Challenges of Delhi’s New CM : अब दिल्ली को नए सिरे से संवारने की चुनौती बीजेपी की!

दिल्ली पानी, सड़क, बिजली और प्रदूषण के साथ गंदी यमुना से जूझ रही है!

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Challenges of Delhi’s New CM : अब दिल्ली को नए सिरे से संवारने की चुनौती बीजेपी की!

दिल्ली से वेद विलास उनियाल की रिपोर्ट

New Delhi : आखिरकार शालीमार बाग से विधायक रेखा गुप्ता के नाम पर ही दिल्ली के नेतृत्व के लिए सहमति बन गई। बेशक, वे विधायक के तौर पर पहला चुनाव जीती हो, लेकिन दिल्ली की सियासत में वे मंजी हुई नेता है। आरएसएस की पृष्ठभूमि में रहकर, एवीबीपी के सानिध्य में दौलतराम कॉलेज की सचिव और फिर दिल्ली यूनिवर्सिटी की अध्यक्ष बनना उनके छात्र जीवन के संघर्ष को दर्शाता है। यह उनका हौसला है, कि दो बार विधानसभा का चुनाव और दिल्ली मेयर के चुनाव में पराजय देखने के बाद भी उन्होंने अपना मनोबल नहीं खोया। इसी का ही नतीजा है कि इस बार वे चुनाव भी जीती और अब दिल्ली की कमान उनके हाथ में आई। वे दिल्ली की चौथी महिला मुख्यमंत्री हैं और इस दौर में बीजेपी की जिन जिन राज्यों में सरकार है वह पहली महिला मुख्यमंत्री बनी। बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व ने उनपर भरोसा जताया। दिल्ली का नेतृत्व हाथ में लेते हुए उनके सामने कई चुनौतियां हैं। निश्चित विकास की एक बड़ी रेखा खींचना उनके लिए कसौटी हैं।

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दिल्ली विधानसभा चुनाव जीतने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कार्यकर्ताओं की रैली में दिल्ली को आधुनिक शहर बनाने का उद्घोष किया। साथ ही इस बात को जोर देते हुए इसे मोदी की गारंटी से भी जोड़ा। उन्होंने इस बात का संकल्प लिया कि यमुना को दिल्ली की पहचान बनाया जाएगा। बीजेपी ने दिल्ली के चुनावी रण को जीतने के लिए जिन मुद्दों को धार दी, उनमें ‘आप’ शासन के कथित भ्रष्टाचार के साथ दिल्ली की अव्यवस्था को सामने रखा। बीजेपी दिल्ली के मतदाताओं तक यह संदेश पहुंचाने में सफल रही, कि देश की राजधानी का यह स्वरूप और बेहतर होना चाहिए। बेशक दिल्ली के प़ॉश इलाकों को छोड़ दिया जाए, तो दिल्ली के दूसरे फैले इलाकों और बस्तियों को और बेहतर बनाने की जरूरत हैं।

दिल्ली को लेकर सभी सियासी पार्टियां अपने-अपने स्तर पर अपनी उपलब्धियां और कामकाजों को गिनाती हैं। लेकिन, तरह-तरह के दावों के बावजूद दिल्ली पानी और बिजली के संकट से जूझती आई है। बढ़ता प्रदूषण दिल्ली का स्थायी संकट है। ऐसी स्थितियों में बीजेपी ने मतदाताओं को इस भरोसे में लिया है कि केंद्र में मोदी का नेतृत्व और दिल्ली में डबल इंजन की सरकार दिल्ली को बदलने में सक्षम है। इसे समझते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने जीत के बाद अपने संकल्पों को फिर दोहराया है।

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दिल्ली विधानसभा चुनाव में सियासी दलों के लिए मुद्दे स्पष्ट थे। दिल्ली में आप सरकार को घेरने के लिए बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही बड़े दलों ने दिल्ली से जुड़ी समस्याओं को सामने रखते हुए बदलाव के नाम पर वोट मांगे। दिल्ली में जब स्वयं ‘आप’ पार्टी के संयोजक और पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा कि वे दिल्ली की जनता से किए कुछ वादे पूरे नहीं कर पाए तो विपक्ष के प्रचार अभियान को और गति मिल गई। केजरीवाल ने जिन वादों को पूरा न होने की बात कही उनमें दिल्ली की सड़कों को बेहतर न बना पाने के अलावा यमुना की स्वच्छ न कर पाने की बात अहम थी। विपक्ष खासकर बीजेपी के लिए यह अच्छा खासा प्रचार का मुद्दा बना। केजरीवाल के उस बयान को सोशल मीडिया में प्रचारित किया गया, जिसमें उन्होंने यमुना को स्वच्छ न करने पर राजनीति छोड़ देने की बात कही थी।

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केजरीवाल ने दिल्ली की जनता से इन समस्याओं को दूर करने के लिए और पांच साल की सत्ता दिलाने का आह्वान किया। इसी बात को लपकते हुए बीजेपी ने अपना चुनावी नारा दिया कि ‘बहाने नहीं बदलाव चाहिए।’ उधर, चुनावी प्रचार के अभियान के शुरुआती दौर में ही यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपनी पहली सभा में ‘आप’ के नेताओं को चुनौती देते हुए कहा कि वह तो अपने मंत्रियों के साथ प्रयागराज में गंगा में डुबकी लगा चुके हैं। लेकिन, केजरीवाल यमुना में डुबकी लगाकर देखें। इस एक लाइन में ही कई लाइनें खींची गई थी। योगी आदित्यनाथ ने एक तरह से यूपी में बीजेपी सरकार के कामकाज को दिल्ली सरकार से तुलना करके मतदाताओं को झकझोरने की कोशिश की थी। उनका स्पष्ट संदेश था कि दिल्ली में जिस बदलाव की अपेक्षा की जा रही है, उसे एनडीए सरकार के जरिए ही संभव है। दिल्ली में तमाम दिक्कतों पर कांग्रेस ने भी आप को घेरा। लेकिन, मतदाताओं ने बीजेपी को 27 साल बाद फिर अवसर देने का मन बनाया।

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कांग्रेस का कमजोर संगठन और अपनी स्पष्ट चुनावी व्यूह रचना न होने से मतदाताओं के पास बीजेपी के तौर पर खुला विकल्प था। जहां कांग्रेस को लेकर आखरी मतदाताओं में असमंजस था, वहीं बीजेपी दिल्ली में जीत हासिल करने के लिए पूरी सियासी रणनीति के साथ थी। दिल्ली चुनाव में मतदाताओं को साधने के लिए बीजेपी ने लंबी तैयारी की थी। चुनाव आते आते हर कदम पर बीजेपी फ्रंट फुट पर दिखी। दिल्ली की समस्याओं और अपेक्षाओं को समझते हुए बीजेपी ने अचूक रणनीति अपनाई। जहां एक तरफ आठवें वेतन आयोग की स्थापना और केंद्रीय बजट में मध्यम वर्ग को विशेष राहत दी गई, वहीं प्रधानमंत्री मोदी ने दिल्ली की एक भी झुग्गी न टूटने का आश्वासन देकर कमजोर वर्ग को भी साधने की कोशिश की। इन मुद्दों के चुनाव परिणामों पर अपने असर रहे होंगे। लेकिन, दिल्ली के लोगों के सामने सबसे बुनियादी समस्या तो पानी, बिजली, सड़क और लगातार बढते प्रदूषण की रही है।

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इसलिए जब बीजेपी के शीर्ष नेता दिल्ली को आधुनिक शहर बनाने का संकल्प दोहरा रहे हैं, तो निश्चित की इन समस्याओं के निराकरण के बाद ही देश की राजधानी इस स्वरूप में होगी। यह आसान चुनौती नहीं, लेकिन संकल्प को धरातल पर उतारा जाए तो दिल्ली का नजारा कुछ और हो सकता है। यही वजह है कि बीजेपी अपने शासित राज्यों के मॉडल दिखाकर दिल्ली की जनता को आश्वस्त करना चाहती है कि जैसे बनारस, प्रयागराज या अयोध्या को बदला गया है। यही नहीं दिल्ली के आसपास के क्षेत्र भी तेजी से बदलते हुए दिख रहे हैं, वैसे ही दिल्ली पर भी डबल इंजन की सरकार अपना फोकस करेगी।

वास्तव में जब हम भारत को दुनिया की तीसरी अर्थव्यवस्था की तरफ ले जाने को तत्पर दिखते हैं, तो देश की राजधानी भी अत्याधुनिक स्वरूप में होनी चाहिए। दिल्ली का आशय केवल वह क्षेत्र नहीं जो चमकता दमकता नजर आता है। दिल्ली के अंदर बस्तियां हैं, गांव हैं, इलाके हैं। इन सबको मिलाकर दिल्ली बनती है। यहां लोग जिन समस्यओं को झेलते हैं वह चमकती राजधानी के लक्षण नहीं है। पानी के लिए लंबा कतारें लगती है। पानी की बाल्टियों के साथ लोग झगड़ते नजर आते हैं। टैंकर लॉबी की मनमानी चलती है। बस्तियों में कूडों के अंबार दिखते हैं। बिजली की समस्या है।

पराली कहीं भी जले, लेकिन दिल्ली का आकाश धुंआ धुआ हो जाता है। सड़कों में गड्ढे नजर आते हैं। पहली बरसात में ही दिल्ली में सड़कें तालाब बन जाती हैं। दुनिया में दिल्ली प्रदूषण की सूची में टॉप पर नजर आती है। झुग्गियों बस्तियों की अपनी समस्याएं हैं। वाहन सड़कों पर रेंग रेंगकर आगे बढते हैं। सड़को से लेकर सीवर सिस्टम तक दिल्ली का समस्याओं का अंबार है। स्वास्थ्य शिक्षा सेवाओं की हालात भी नजर आते हैं। विपक्ष के चुनावी मेनोफेस्टों को देखे तो इन बातों का ही उल्लेख दिखता है। ‘आप’ ने अपनी उपलब्धियों को गिनाने की भरपूर कोशिश की। लेकिन, दिल्ली की जनता ने बदलाव ही चाहा। स्पष्ट है कि दिल्ली की अपेक्षाएं पूरी नहीं हुई है। ऐसे में नई सरकार के सामने असल चुनौतियां सामने खड़ी है। इसके लिए दूरबीन की जरूरत नहीं है। चुनावी मेनोफेस्टों से निकल कर बीजेपी सरकार को धरातल पर काम करना होगा। खासकर ऐसी स्थिति में जब कोई और नहीं प्रधानमंत्री मोदी यह कह चुके है, कि दिल्ली को दुनिया की आधुनिक राजधानी बनाना उनका संकल्प हैं। जब वह ऐलान कर चुके हों कि दिल्ली की पहचान यमुना मैय्या से होगी।

ऐसे में गौर किया जाना चाहिए ऐसे में गौर किया जाना चाहिए कि दुनिया की बेहतरीन राजधानियों में गिने जाने वाले लंदन में टेम्स, आस्ट्रिया के वियना में डैन्यूब पेरिस में सीन नदी क्रिस्टल की तरह चमकती है। एक बार देहरादून के शहर के एक स्कूल में बच्चों का दल पेरिस गया था। वहां से लौटकर एक बच्चे ने कहा था कि काश दिल्ली की यमुना का जल भी सीन नदी की तरह होता। गौरतलब है कि लंदन में टेम्स नदी भी एक समय प्रदूषित नदियों में थी। लेकिन, नदी को साफ सुथरा करने का प्रयास किया गया। लंदन शहर की सड़के कभी बरसाती पानी से भर जाती थी। बाद में सीवरेज सिस्टम को सुधारा गया। वास्तव में किसी शहर की पहचान उसके करीब बहती नदी से भी होती है। ऐसे में यमुना का महत्व केवल बहती जलधारा से ही नहीं । इसका आध्यात्मिक सांस्कृतिक महत्व भी है। ऐसे में अगर प्रधानमंत्री मोदी कार्य़कर्ताओं को संबोधन में यमुना के मंत्रों का उद्घोष करते हैं और अपने भाषण का अंत भी यमुना के जयकारे से करते हैं, तो उम्मीद की जानी चाहिए कि दिल्ली शहर में यमुना को स्वच्छ करने का अभियान जोर पकड़ेगा। इसी तरह दिल्ली को चमकता शहर बनाने की चुनौती है। निश्चित अगर डबल इंजन सरकार ने इसका संकल्प लिया है तो उनके पास इसके लिए चार्ट भी होगा। दिल्ली की जनता यह सब धरातल पर उतरते हुए देखना चाहती है।

दिल्ली का अपना एक इतिहास है। दिल्ली का अपना सौंदर्य़ पुरातत्व संस्कृति और विरासत है। दिल्ली को अत्याधुनिक शहर के रूप में सामने लाने की जो चुनौतियां हैं, उसके लिए धरातल पर काम करना होगा। इसी क्रम में मेट्रो के विस्तार, सड़क पुलों के निर्माण की अपेक्षा की जा रही है, निश्चित डबल इंजन की सरकार दिल्ली को जो स्वरूप देगी आगे की सियासत पर उसका सीधा असर पडेगा। वहीं दिल्ली में अपनी जनाधार को पाने की कोशिश में जुटी कांग्रेस पर भी एक सजग विपक्ष की अपेक्षा बनी है। ‘आप’ पार्टी को भी अब नई रणनीतियों के साथ सामने आना होगा। उसके पास दिल्ली में संगठन है 22 विधायक हैं। सकारात्मक विपक्ष के तौर पर वह सामने दिख सकती है।

दिल्ली को केंद्र राज्य की डबल इंजन सरकार की कोशिश अपनी जगह होंगी लेकिन दिल्ली नगर निगम की भूमिका का भी अपना महत्व है। यह स्पष्ट है कि दिल्ली के लोगों के मन में दिल्ली को चमकता शहर देखने की कल्पना है। 27 साल बाद दिल्ली की जनता ने बड़ी उम्मीदों के साथ अच्छे बहुमत के साथ बीजेपी को सरकार सौंपी है। कहा जा सकता है कि मोदी की गारंटी पर भी वोट पड़े हैं। देखना होगा कि डबल इंजन की सरकार दिल्ली का स्वरूप किस तरह बदलता है। दिल्ली में रेखा गुप्ता के नए नेतृत्व से कई तरह की अपेक्षाएं हैं। यह भी स्पष्ट है कि कामकाजों का आकंलन में लोग मोदी की गांरटी को ही कसौटी पर ही परखेंगे।