नाश्ते में रहती हैं इल्लियां और कचरा, मात्र तीन रोटी देते हैं, सालों से ड्रेस और किताबें नहीं मिलीं, धरने पर बैठ गए बच्चे

संभाग स्तरीय एकलव्य आदिवासी छात्रावास की बदहाली, करोड़ों का बजट होने के बावजूद बच्चे भूख से बेहाल

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इटारसी से चंद्रकांत अग्रवाल की रिपोर्ट

इटारसी। संभाग स्तरीय एकलव्य आदिवासी छात्रावास भरगदा में पिछले तीन सालों से बच्चों को ड्रेस और किताबें नहीं मिली हैं, हमें भरपेट भोजन नहीं दिया जाता। छात्रावास में सफाईकर्मी नहीं है, इस वजह से हमें ही शौचालय साफ करना पड़ता है। हमारी कोई सुनवाई नहीं हो रही है।

इस तरह की शिकायत भरगदा एकलव्य छात्रावास के बच्चों ने विगत दिनों सांसद राव उदय प्रताप सिंह तक पहुंचाई थी।

सूत्रों के अनुसार यहां के विधायक प्रतिनिधि शिवनाथ यादव को बच्चों ने अपनी पीड़ा बताई थी, जिसके बाद मामला जनपद पंचायत केसला, शैलेंद्र दीक्षित तक पहुंचा।

तब श्री दीक्षित ने सांसद तक इसे पहुंचाया। सांसद ने तत्काल कलेक्टर नीरज कुमार सिंह को जांच के लिए कहा, जिसके बाद सहायक आयुक्त आदिवासी चंद्रकांता सिंह, विकासखंड शिक्षा अधिकारी आशा मौर्य एवं जांच दल को भेजा गया।

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जांच दल के सामने अधीक्षक सफाई देते हुए नजर आए। इस छात्रावास के प्रबंधन का जिम्मा प्रभारी प्राचार्य एसके सक्सेना के पास है। सारा बजट एवं वित्तीय भुगतान भी वे ही करते हैं।

छात्रावास के बच्चों का आरोप है कि यहां खाने में मात्र तीन रोटियां मिलती हैं, खाना भी ठीक नहीं होता, तीन सालों से हमें किताबें-’ड्रेस तक नहीं दी गई हैं। छात्रावास में गंदगी पसरी हुई है, हमें किसी तरह की सुविधा नहीं मिल रही है।

बच्चे छात्रावास में धरना देेने की तैयारी कर रहे थे, लेकिन मामला बिगड़ता देख यहां के दोनों अधीक्षकों ने बच्चों पर दबाव बनाकर उन्हें शांत करा दिया था, पर जांच दल पहुंचने के बाद हड़कंप मच गया।

जानकारी के अनुसार शिकायत के बाद दोनाें अधीक्षकों को हटा दिया गया है। इस मामले में जांच के आदेश भी दिए गए हैं।

ज्ञात रहे कि आदिवासी कल्याण विभाग द्वारा वनवासी अंचलों में रहने वाले होनहार बच्चों को बेहतर शिक्षा और छात्रावास सुविधा देने के लिए एकलव्य आदिवासी छात्रावास संचालित किए जा रहे हैं।

भरगदा में संभाग स्तरीय छात्रावास हैं, जहां छटवीं से बारहवीं तक अध्ययन एवं छात्रावास सुविधा देने के लिए विभाग करोड़ों रुपये का बजट देता है। यहां प्रवेश के लिए भी बच्चों को परीक्षा देकर चयनित होना पड़ता है।

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शासन करोड़ों रुपयों का बजट दे रहा है, इसके बावजूद बच्चों की देखभाल ओर सुविधाओं को मजाक बना अधीक्षक व प्रभारी प्राचार्य अपनी जेबें भर रहे थे, ऐसी जनचर्चाएं तो काफ़ी समय से चल रही थीं। बात ऊपर स्तर के अधिकारी तक भी काफी पहले ही पहुंच गई थी, पर उनको भी कभी निरीक्षण करने तक का समय भी नहीं मिला।

बच्चों ने जांच के लिए पहुंचे अधिकारियों को पूरे मामले की जानकारी दी, साथ ही न्याय करने की गुहार लगाई। मामले को लेकर बीइओ आशा माैर्य को कॉल किया गया, लेकिन उन्होंने मोबाइल रिसीव्ह नहीं किया। प्राचार्य एसके सक्सेना का मोबाइल नेटवर्क से बाहर बता रहा था।

आदिवासी नेताओं का कहना है कि यदि विभागीय जांच ईमानदारी से की जाए तो यहां बड़े पैमाने पर गड़बड़ी सामने आ सकती है।

जनपद पंचायत केसला के सांसद प्रतिनिधि शैलेन्द्र दीक्षित, जनपद अध्यक्ष गंगाराम कलमे, मंडल महामंत्री अजय बाजपेयी, छात्रावास में सांसद प्रतिनिधि दीपक मालवीय एवं भरगदा के विधायक प्रतिनिधि शिवनाथ यादव तक बच्चों की समस्या पहुंचने के कारण, मामला सांसद श्री सिंह तक पहुंचा व इस तरह सांसद के निर्देश पर कलेक्टर ने मामले की जांच के लिए अफसरों को रवाना किया, अन्यथा अफसरशाही के भरोसे तो न जाने कब तक मासूम बच्चे प्रताड़ित होते रहते।

स्थानीय भाजपा नेता शैलेंद्र दीक्षित ने कहा है कि यह मामला बेहद गंभीर है, इसकी जांच कराई जाएगी। आदिवासी बच्चों के हक पर किसी को डाका डालने नहीं दिया जाएगा।