Cabinet Reshuffle: मंत्रिमंडल में फेरबदल के ‘फार्मूले’ पर खास नजर!

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Cabinet Reshuffle: मंत्रिमंडल में फेरबदल के ‘फार्मूले’ पर खास नजर!

* दिनेश निगम ‘त्यागी’ की खास रिपोर्ट

– लोकसभा चुनाव निबटने के बाद प्रदेश मंत्रिमंडल मेें फेरबदल तय माना जा रहा है। इसका फार्मूला क्या होगा? इस पर मंत्रियों, विधायकों की खास नजर है। मंत्रिमंडल के पुनर्गठन को लेकर कई तरह की चर्चाएं हैं। पहली यह कि केंद्रीय मंत्री अमित शाह कह गए थे कि लोकसभा चुनाव में जिन मंत्रियों के क्षेत्रों में कम मतदान होगा, उनके स्थान पर उन विधायकों को मंत्री बनाया जाएगा, जिनके क्षेत्रों में ज्यादा मतदान हुआ है। उनकी इस घोषणा की वजह से लगभग 50 विधायकों की उम्मीदों को पंख लगे हैं तो आधा दर्जन से ज्यादा मंत्रियों पर खतरे की तलवार लटक रही है। दूसरा, कांग्रेस के तीन विधायकों राम निवास रावत, कमलेश शाह और निर्मला सप्रे को मंत्री बनाने का आश्वासन देकर भाजपा में लाया गया है। मंत्रिमंडल में तीन पद ही खाली हैं। इन तीनों से इन्हें भरा जा सकता है। तीसरा, प्रदेश सरकार के गठन के समय लोकसभा चुनाव को ध्यान में रखकर जातीय समीकरण साधते हुए मंत्रिमंडल का गठन किया गया था। इसकी वजह से गोपाल भार्गव और भूपेंद्र सिंह जैसे दिग्गज मंत्री बनने से वंचित रह गए थे। फेरबदल में ऐसे वरिष्ठ नेताओं की लॉटरी खुल सकती है। बहरहाल, हो चाहे जो, लेकिन चुनाव बाद संभावित मंत्रिमंडल फेरबदल की खबरों ने मंत्रियों, विधायकों की नींद उड़ा रखी है।

 

 *0 किसे, कितनी सीटें?, हर वर्ग में चर्चा का यही मुद्दा….*

– प्रदेश की सभी 29 लोकसभा सीटों के लिए मतदान हो जाने के बाद से हर वर्ग के बीच चर्चा का एक मात्र मुख्य मुद्दा है, किस दल को मिलेंगी कितनी सीटें? मप्र में भाजपा का आधार ज्यादा मजबूत है, इसलिए उसके पक्ष में बोलने वाले लोगों की तादाद ज्यादा है। कोई भाजपा के दावे पर मुहर लगाते हुए कहता है कि पार्टी सभी 29 सीटें जीत कर क्लीन स्वीप कर रही है, कुछ 28 अथवा 27 सीटों मिलने की भविष्यवाणी करते हैं। कांग्रेस के पक्ष में राय रखने वालों का कहना है कि कांग्रेस लगभग एक दर्जन सीटों में कड़ी टक्कर दे रही है। इनमें से वह 7-8 सीटें जीत सकती है। पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी की राय से उनके समर्थक ही इत्तफाक नहीं रखते। जीतू का दावा है कि पार्टी डबल डिजिट में सीटें जीत कर सभी गणितज्ञों को चौंका देगी। एक राय तटस्थ विश्लेषकों की है। उनका कहना है कि प्रदेश की 11 सीटों मुरैना, भिंड, ग्वालियर, राजगढ़, सतना, सीधी, मंडला, छिंदवाड़ा, धार, रतलाम और खरगोन में कांग्रेस अच्छा मुकाबला कर रही है। इनमें से कहीं भाजपा के प्रत्याशी ज्यादा कमजोर हैं तो कहीं कांग्रेस के अपेक्षाकृत मजबूत। तटस्थ विश्लेषकों का कहना है कि इन सीटों पर नतीजा कुछ भी आ सकता है। यदि वास्तव में मोदी और राम लहर है तो सभी सीटें भाजपा जीत सकती है, वरना नतीजा किसी के भी पक्ष में जा सकता है।

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 *0 शिवराज के दरवाजे फिर ‘राज योग’ की दस्तक….* 

– पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान विधानसभा चुनाव के बाद निराशा के दौर से गुजर रहे थे। भाजपा को अच्छी सफलता के बावजूद डॉ मोहन यादव को मुख्यमंत्री बना दिया गया था। उनके कई बयान नेतृत्व से पंगा लेने वाले दिखाई पड़ रहे थे। माना जा रहा था कि जल्दी उनका मुख्य धारा में वापस आना मुश्किल होगा। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नाम लेना तक बंद कर दिया था। टकराव के इस दौर में उन्हें दक्षिण के राज्यों में काम की जवाबदारी सौंपी गई, तब लगा कि उन्हें उसी तरह प्रदेश की राजनीति से दूर भेजा जा रहा है, जिस तरह कभी पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती को भेजा गया था। चर्चा चल पड़ी थी कि संभवत: उन्हें लोकसभा का टिकट भी नहीं मिलेगा, पर शिवराज की किस्मत के पहिए को घूमते देर नहीं लगी। लोकसभा का टिकट मिलते ही वे फार्म में लौट आए। राज योग उनके दरवाजे पर दस्तक देता दिखाई पड़ने लगा। वे उसी तरह देश भर में भाजपा के पक्ष में प्रचार करते घूम रहे हैं, जिस तरह मुख्यमंत्री रहते घूमते थे। प्रदेश दौरे पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एलान कर गए थे कि वे शिवराज को दिल्ली की राजनीति में अपने सहयोग के लिए ले जाना चाहते हैं। पहले संगठन में साथ काम करते थे, अब सरकार में करेंगे। चुनाव बाद उन्हें बड़ी जवाबदारी मिल सकती है। लिहाजा, शिवराज फिर नरेंद्र मोदी की तारीफ पहले जैसी करने लगे हैं।

25 04 2017 digvijaysingh modi

*0 चुनाव जीते तो दिग्विजय फिर कांग्रेस के ‘हीरो’….!* 

– कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह ने पार्टी में एक बार फिर अपनी उपयोगिता सिद्ध कर दी। उन्होंने यह भी साबित किया कि वे कांग्रेस के सच्चे सिपाही हैं। 2019 में वे लोकसभा का चुनाव नहीं लड़ना चाहते थे। लड़ना जरूरी हो तो पसंद की सीट राजगढ़ थी। लेकिन पार्टी नेतृत्व ने भाजपा के गढ़ भोपाल से उन्हें चुनाव लड़ा दिया। भोपाल में उन्होंने अच्छा चुनाव लड़ा लेकिन जैसी कि संभावना थी, वे बड़े अंतर से चुनाव हार गए। 2024 के लिए भी दिग्विजय ने घोषणा कर दी थी कि वे चुनाव नहीं लड़ेंगे क्योंकि उनका राज्यसभा का कार्यकाल ही बकाया है। लेकिन नेतृत्व का आदेश हुआ तो उन्होंने टाला नहीं और वे अपने गृह क्षेत्र राजगढ़ से चुनाव लड़ गए। जबकि 2019 में न ज्योतिरादित्य सिंधिया दूसरी सीट से लड़ने तैयार हुए थे और न ही कमलनाथ ने इस बार छिंदवाड़ा छोड़ने की हिम्मत जुटाई। दिग्विजय ने 76 की उम्र में इस बार जितनी मेहनत की, कोई युवा प्रत्याशी भी नहीं कर सकता। इतना ही नहीं, मतदान हो जाने के बाद कमलनाथ की तरह थकाने मिटाने के लिए दिग्विजय घर नहीं बैठे। पहले प्रदेश की दूसरी सीटों में जाकर प्रत्याशियों को ताकत दी, इसके बाद देश के दूसरे राज्यों में जाकर चुनाव में अपनी उपयोगिता साबित की। अब एक बात तय है कि दिग्विजय यदि राजगढ़ से चुनाव जीत गए तो एक बार फिर वे कांग्रेस के हीरो होंगे।

kamalnath

*0 छब्बे जी बनने निकले चौबे जी, दुबे बनकर लौटे….* 

– ‘छब्बे जी बनने निकले चाैबे जी, दुबे जी बनकर लौटे’, यह कहावत कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कमलनाथ पर सटीक बैठती है। कांग्रेस में उनकी ऐसी धाक थी, कि पार्टी अध्यक्ष बनाने तक के लिए उनका नाम चल निकला था। पर उनमें अपने दम पर दूसरी बार प्रदेश में सरकार बनाने की धुन सवार थी। इस जिद ने उन्हें कहीं का नहीं छोड़ा। पहले उन्हें प्रदेश अध्यक्ष पद से हटा दिया गया, इसके बाद रही सही कसर उनके भाजपा में जाने को लेकर चली खबरों ने पूरी कर दी। वे पार्टी के अंदर अपनी साख गंवा बैठे। भाजपा में उनका जाना क्यों रुका, इसे लेकर कई तरह की अटकलें चर्चा के केंद्र में रहीं। कमलनाथ के बाद प्रदेश अध्यक्ष बने जीतू पटवारी ने कोई बड़ा तीर नहीं मार लिया। बावजूद इसके पार्टी यदि लोकसभा की 29 में से 2-3 सीटें ही जीतने में सफल हो गई तो जीतू का कद कमलनाथ से बड़ा हो जाएगा। क्योंकि 2019 में कमलनाथ के मुख्यमंत्री रहते पार्टी लोकसभा की सिर्फ एक सीट छिंदवाड़ा जीती थी, वह भी मामूली अंतर से। मैदान में कमलनाथ के बेटे नकुलनाथ थे। इस चुनाव में कमलनाथ की राष्ट्रीय नेता की छवि भी जाती रही क्योंकि वे पूरे चुनाव सिर्फ छिंदवाड़ा तक सीमित होकर रह गए। चुनाव बाद भी वे प्रचार के लिए बाहर नहीं निकले। अब उनके राजनीतिक भविष्य को लेकर अटकलें शुरू हो गई हैं।