मोदी विजन और मोहन के मन का मंत्रिमंडल…

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मोदी विजन और मोहन के मन का मंत्रिमंडल…

आखिरकार मध्यप्रदेश में मंत्रिमंडल का विस्तार हो गया है। जैसा कि दिख रहा है, मंत्रिमंडल विस्तार का फार्मूला केंद्र का है और मोदी विजन में ही मोहन का मन समाया हुआ है। मंत्रिमंडल का गठन मुख्यमंत्री का विशेषाधिकार है, सो यह कहने का अधिकार किसी को नहीं है कि मंत्रियों का चयन उनके मन को नहीं भाया। और अगर मुख्यमंत्री के मन और मोदी विजन में कोई चेहरा आ गया तो उसके लिए पर्याप्त जगह अभी भी उपलब्ध हैं। वैसे अगर एक नजर से देखा जाए तो नए मुख्यमंत्री के लिए नए चेहरे सुकून देने वाले हैं और जो उम्रदराज चेहरे हैं, वह या तो केंद्र से लौटे मोदी विजन में रचे-बसे चेहरे हैं या फिर ज्योतिरादित्य सिंधिया खेमे के तीन मंत्रियों को इसमें शामिल किया जा सकता है। सिंधिया खेमा भी अब भाजपा के रंग में रंग चुका है, शक्कर की तरह पानी में घुल चुका है इसलिए अब मोदी विजन और मोहन के मन के मुताबिक ही सब कुछ दिखने वाला है। बहुत कुछ अलग होने का अहसास मंत्रिमंडल के वर्तमान स्वरूप में नजर आ ही रहा है और बाकी अहसास विभागों के बंटवारे के समय होने वाला है।
मंत्रिमंडल की खासियत है कि इसमें सत्तर पार वाला कोई चेहरा नजर नहीं आ रहा है। नागेंद्र सिंह गुढ़ (81 वर्ष), नागेंद्र सिंह नागौद (80 वर्ष), जयंत मलैया (76 वर्ष), बिसाहू लाल सिंह (73 वर्ष), डॉ. सीतासरन शर्मा (73 वर्ष), अजय विश्नोई (71 वर्ष), गोपाल भार्गव (71 वर्ष) और गिरीश गौतम (70 वर्ष) जैसे चेहरे इस मापदंड में मंत्रिमंडल से बाहर हो गए हैं, तो बाकी चेहरे शिवराज की पसंद होने के चलते मंत्रिमंडल में शामिल नहीं हो पाए हैं। भोपाल में विश्वास सारंग के साथ कृष्णा गौर को मंत्रिमंडल में जगह देकर शक्ति संतुलन बनाने की कवायद की गई है। इंदौर में कैलाश विजयवर्गीय और तुलसी सिलावट के नाम अलग-अलग खेमों में पूर्ण संतुलन स्थापित कर रहे हैं। नरसिंहपुर में प्रहलाद पटेल और उदय‌ प्रताप सिंह दोनों चेहरे सांसदी छोड़कर मैदान मारने का पुरस्कार पा चुके हैं, तो जबलपुर में राकेश सिंह के साथ भी यही बात है। रीति पाठक को ही विंध्य के ब्राह्मण समीकरण के चलते खामियाजा भुगतना पड़ा है। डिप्टी सीएम बनकर राजेंद्र शुक्ला विंध्य की भरपाई कर रहे हैं। केंद्र से लौटे नरेंद्र सिंह तोमर विधानसभा अध्यक्ष बनकर आसंदी पर आसीन हैं ही। दमोह से दो मंत्री लखन पटेल और धर्मेंद्र लोधी को बनाकर ओबीसी समीकरण साधा गया है। राजगढ़ जिले से गौतम टेटवाल और नारायण सिंह पंवार को मंत्री बनाकर एक अलग संतुलन स्थापित किया गया है। तो ग्वालियर से प्रद्युम्न सिंह तोमर और नारायण सिंह कुशवाहा को मंत्री बनाकर सिंधिया और गैर सिंधिया में संतुलन ही मुख्य‌ बात है। और जहां-जहां दो मंत्री बने हैं, उनके आसपास के जिलों को पूरी तरह से मंत्री मुक्त रहने की सजा भी मिली है।
पुराने मंत्रिमंडल के सदस्यों की गिनती की जाए तो तुलसी सिलावट, गोविंद सिंह राजपूत, प्रद्युम्न सिंह तोमर, विश्वास सारंग, जगदीश देवड़ा, राजेंद्र शुक्ला, इंदर सिंह परमार और विजय शाह ही मोहन के मन को लुभा पाए हैं। हालांकि तुलसी, गोविंद और प्रद्युम्न सिंह तोमर को तो ज्योतिरादित्य की आंख, नाक और कान माना जा सकता है। वहीं राजेंद्र शुक्ला, जगदीश देवड़ा और इंदर सिंह परमार शिवराज मंत्रिमंडल के वह लो प्रोफाइल चेहरे हैं, जो अलग-अलग समीकरण में संतुलन बना रहे हैं। विश्वास सारंग कायस्थ समाज के प्रतिनिधि और विजय शाह आदिवासी नेतृत्व के चलते अपनी जगह बनाने में कामयाब हो पाए हैं। तो गोपाल भार्गव, भूपेंद्र सिंह, डॉ. प्रभुराम चौधरी, बृजेंद्र प्रताप सिंह, ओमप्रकाश सकलेचा, हरदीप सिंह डंग, बृजेंद्र सिंह यादव,बिसाहू लाल सिंह, ऊषा ठाकुर और मीना सिंह के मंत्री न बन पाने की अलग-अलग वजहें सबके सामने हैं।
कुल मिलाकर अटल बिहारी वाजपेयी के जन्मदिन 25 दिसंबर 2023 को राजभवन में राज्यपाल मंगुभाई पटेल ने नवनिर्वाचित 18 विधायकों को कैबिनेट मंत्री, 6 विधायकों को राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) और 4 विधायकों को राज्य मंत्री के रूप में पद एवं गोपनीयता की शपथ दिलाई है। इनको मिलाकर मंत्रिमंडल का आकार 31 के शुभ अंक पर पहुंच गया है। सुशासन दिवस पर हुई इस शपथ में पहली बार के विधायकों को भी पर्याप्त अवसर मिला है और पांच महिलाओं को स्थान देकर भी संतुलन बनाने की कवायद की गई है। क्षेत्रीय और जातिगत संतुलन के साथ 2003 के बाद मंत्री बन रहे चेहरों से दूरी बनाने की सफल कोशिश रंग लाई है। अब मोदी के विजन और मोहन के मन का यह मंत्रिमंडल प्रदेश को देश में अव्वल बनाकर अपनी सार्थकता सिद्ध करने की चुनौती से पार पाने में सफल होगा, यही उम्मीद है…।