Case Filed Against Siddaramaiah : कर्नाटक के CM सिद्धारमैया पर भ्रष्टाचार का मुकदमा चलेगा, कोर्ट में याचिका खारिज!

जानिए, किस मामले में वे फंस गए!

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Case Filed Against Siddaramaiah : कर्नाटक के CM सिद्धारमैया पर भ्रष्टाचार का मुकदमा चलेगा, कोर्ट में याचिका खारिज!

Bengluru : कर्नाटक हाईकोर्ट ने मुख्यमंत्री सिद्धारमैया को बड़ा झटका देते हुए मैसूर शहरी विकास प्राधिकरण (MUDA) भूमि घोटाले में उनके खिलाफ जांच के लिए राज्यपाल की मंजूरी की वैधता को चुनौती देने वाली उनकी याचिका खारिज कर दी। सिद्धारमैया ने भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 17A और भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 218 के तहत उनके खिलाफ जांच के लिए राज्यपाल थावरचंद गहलोत द्वारा दी गई मंजूरी को चुनौती दी थी। राज्यपाल ने तीन कार्यकर्ताओं की याचिकाओं के बाद जांच के लिए मंजूरी दी, जिन्होंने एक प्रमुख इलाके में MUDA द्वारा सिद्धारमैया की पत्नी को 14 साइटों के आवंटन में अनियमितताओं का आरोप लगाया था।

मैसूर शहरी विकास प्राधिकरण को शॉर्ट फॉर्म में MUDA कहते हैं। मैसूर शहर के विकास कार्यों के लिए यह अथॉरिटी स्वायत्त संस्था यानी कि ऑटोनॉमस बॉडी है। जमीनों के अधिग्रहण और आवंटन का कार्य प्राधिकरण की ही जिम्मेदारी है। मामला जमीन घोटाले का है, इसलिए MUDA का नाम इस मामले में शुरू (2004) से जुड़ता आ रहा है।

यह मामला MUDA की ओर से उस समय मुआवजे के तौर पर जमीन के पार्सल के आवंटन से जुड़ा है, जब सिद्धारमैया मुख्यमंत्री थे। सामाजिक कार्यकर्ताओं ने आरोप लगाया है कि इस प्रक्रिया में अनियमितताएं हुई हैं। इससे सरकारी खजाने को करोड़ों का नुकसान हुआ है। इस मामले में MUDA और राजस्व विभाग के आला अधिकारियों के नाम भी सामने आये हैं।

जमीन का उपयोग बदला

मैसूर अर्बन डेवलपमेंट अथॉरिटी ने साल 1992 में कुछ जमीन रिहायशी इलाके में विकसित करने के लिए किसानों से ली थी। उसे प्रक्रिया के तहत कृषि भूमि से अलग किया गया था, लेकिन 1998 में अधिगृहित भूमि का एक हिस्सा MUDA ने किसानों को वापस कर दिया था। इस तरह से यह जमीन एक बार फिर कृषि जमीन बन गई।

यहां तक तो सब ठीक था। विवाद की शुरुआत हुई साल 2004 से। इस दौरान सिद्धारमैया की पत्नी पार्वती के भाई बी एम मल्लिकार्जुन ने साल 2004 में इसी जमीन में 3.16 एकड़ जमीन खरीदी। इस दौरान यहां 2004-05 में कर्नाटक में कांग्रेस जेडीएस गठबंधन की सरकार थी और तब सिद्धारमैया डिप्टी सीएम थे। इसी दौरान सामने आया कि इसी जमीन को एक बार फिर से कृषि की भूमि से अलग किया गया था, लेकिन जब जमीन का मालिकाना हक लेने के लिए सिद्धरमैया फैमिली पहुंची तब तक वहां लेआउट विकसित हो चुका था।