CAS : वायरस से ज्यादा संक्रामक है तथ्यविहीन ख़बरें!
देहरादून से कर्मयोगी की रिपोर्ट
Dehradun : गलत तथ्यों पर आधारित स्वास्थ्य विषय कोई खबर समाज के लिए घातक साबित हो सकती है। गलत सूचना वायरस से अधिक संक्रामक है। किसी गलत सूचना का मुकाबला करने के लिए क्रिटिकल अप्रेजल स्किल्स (Critical Appraisal Skills) यानी CAS कारगर साबित होता है। जो विज्ञान आधारित संचार दृष्टिकोण बनाने और मीडियाकर्मियों की क्षमता निर्माण में बड़ी भूमिका निभाता है। इस दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल करते यूनिसेफ के तत्वावधान में देशभर के पेशेवर मीडिया कर्मियों, मीडिया के छात्रों ने बाल स्वास्थ्य पर प्रभावी रिपोर्टिंग के लिए जरूरी जांच परख मूल्यांकन कौशल से जुड़ी कार्यशाला में भाग लिया।
मीडिया कर्मियों के लिए जरूरी जांच परख से जुड़ी और देहरादून में आयोजित इस दो दिवसीय महत्वपूर्ण कार्यशाला में भागीदारी करने वाले विभिन्न मीडिया संस्थानों पेशवर पत्रकारों, निजी रेडियों चैनलों के रेडियो जॉकी के साथ ही मौलाना आजाद राष्ट्रीय उर्दू विश्वविद्यालय, जामिया मिलिया इस्लामिया और हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के छात्रों यूनिसेफ के क्रिटिकल अप्रेजल स्किलस के इस पाठ्यक्रम के माध्यम से स्वास्थ्य पत्रकारिता में साक्ष्य.आधारित रिपोर्टिंग और तथ्य.जांच के महत्व को सीखा।
कार्यशाला में ऑनलाईन शिरकत करते हुए यूनिसेफ इंडिया की संचार, एडवोकेसी एवं भागीदारी प्रमुख ज़ाफरीन चौधरी ने कहा कि गलत सूचना शायद वायरस से अधिक संक्रामक है। यह तेजी से फैलता है और सार्वजनिक स्वास्थ्य सुरक्षा के लिए एक आसन्न खतरा बन गया है। CAS किसी भी गलत सूचना का मुकाबला करने के लिए एक समग्र 360.डिग्री कदम है। यह विज्ञान आधारित संचार दृष्टिकोण बनाने और मीडियाकर्मियों की क्षमता निर्माण में बड़ी भूमिका निभाता है। ज़ाफरीन चौधरी ने कहा कि एक प्रभावी दो-तरफा संचार सुनिश्चित करने में मीडिया की एक अहम भूमिका है, ताकि टीकाकरण और समग्र स्वास्थ्य प्रबंधन की जमीनी हकीकत को नीति निर्माताओं तक पहुंचायी जा सके।
टीकाकरण पर राष्ट्रीय तकनीकी सलाहकार समूह (एनटीएजीआई) के कोविड-19 वर्किंग ग्रुप के अध्यक्ष डॉ. एन. के. अरोड़ा ने पत्रकारों के साथ कोविड-19 टीकाकरण पर बातचीत की और मीडिया से सूचना रफ्तार को कम नहीं पड़ने देने और नए तरीके खोजने का आग्रह किया। जिससे योग्य लोगों को समय पर टीके की खुराक लेने के लिए प्रोत्साहित किया जा सके।
‘गो न्यूज’ के संस्थापक पंकज पचौरी, जो CAS समिति के प्रमुख संस्थापक सदस्य रहे हैं, ने कहा कि महामारी के दौरान काल्पनिकता से परे और तथ्य की और ले जाने में CAS अत्यधिक कारगर साबित हुआ। उन्होंने सुझाव दिया कि पत्रकारिता और जनसंचार के पाठ्यक्रम में CAS को अनिवार्य बनाया जाना चाहिए। इसके लिए विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के समक्ष इस पहल को पेश किया जाना चाहिए। उन्होंने सिफारिश की कि वरिष्ठ संपादकों और मीडिया मालिकों को भी CAS पाठ्यक्रम को अपनाना चाहिए, जिसे पेशेवर निकायों जैसे कि प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया, न्यूज ब्रॉडकास्टर्स एसोसिएशन, एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया और विभिन्न प्रेस क्लबों के माध्यम इस पहल को आगे बढ़ाया जा सके।
वरिष्ठ पत्रकार संजय अभिज्ञान ने कहा कि उनका संस्थान उन कुछ समाचार पत्रों में से एक था जिसने अपने संस्थानों में CAS को जल्दी लागू किया। महामारी अपने साथ गलत सूचना और दुष्प्रचार की सुनामी लेकर आई, जिसे हम एक इन्फोडेमिक कहते हैं। CAS के माध्यम से हम इस इन्फोडेमिक में से कुछ को प्रबंधित करने में सक्षम हुए।
2014 में यूनिसेफ द्वारा ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी, थॉमसन रॉयटर्स और आईआईएमसी के सहयोगी स्वास्थ्य पत्रकारों और पत्रकारिता एवं जन संचार के छात्रों के लिए सीएएस कार्यक्रम विकसित किया था, बाद में आईआईएमसी और मौलाना आजाद नेशनल उर्दू यूनिवर्सिटी ने अपने पाठ्यक्रम में शामिल किया। पत्रकारिता और जनसंचार विभाग, हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय, शिमला ने भी इस साल अपने तीसरे सेमेस्टर के छात्रों के पाठ्यक्रम में सीएएस को जोड़ा है।
कार्यशाला में CAS से जुड़े पेशेवर, पत्रकारिता के छात्र और विषय विशेषज्ञ प्रो (डॉ) राजीव दासगुप्ता, सेंटर ऑफ सोशल मेडिसिन एंड कम्युनिटी हेल्थ, स्कूल ऑफ सोशल साइंसेज, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, सोमा शेखर, इंटरन्यूज हेल्थ जर्नलिज्म नेटवर्क, यूनिसेफ के टीकाकरण, स्वास्थ्य और पोषण विशेषज्ञ, प्रमुख समाचार पत्रों और निजी एफएम के वरिष्ठ पत्रकार और आरजे ने नियमित टीकाकरण, कोविड-19 टीकाकरण, एंटीबायोटिक्स, बच्चों को प्रभावित करने वाले मुद्दों पर चर्चा की।
दुनिया के सबसे वंचित बच्चों तक पहुंचने के लिए संयुक्त राष्ट संघ की संस्था यूनिसेफ दुनिया के कुछ सबसे कठिन स्थानों में काम करती है। करीब 190 से अधिक देशों और क्षेत्रों में हर बच्चे के लिए, हर जगह, एक बेहतर दुनिया बनाने के लिए काम करती है। यूनिसेफ इंडिया भारत में सभी लड़कियों और लड़कों के लिए स्वास्थ्य, पोषण, पानी और स्वच्छता, शिक्षा और बाल संरक्षण कार्यक्रमों को प्राथमिकता देती है।