’’ मैंने कहा, ‘‘कुछ दिन इसी से काम चला ले। देव उठनी ग्यारस के बाद ला दूँगी।’’
देव उठनी ग्यारस की बात सुनते ही वह बोली, ‘‘अरे जीजी, आप भी ऐसा नेम मानती हो। वो तो अपनी सिंध की भायरी (झाड़ू) का मोरत होता है। यह सब गाँव में मानते हैं। अंग्रेजी झाड़ू का क्या मोरत। कॉलोनी की और मेडमें तो चाय-शक्कर-बिस्किट के साथ मॉल से झाड़ू हर कभी ले आती हैं। वो तो सगुण असगुण नई मानतीं।’’
गीता ने बड़ी आसानी से, अंग्रेजी झाड़ू का नेम मोरत नहीं होता, मुझे समझा दिया। कितनी प्रगतिशील है गीता – मेरे क्षेत्र निमाड़ से ही आठ-दस साल पहले आई है, घर-घर ‘झाड़ू पोछा’ करते हुए वो शहरी हो गई और मैं? पचास साल से शहर में रहते हुए भी झाड़ू खरीदने के लिए मुहुर्त और शुभ-अशुभ का चिन्तन करती हूँ। किन्तु झाड़ू खरीदने के ही नहीं झाड़ू संबंधी बहुत सारी ऐसी मान्यताएँ या परम्पराएँ हैं, जिनको मानना मुझे अच्छा लगता है।

झाड़ू पूजा Broom
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सिंध की झाड़ू देव उठनी ग्यारस के बाद खरीदना उसके पीछे एक प्राकृतिक कारण भी है। बरसात के बाद सिंध को काटकर, सुखाकर, महीन छीलकर झाड़ू बनाई जाती है। शायद इसलिए इन दिनों की प्रतीक्षा की जाती है। इस तरह इसने परम्परा और मुहुर्त का रूप ले लिया। झाड़ू खरीदने में हमारे घरों में वास्तव में शुभाशुभ मुहुर्त का ध्यान रखा जाता था।
झाड़ू हमारी घर गृहस्थी का प्रमुख प्राथमिक अंग है। झाड़ू संबंधी और विचार मान्यताएँ बड़ी प्रबल होती हैं। झाड़ू को कैसे रखना? कहाँ रखना? इस कारण के पीछे हमारी स्वच्छता के साथ स्वास्थ्य का भी ध्यान रखा जाता है। जब किन्हीं चीजों को मानने में ‘ना’ ‘नुकुर’ होता है, तो उसे धर्म से जोड़ दिया जाता है। किन्तु झाड़ू संबंधी सभी मान्यताएँ हमारे स्वास्थ्य के साथ सीधी जुड़ी हैं। जैसे झाड़ू सिरहाने, पैराने और बिस्तर के नीचे रखना मना है। झाड़ू उल्टी नहीं रखना, झाड़ू कोने में खड़ी नहीं करना। झाड़ू पर झाड़ू नहीं रखना, झाड़ू दरवाजे़ से लगाकर नहीं रखना आदि। कहते है।, क्वारी झाड़ू नहीं वापरना चाहिए, झाड़ू को ठोकर नहीं मारना। घर से कोई जाय, बेटी बहू ससुराल मायके जाय, तो तुरंत बाद झाड़ू नहीं देना चाहिए।

धनतेरस के दिन झाड़ू की पूजा कैसे की जाती है?
झाड़ू लगाने के भी बड़े अच्छे विधान हैं, जैसे नहाने के पहले झाड़ू लगाना, भीतर के कमरे से बाहर की ओर आँगन में झाड़ू लगाते आना, झाड़ू को बार-बार नहीं झटकना, आँगन की झाड़ू से चौका नहीं झाड़ना। झाड़ू पर कचरा रखकर बाहर नहीं फेंकना। झाड़ू से बच्चों की नज़र उतारकर, उसे जला देना।
झाड़ू खरीदने के बड़े नियम होते थे। झाड़ू जोड़े से खरीदना, अकेली नहीं खरीदना। पहले देव झाड़ू खरीदना, फिर घट्टी झाड़ू खरीदना, फिर घर की झाड़ू खरीदना। झाड़ू खरीदकर एकदम उसे वापर में नहीं लिया जाता। हमारे घर झाड़ू का पहले विवाह किया जाता था, फिर उसकी पूजा कर उसे उपयोग में लिया जाता था। हमारी आजी माँय देव उठनी ग्यारस के दिन या विवाह के मुहुर्त के दिन साँझ के समय ही, झाड़ू का विवाह करती थीं।

बड़ी ही रोचक परम्परा है। मुझे बहुत ही आनन्दमयी लगती थी यह परम्परा। घर के मध्य जो खम्ब होता है, उसके चारों ओर उससे झाडुओं को टिका दिया जाता था। फिर उस पर नई श्यापी (टावेल) ओढ़ा दिया जाता था। खम्ब के साथ झाडुओं को कच्चे सूत और नाड़े से बाँधकर उसकी तथा खम्ब की एक साथ पूजा की जाती थी, फिर आरती उतारकर हमारी आजी माँय प्रार्थना करती थी कि ‘घर में बरकत रखना भायरी (झाड़ू) माता’। रातभर झाड़ू खम्ब के साथ बँधी रहती थी फिर सुबह भगवान के आगे प्रत्येक झाड़ू से पाँच-पाँच बार झाडने के बाद झाड़ू उपयोग में लाई जाती थी। कहते थे, झाड़ू का विवाह खम्बे से हो गया, अर्थात् झाड़ू घर की लक्ष्मी हो गई। लक्ष्मी पूजा के दिन भी पहले झाड़ू की पूजा की जाती है, फिर अन्य देवी देवताओं की। झाड़ू का मझघर के खम्ब से बंधन ही साफ़-सुथरे घर का द्योतक है।

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घर में जब नई बहू आती है, तो गृह प्रवेश के बाद उससे गोबर, दहली और झाड़ू की पूजा करवाई जाती है। बच्चे के जन्म के पश्चात्, जब प्रसूता से गृह कार्य कराये जाते हैं, तो सर्वप्रथम झाड़ू की पूजा करवाई जाती है। हिदायत दी जाती थी, कि साथ दूध पीता बच्चा हो, तो माँ कपड़े-पानी के लिए कुआ जाय, तो पहले झाड़ू का स्पर्श कर अपने बच्चे को गोदी में ले।
परम्पराएँ और मान्यताएँ कोरी बातें नहीं हैं उसके पीछे कितना बड़ा दर्शन काम करता है। लक्ष्मी की पूजा के पहले झाड़ू पूजना कितना दार्शनिक सोच है। बहू से झाड़ू पुजवाना अर्थात् स्वच्छता जहाँ होगी वहां लक्ष्मी का वास होगा। जहाँ स्वच्छता है, वहाँ आरोग्य है। जहाँ झाड़ू है वहाँ उत्तम सोच है। झाड़ू का आदर करना, मेरे सोच में सम्मिलित है, गर भूले से भी झाड़ू को ठोकर लग जाय, तो मैं दोनों हाथ जोड़कर प्रणाम करती हूँ। झाड़ू को पूजनीय मानना हमारी लोक संस्कृति की देन है। जहाँ स्वच्छता है, वहाँ निरोग काया है, जहाँ निरोगी जन वास करते हों, वहाँ बरकत और स्वस्थ मन, स्वस्थ चित्त तथा स्वस्थ वातावरण होगा।

डॉ. सुमन चौरे
13 समर्थ परिसर,
ई-8 एक्सटेंशन,
बावड़िया कलाँ
त्रिलंगा पोस्ट ऑफिस,
भोपाल: 4620000

कहानी संवाद: अंतर्राष्ट्रीय विश्वमैत्री मंच का अभिनव आयोजन -‘दो कहानी- दो समीक्षक’