Vallabh Bhawan Corridors To Central Vista : नरेंद्र मोदी का शहडोल दौरा और दो अफसरों की मेहनत!
प्रधानमंत्री का शहडोल दौरा दूसरी बार में पूरा हुआ। जब वे पहली बार यहां आने वाले थे, बारिश ने व्यवधान पैदा कर दिया। लेकिन, दूसरी बार जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शहडोल आए तो सारा इंतजाम अविस्मरणीय रहा। इसका श्रेय निश्चित रूप से यहां के कमिश्नर राजीव शर्मा और कलेक्टर वंदना वैद्य को दिया जाना चाहिए, जिनकी मेहनत ने इस वीवीआईपी दौरे को अलग ही रंग मिला मिला।
आदिवासी परंपरा के अनुरूप संस्कृति के नए आयाम गढ़कर जिस तरह प्रधानमंत्री का स्वागत सत्कार किया गया और शहडोल के लालपुर और पकरिया गांव में जो व्यवस्थाएं हुई, वे अद्भुत रही। फूल प्रूफ प्लानिंग और उसी के अनुरूप जैसे इंतजाम किए, उससे लगा कि इन दो अफसरों ने कितनी मेहनत और तैयारियां की होगी। उनकी सराहना भी हो रही है, उससे लगा कि किसी आयोजन को किस तरह प्लान किया जाता है।
किसी फाइव स्टार होटल में कार्यक्रम और खान-पान के इंतजाम आसान है। लेकिन, दूरदराज के ठेठ आदिवासी अंचल में इतना सफल आयोजन होना निश्चित रूप से तारीफ के काबिल है। शायद पहली बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जमीन पर बैठकर आदिवासियों के साथ बैठकर आदिवासी व्यंजन कोदो-कुटकी खाया। एक ख़ास बात ये रही कि प्रधानमंत्री के आसपास दोनों तरफ पांच-पांच आदिवासियों को ही बैठाया गया।
बारिश की वजह से जब 27 जून को पहली बार का कार्यक्रम स्थगित हो गया था, तब ग्रामीण मायूस हो गए थे। उन्हें लगा कि जीवन की एक अविस्मरणीय घटना उनके हाथ से निकल गई। इस बात को कलेक्टर वंदना वैद्य ने समझ भी लिया और वे रात को ही गांव पहुंची और ग्रामवासियों के बीच बैठकर भोजन और भजन किया। वे अपने साथ भोजन के पैकेट भी लेकर गईं थी। प्रधानमंत्री के दौरे की स्थगन की सूचना मिलने पर निराश आदिवासियों के बीच कलेक्टर के त्वरित पहुंचने की चौतरफा सराहना हो रही है।
कानून के राज को चुनौती देते बीजेपी के मंत्री
विधानसभा चुनाव के नजदीक आने के साथ ही बीजेपी के नेताओं और मंत्रियों की वाचालता लगातार बढ़ रही है। सबसे बड़ी बात कि मंत्रियों का व्यवहार जिस तरह अफसरों विशेषकर पुलिस के खिलाफ देखा जा रहा है, वह उनके लिए आने वाले दिनों में मुसीबत का कारण बन जाए तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए।क्योंकि, एक तरह मुख्यमंत्री कानून के राज की बात करते हैं, दूसरी तरफ मंत्री कानून को चुनौती देने से बाज नहीं आ रहे।
केंद्रीय मंत्री प्रहलाद पटेल ने दमोह के एक बीजेपी कार्यकर्ता पर हुई एफआईआर के खिलाफ दमोह में जिस तरह का गुस्सा और व्यवहार दिखाया, उसे उचित नहीं जा सकता। वही स्थिति पंचायत मंत्री महेंद्र सिंह सिसोदिया ने भी की और गुना में अपने समर्थक पर हुई कार्रवाई के खिलाफ खुलेआम बयानबाजी की। उन्होंने तो मीडिया के सामने धमकाने के अंदाज में बयान दिया कि हमारी सरकार है, जो हमारे कार्यकर्ताओं को परेशान करेगा उसे देख लिया जाएगा।
सिसौदिया की यह धमकी सीधे-सीधे पुलिस द्वारा दर्ज की गई उस एफआईआर को लेकर थी, जो उनके एक समर्थक के खिलाफ दर्ज की गई थी। जबलपुर में राज्यसभा सदस्य सुमित्रा वाल्मीकि द्वारा कलेक्टर को की गई टिप्पणी उचित नहीं कही जा सकती।
ये ऐसे मामले हैं, जो बताते हैं कि बीजेपी नेताओं का व्यवहार लगातार बदल रहा है। पुलिस और प्रशासन को लेकर वे जिस तरह की टिप्पणी कर रहे हैं, उससे उनके कार्यकर्ता जरूर कुछ देर के लिए खुश हो ले, लेकिन उनकी और पार्टी की इससे कोई अच्छी इमेज नहीं बन रही!
कैलाश विजयवर्गीय की बढ़ती पूछ परख
सियासी गलियारों में पिछले 3 महीनों से देखा जा रहा है कि भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय की लगातार पूछ परख बढ़ती जा रही है। मध्यप्रदेश से जुड़े कई मामलों में अब उनसे सलाह भी ली जाती है। कई महत्वपूर्ण बैठकों में उनकी उपस्थिति देखी जा सकती है। ये बदलाव साफ़ दिखाई दे रहा है, जिसे पार्टी के स्तर पर महसूस किया गया। दिल्ली हाईकमान के आसपास भी उनकी गतिविधियां अलग आकार ले रही है। हाल ही में भाजपा महासचिव (संगठन) बीएल संतोष से कैलाश विजयवर्गीय हुई लंबी मुलाकात और उसके बाद उनका नरेंद्र सिंह तोमर और ज्योतिरादित्य सिंधिया से मिलना कुछ अलग संदेश दे रहा है।
राजनीति के जानकारों का मानना है कि विधानसभा चुनाव से पहले कैलाश विजयवर्गीय को मध्यप्रदेश में कोई बड़ी जिम्मेदारी मिल सकती है। पार्टी के लिए ये चुनाव महत्वपूर्ण होने के साथ चुनौतीपूर्ण भी है। कैलाश विजयवर्गीय को मिल रहा महत्व कुछ अलग इशारा कर रहा है।
जीतू के समर्थन में उतरे बड़े नेता!
इंदौर की राऊ विधानसभा सीट से कांग्रेस विधायक जीतू पटवारी को 13 साल पुराने शासकीय कार्य में बाधा डालने के एक मामले में एमपी-एमएलए कोर्ट ने एक साल की सजा सुनाई। उनकी जमानत भी हो गई और उनके चुनाव लड़ने में भी कोई अड़चन नहीं है! लेकिन, इस मुद्दे पर बीजेपी ने अनावश्यक तूल दिया कि कांग्रेस के बड़े नेताओं ने जीतू पटवारी को अकेला छोड़ दिया जबकि ऐसा नहीं हुआ। कांग्रेस के सभी बड़े नेता जीतू के समर्थन में खड़े हो गए।कमलनाथ और दिग्विजय सिंह ने तो खुलकर उनका समर्थन किया।
दिग्विजय सिंह ने तो यहां तक कहा कि किसानों और बिजली उपभोक्ताओं के लिए आंदोलन करना यदि अपराध है, तो हम बार-बार यह करेंगे। उनके लिए संघर्ष में हम सब साथ हैं। जीतू लगे रहो। इस प्रदर्शन के दौरान दिग्विजय सिंह भी जीतू पटवारी के साथ थे और बुरी तरह घायल भी हुए थे।
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ भी जीतू के खुलकर सामने आए । कमलनाथ ने कहा कि मैं स्पष्ट करना चाहता हूं कि कांग्रेस के कार्यकर्ता और नेता जनता की लड़ाई लड़ने से कभी पीछे नहीं हटेंगे, चाहे उनके खिलाफ किसी तरह की कार्यवाही की जाए।
भूपेंद्र सिंह: मीडियावाला की खबर पर लगी मुहर!
पिछले सप्ताह ‘मीडियावाला’ के इसी कॉलम में खबर दी गई थी कि नगरीय प्रशासन मंत्री भूपेंद्र सिंह की मुसीबतें बढ़ रही है। प्रधानमंत्री के हाल ही में भोपाल में हुए दौरे में यह बात साबित भी हो गई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भोपाल दौरे में उन्हें कर भी महत्व नहीं मिला, जबकि भूपेंद्र सिंह भोपाल के प्रभारी मंत्री हैं। बताया गया है कि लोकायुक्त जांच के अलावा सागर में चल रही वर्चस्व की लड़ाई से उनके लिए परेशानी का सबब बनी हुई है।
सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार मामला तो इतना बढ़ गया कि भूपेंद्र सिंह अब दिल्ली में भी आलाकमान के निशान पर आ गए। हालात यहां तक पहुंच गए कि पीएम के मंगलवार को भोपाल दौरे के समय पीएमओ से उनका नाम ‘मिनिस्टर इन वेटिंग‘ से हटा दिया गया। यह जानकारी सीएम हॉउस से भूपेंद्र सिंह को पीएम के भोपाल आने के कुछ घंटे पहले दी गई। सियासी गलियारों में चल रही चर्चाओं पर अगर भरोसा किया जाए तो पीएम के दौरे के अगले दिन ही भूपेंद्र सिंह को दिल्ली तलब किया गया।
फुटबॉल क्रांति देख रोमांचित प्रधानमंत्री
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की शहडोल यात्रा के दौरान फुटबॉल के खिलाड़ियों से उनकी मुलाकात दिलचस्प रही। प्रधानमंत्री को जब यह बताया गया कि शहडोल के एक गांव में फुटबॉल को लेकर ब्राज़ील जैसा जुनून है तो वे आश्चर्यचकित रह गए। उन्होंने इन खिलाड़ियों से रूबरू बातचीत की और कहा कि वे मन की बात में इस बात का जिक्र जरूर करेंगे।
प्रधानमंत्री श्री @narendramodi जी ने जनजातीय वर्ग की महिला खिलाड़ियों से कहा "जो खेलता है, वो खिलता है"
सुनिए, प्रधानमंत्री जी और खिलाड़ियों के बीच बातचीत के अंश.. pic.twitter.com/d5roI1VMoD
— VD Sharma (@vdsharmabjp) July 2, 2023
बता दें कि शहडोल में कमिश्नर राजीव शर्मा द्वारा पिछले 2 साल से इस खेल को बहुत बढ़ावा दिया गया। आज हालत यह है कि गांव में घर घर में यह इस खेल के प्रति विशेष लगाव देखा जा सकता है और इससे ग्रामवासी दूसरी बुराइयों से दूर रहते दिखाई दे रहे हैं।
इसी सप्ताह हो सकते हैं IAS -IPS अफसरों के तबादले
अब जबकि प्रधानमंत्री सहित सभी बड़े नेताओं के दौरे मध्यप्रदेश में सफलता के साथ संपन्न हो चुके हैं, अब मुख्यमंत्री चुनाव के पहले एक बार संभाग और जिलों में नए सिरे से प्रशासनिक जमावट कर सकते हैं। प्रशासनिक गलियारों में चर्चा है कि इस सप्ताह अब कभी भी IAS -IPS अफसरों के तबादले हो सकते है।
सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार इस तबादला सूची में ऐसे अधिकारियों के तबादले होंगे जिनका कार्यकाल एक ही स्थान पर 3 साल से ज्यादा हो गया है या जनवरी तक होने वाला है। इस सूची में इंदौर और उज्जैन संभाग के कमिश्नर के अलावा आधा दर्जन जिलों के कलेक्टर और एसपी के नाम चर्चा में हैं। चर्चा तो 2 संभाग के कमिश्नर के बदले जाने की भी है।
दिग्विजय एपिसोड के बाद सागर के कलेक्टर और एसपी और दमोह प्रहलाद पटेल एपिसोड के पास वहां के कलेक्टर एसपी भी बदले जा सकते हैं। वहीं जबलपुर की राज्यसभा सदस्य के साथ हुए व्यवहार को लेकर जबलपुर कलेक्टर के तबादले की भी चर्चा है। वल्लभ भवन गलियारों में इस बात की भी चर्चा है कि मंत्रालय स्तर पर भी अपर मुख्य सचिव, प्रमुख सचिव और सचिव स्तर पर भी फेरबदल हो सकता है।
समान नागरिक संहिता के पक्ष में माहौल
राजनीतिक गलियारों के साथ साथ ही सत्ता के गलियारों में भी इन दिनों समान नागरिक संहिता पर खूब चर्चा हो रही है। हो भी क्यूँ नही, आखिर बहस की शुरुआत प्रधानमंत्री ने की है। हालांकि सत्ता के गलियारों में बहुमत संहिता लागू हो जाने के पक्ष में अधिक सुना जा रहा है। हालांकि उन्हें पता है कि इस संवेदनशील मुद्दे की चाबी राजनेताओं के ही पास है।
केंद्रीय मंत्रिमंडल में फेरबदल की चर्चा
दिल्ली में इन दिनों मोदी सरकार के मंत्रिमंडल में फेरबदल की चर्चा जोरों पर है। सोमवार 3 जुलाई को प्रधानमंत्री ने मंत्रियों की बैठक भी आहूत की है। कई मंत्रियों को चिंता सता रही है कि बैठक में कहीं उनसे त्यागपत्र न मांग लिया जाय। आम चुनाव में एक साल से भी कम समय बचा है, ऐसे में मंत्रिमण्डल मे फेरबदल किया जाना काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है।
दिल्ली में अफसरों को अब सेवा विस्तार नहीं
एक के बाद एक तीन जांच एजेंसियों के मुखिया बदलकर प्रधानमंत्री ने अब और सेवा विस्तार न देने का स्पष्ट संकेत दे दिया है। अब सबकी नजरें ईडी के निदेशक पर है। सरकार द्वारा सुप्रीम कोर्ट में दिए गए हलफनामे के अनुसार इस वर्ष चौथा कार्यकाल पूरा होने के बाद नवंबर मे निदेशक अपना पद छोड़ देंगे। इस वर्ष अगस्त में ही कैबिनेट और गृह सचिव के विस्तारित कार्यकाल भी पूरा हो रहा है।