
बिहार में बड़े अपराधों के आरोपियों की उम्मीदवारी की परीक्षा
आलोक मेहता
बिहार विधान सभा चुनाव के लिए प्रमुख राजनीतिक पार्टियों ने अपराधियों की पृष्ठभूमि वाले नेताओं के मुद्दे पर परस्पर गंभीर आरोप लगाए हैं | अब टिकट बंटवारे यानी उम्मीदवारों पर अंतिम विचार विमर्श , खींचातानी , गोपनीय या सार्वजनिक रिपोर्ट सामने रखी जा रही है | इसलिए स्वाभाविक है कि सभी पार्टियों के लिए अग्नि परीक्षा जैसी है |इस समय बिहार के 49 प्रतिशत विधायक गंभीर आरोपों का सामना कर रहे हैं | 243 में से करीब 160 विधायकों पर आपराधिक मामले दर्ज हैं, जिनमें 123 विधायकों के खिलाफ संगीन अपराधों के आरोप हैं। 19 विधायकों पर हत्या के मामले दर्ज हैं। 31 विधायकों पर हत्या का प्रयास के मामले दर्ज हैं। मामले अदालतों के समक्ष विचाराधीन हैं | आपराधिक पृष्ठभूमि के मुद्दे मैं लालू यादव के राष्ट्रीय जनता दल के 74 में से 54 विधायक यानि (73%)विधायकों पर मामले दर्ज हैं ,वहीं भाजपा के 73 में से 47 विधायक यानि (64%)आपराधिक मामले का सामना कर रहें हैं ,जबकि जदयू के 43 विधायकों में से 20 विधायक यानि (46%) वहीं कांग्रेस पार्टी के 19 में से 18 विधायक (94%) विधायकों पर आपराधिक मामले दर्ज हैं | सवाल यह है कि अदालत में सुनवाई के नाम पर कितने नेताओं को टिकट मिलते हैं और जीत की मोह माया में कितनों को टिकट मिलते हैं | सही मायने में मतदाता सूची , वोटिंग मशीन आदि अनावश्यक बातों के बजाय जनता अपराध पर कठोर अंकुश और विकास कार्यों में तेजी के लिए वोट देना चाहती है |
चुनावी राजनीति पर नजर रखने वाली संस्था ए डी आर ने अपनी एक रिपोर्ट में भी कहा था कि राजनीतिक दल ईमानदारी की अपेक्षा चुनावी योग्यता को प्राथमिकता देते हैं, तथा जीत सुनिश्चित करने के लिए अक्सर आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों को मैदान में उतारते हैं। आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों के पास अक्सर महत्वपूर्ण वित्तीय संसाधन और स्थानीय प्रभाव होता है, जिससे वे चुनावों पर हावी हो जाते हैं। विधायिकाओं में अपराधियों की उपस्थिति लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं और संस्थाओं में जनता के विश्वास को कम करती है। यह भी महत्वपूर्ण तथ्य है कि आपराधिक विधायकों के प्रभुत्व वाले क्षेत्रों में कम मतदान प्रतिशत निराशा को दर्शाता है। आपराधिक पृष्ठभूमि वाले विधायक अक्सर सार्वजनिक कल्याण के स्थान पर निजी हितों को प्राथमिकता देते हैं, जिसके कारण सुधार अवरुद्ध हो जाते हैं। ऐसे विधायकों के प्रभाव के कारण आपराधिक न्याय सुधारों में भी देरी होती है |: सत्ता में बैठे अपराधी दंड से मुक्ति की संस्कृति को बढ़ावा देते हैं, जिसके परिणामस्वरूप अपराध दर और भ्रष्टाचार बढ़ता है। धन और बाहुबल के प्रभुत्व के कारण ईमानदार व्यक्तियों को अक्सर राजनीति में प्रवेश मुश्किल होता है | दूसरे प्रशासनिक सुधार आयोग की सिफारिश थी कि गंभीर आपराधिक आरोपों वाले उम्मीदवारों के लिए सख्त अयोग्यता नियम लागू होना चाहिए | ताकि हत्या या बलात्कार जैसे जघन्य अपराधों के आरोपी उम्मीदवारों को चुनाव लड़ने से रोका जा सके | समय पर न्याय सुनिश्चित करने के लिए राजनीतिक उम्मीदवारों के मुकदमों में तेजी लाने की जरुरत है | सर्वोच्च न्यायालय ने अपने 2014 के फैसले में इस बात पर समर्थन जताई थी | प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इस बात की आवश्यकता बताई | लेकिन सुप्रीम कोर्ट और सरकार ने अब तक इस काम के लिए पर्याप्त कदम नहीं उठा सकी है |
राजनीति में अपराधियों के वर्चस्व के प्रभाव बिहार में 1988 से 1991 तक नवभारत टाइम्स के संपादक रहते हुए मैंने भी देखे और कई दिलचस्प रिपोर्ट भी प्रकाशित की | कई बार ऐसे नेताओं या उनके साथियों की धमकियां भी मिली | एक दिलचस्प मामला मुंगेर की जेल में हत्या के आरोप मैं बंदी एक विधयक रणवीर यादव का था | हमारे वरिष्ठ संवाददाता दिवाकरजी ने स्वयं मुंगेर के पास खगड़िया जेल जाकर लिखी थी | इसमें बताया गया था कि जेलर साहब बाहर खड़े थे और अंदर जेल की कुर्सी पर बैठे कैदी विद्याक महोदय मस्ती से बैठे थे और पुरे रौब के साथ हमारे पत्रकार से बात करते रहे थे और फोटों खींचे जाने से भी प्रसन्न थे | मुंगेर में 11 नवंबर, 1985 को तौफिर दियारा (लक्ष्मीपुर) में बिंद जाति के एक टोले पर हमला कर उनके घरों को जला दिया गया था। बताते हैं कि 35 लोगों की हत्या कर दी गई थी | दिवाकरजी के अनुसार वे अपने फोटोग्राफर साथी सुबोध के साथ सुबह साढ़े नौ बजे खगड़िया जेल पहुंच गए। गेट पर हम दोनों ने बिंदास कहा कि हमलोग नवभारत टाइम्स से आए हैं और रणवीर यादव से मिलना है। हमलोग उससे पहले रणवीर यादव से कभी नहीं मिले थे। पर उन विधायक जी की हनक ऐसी थी कि उन्हें सूचना पहुंचाई गई और हम दोनों गेट के अंदर। हमलोगों ने पूछा कि कहां मिलेंगे, तो संतरी ने इशारा किया कि जेलर के ऑफिस में जाइए। ऑफिस के बाहर अच्छे और साफ-सुथरा कपड़े पहने एक सज्जन स्टूल पर बैठे थे। उनसे हमने अपना काम बताया, तो उन्होंने उठकर कहा, अंदर जाइए। बाहर निकलते समय उस सज्जन ने बताया कि वही जेलर हैं। हमलोग अंदर गए, तो जेलर की कुर्सी पर झक सफेद कुरता-पायजामे में रणवीर यादव मौजूद थे। मैंने नोट बुक पर उनकी बातें नोट करनी शुरू कीं, सुबोध जी फोटो क्लिक करते रहे- रणवीर के पीछे गांधी जी की फोटो लगी थी। यह फोटो और रिपोर्ट नभाटा में पहले पेज पर प्रमुखता से छपी | दिवाकरजी अब दिल्ली में ही पत्रकारिता कर रहे हैं | मेरे फोन करने पर उन्होंने कुछ यादें ताजा की |
इसी तरह जून 1992 में अपने एक लेख में एक घटना का उल्लेख किया था | मेरे पटना कार्यकाल के दौरान बिहार के शिक्षा विभाग की निदेशक अचानक हमारे दफ्तर में आई | उन्होंने लगभग बिलखते हुए बताया कि किस तरह एक विधायक ने उन्हें अपमानित किया | पहले तो विधायक इस बात पर खफा हुए कि उनके आने पर वह कुर्सी से खड़ी क्यों नहीं हुई | जबकि वह उनको नहीं जानती थी | फिर दबंग विधायक ने एक सिफारिश का पत्र थमाकर कहा कि इस पर अभी आदेश करो | निदेशक ने केवल इतना कहा कि इस आवेदन पर पूरी जानकारी विभाग से लेकर वह आदेश दे देंगीं | तब दबंग नेता ने सड़क पर दी जाने वाली गालियां देकर खूब अपमानित किया | परेशान महिला निदेशक एक महीने की छुट्टी लेकर अपना दुःख सुनाने आई हैं | हमने रिपोर्ट छापी | हंगामा हुआ | मुख्यमंत्री तक मामला पहुँच सका | लेकिन विधायक का कुछ नहीं बिगड़ा |
एक अन्य घटना तो आई एस अधिकारी के साथ हुई | दबंग नेता ने अपने परिवार के सदस्य को मेडिकल कॉलेज में प्रवेश दिलाने में सहायता नहीं करने पर चप्पलों से पीट दिया | 1991 के लालू राज के दौरान ही गया के एक जज साहब सत्यनारायण सिंह की दस साल की बेटी का अपहरण हुआ | इस काण्ड में भी लालू की पार्टी के ही दबंग विधायक के ख़ास साथियों का नाम आया | गया के वकीलों ने आंदोलन भी किया | लेकिन नेता और उनके साथियों पर सरकार ने कोई पुलिस कार्रवाई नहीं होने दी | बहरहाल संभव है कि अब बिहार में पहले जैसी स्थिति नहीं है | फिर भी यह सही समय है जबकि आपराधिक पृष्ठभूमि वाले नेताओं को चुनावी उम्मीदवार बनाकर सत्ता में लाने के प्रयासों को रोका जाए |





