सीमा के बाद शहरी आतंकी शक्तियों को कुचलने का चुनौतीपूर्ण अभियान
जम्मू कश्मीर और पूर्वोत्तर राज्यों में विदेशी आतंकियों की घुसपैठ नियंत्रित करने के बाद अब प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार शहरों के नकाबपोश आतंकी और उनको पनाह देने वाले प्रभावशाली लोगों पर क़ानूनी शिकंजे से कठोर कार्रवाई की तैयारी कर रही है | ‘ बिहार , उत्तर प्रदेश , महाराष्ट्र , आंध्र जैसे राज्यों में माओवादी नक्सली आतंकी गतिविधियां पिछले वर्षों के दौरान न्यूनतम हो गई हैं | वहीं केंद्रीय सुरक्षा बल और राज्यों की पुलिस के बेहतर तालमेल से झारखण्ड , छत्तीसगढ़ , तेलंगाना में बड़े पैमाने पर नक्सली या तो मुठभेड़ में मारे गए या गिरफ्तार हुए अथवा उन्होंने आत्म समर्पण किया | फिर भी कुछ दुर्गम क्षेत्रों में सक्रिय आतंकी माओवादी नक्सली को दिल्ली , मुंबई , कोलकाता और विदेशों से हथियार , धन और साइबर आपराधिक तरीकों से सहायता मिलने पर अंकुश के लिए सरकार को अधिक सतर्कता से कार्रवाई की आवश्यकता है | चुनाव की घोषणा से दो महीने पहले महाराष्ट्र सरकार ने ‘अर्बन नक्सल’ के खिलाफ कार्रवाई के लिए महाराष्ट्र विशेष सार्वजनिक सुरक्षा विधेयक (MSPSA), 2024 पेश किया । लेकिन सत्र समाप्त होने से यह विधेयक पारित नहीं हो सका | सरकार चाहती तो अध्यादेश लाकर इसे कानून का रुप दे सकती थी | लेकिन अकारण आलोचना और अदालती हस्तक्षेप की संभावना के कारण ऐसा नहीं किया गया | मजेदार बात यह है कि ऐसा कानून छत्तीसगढ़ , तेलंगाना , आंध्र प्रदेश और ओड़िसा में लागू है | लेकिन महाराष्ट में कानून का प्रस्ताव आते ही एक वर्ग और कांग्रेस पार्टी सहित कुछ पार्टियों ने इसका विरोध शुरु कर दिया | क्या इसे ‘ चोर की दाढ़ी में तिनके ‘ की कहावत की तरह यह माना जा सकता है कि प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष तरीकों से हिंसक नक्सली गतिविधियों से सरकार का विरोध और विकास कार्यों को रोकने वाले तत्वों को यह लॉबी समर्थन सहायता कर रही है ?
यह कानून लागू होने पर पुलिस को ऐसे लोगों के खिलाफ एक्शन लेने की शक्ति मिल जाएगी, जो नक्सलियों को लॉजिस्टिक के साथ शहरों में सुरक्षित ठिकाने मुहैया कराते हैं। इसमें कोई शक नहीं है कि नक्सली संगठनों की गैरकानूनी गतिविधियों को प्रभावी कानूनी तरीकों से नियंत्रित करने की आवश्यकता है। अभी मौजूद कानून नक्सलवाद, इसके फ्रंटल संगठनों और व्यक्तिगत समर्थकों से निपटने के लिए अप्रभावी और अपर्याप्त हैं। नक्सलियों का खतरा सिर्फ राज्यों के दूरदराज इलाकों तक सीमित नहीं है। नक्सली संगठनों की मौजूदगी शहरी इलाकों में भी हो गई है।1999 में संगठित अपराध पर काबू करने के लिए महाराष्ट्र में मकोका लागू किया गया था। इस कानून की काफी आलोचना हुई थी, मगर सरकार और पुलिस को क्राइम कंट्रोल में फायदा मिला। अब शहरों में बैठकर नक्सली गतिविधि चलाने वालों के खिलाफ महाराष्ट्र सरकार नया कानून लागू करना चाहती है । शहरों में सक्रिय नक्सली संगठन अपनी विचारधारा का प्रचार कर अशांति पैदा कर रहे हैं। इन संगठनों का मकसद संवैधानिक जनादेश के खिलाफ सशस्त्र विद्रोह को भड़काना है। यह सार्वजनिक व्यवस्था को बाधित करने के लिए अभियान चलाते हैं। महाराष्ट्र विशेष सार्वजनिक सुरक्षा विधेयक (MSPSA) में 18 धाराएं हैं, जो सुरक्षा एजेंसियों को ‘अर्बन नक्सल’ के खिलाफ कार्रवाई की शक्ति देगी। इसका दुरुपयोग रोकने के लिए भी पर्याप्त प्रावधान हैं | लेकिन लगता है कि विधान सभा चुनाव के दौरान न केवल कुछ राजनैतिक पार्टियां बल्कि नक्सल तत्वों का समर्थन करने वाले देशी विदेशी संगठन भाजपा गठबंधन की विजय रोकने के लिए हर संभव प्रयास कर सकते हैं | शायद इसीलिए प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने सरदार पटेल जयंती और राष्ट्रीय एकता दिवस पर अर्बन नक्सली के खतरों को विस्तार से बताया है |
प्रधानमंत्री ने कहा है कि जैसे-जैसे जंगलों में नक्सलवाद खत्म हो रहा है, अर्बन नक्सलियों का एक नया मॉडल अपना सिर उठा रहा है. उन्होंने कहा, ‘हमें ऐसे लोगों की पहचान करनी होगी जो देश को तोड़ने का सपना देख रहे हैं. हमें इन ताकतों से लड़ना होगा |आज अर्बन नक्सली उन लोगों को भी निशाना बनाते हैं जो कहते हैं कि अगर आप एकजुट रहेंगे तो आप सुरक्षित रहेंगे | हमें शहरी नक्सलियों की पहचान करके उनका पर्दाफाश करना होगा | ”उन्होंने कहा कि पिछले 10 वर्षों में सरकार के प्रयासों के कारण, नक्सलवाद भारत में अंतिम सांसें गिन रहा है | जब 21वीं सदी का इतिहास लिखा जाएगा…तो उसमें एक स्वर्णिम अध्याय होगा कि कैसे भारत ने दूसरे और तीसरे दशक में नक्सलवाद जैसी भयानक बीमारी को जड़ से उखाड़कर दिखाया, उखाड़कर के फेंका। जनजातीय समाज में सोची-समझी साजिश के तहत नक्सलवाद के बीज बोये गए, नक्सलवाद की आग भड़काई गई। ये नक्सलवाद, भारत की एकता और अखंडता के लिए बहुत बड़ी चुनौती बन गया था। ‘
प्रधान मंत्री का यह तर्क बहुत महत्वपूर्ण है कि भारत के बढ़ते सामर्थ्य से…भारत में बढ़ते एकता के भाव से कुछ ताकतें, कुछ विकृत विचार, कुछ विकृत मानसिकताएं, कुछ ऐसी ताकतें बहुत परेशान है। भारत के भीतर और भारत के बाहर भी ऐसे लोग भारत में अस्थिरता, भारत में अराजकता फैलाने की कोशिश कर रहे हैं। वो भारत के आर्थिक हितों को चोट पहुंचाने में जुटी है। वो ताकतें चाहती हैं कि दुनियाभर के निवेशकों में गलत संदेश जाए, भारत की नेगेटिव छवि उभरे…ये लोग भारत की सेनाओं तक को टारगेट करने में लगे हैं, मिस इनफॉरमेशन कैंपेन चलाए जा रहे हैं। सेनाओं में अलगाव पैदा करना चाहते हैं…ये लोग भारत में जात-पात के नाम पर विभाजन करने में जुटे हैं। इनके हर प्रयास का एक ही मकसद है- भारत का समाज कमज़ोर हो…भारत की एकता कमजोर हो। ये लोग कभी नहीं चाहते की भारत विकसित हो…क्योंकि कमजोर भारत की राजनीति…गरीब भारत की राजनीति ऐसे लोगों को सूट करती है। 5-5 दशक तक इसी गंदी, घिनौनी राजनीति, देश को दुर्बल करते हुए चलाई गई। इसलिए…ये लोग संविधान और लोकतंत्र का नाम लेते हुए भारत के जन-जन के बीच में भारत को तोड़ने का काम कर रहे हैं। अर्बन नक्सलियों के इस गठजोड़ को, इनके गठजोड़ को हमें पहचानना ही होगा, और मेरे देशवासियों जंगलों में पनपा नक्सलवाद, बम-बंदूक से आदिवासी नौजवानों को गुमराह करने वाला नक्सलवाद जैसे-जैसे समाप्त होता गया…अर्बन नक्सल का नया मॉडल उभरता गया। हमें देश को तोड़ने के सपने देखने वाले, देश को बर्बाद करने के विचार को लेकर के चलने वाले, मुंह पर झूठे नकाब पहने हुए लोगों को पहचानना होगा, उनसे मुकाबला करना ही होगा। ‘
‘अर्बन नक्सल’ शब्द, जो 2018 से प्रचलन में आया है, का पहली बार इस्तेमाल महाराष्ट्र में एल्गार परिषद मामले में उलझे वामपंथियों और अन्य उदारवादियों पर कार्रवाई के मद्देनजर सत्ता-विरोधी प्रदर्शनकारियों और अन्य असंतुष्टों का वर्णन करने के लिए किया गया था। यह 1 जनवरी, 2018 को भीमा कोरेगांव हिंसा से संबंधित दो चल रही जांचों में से एक है। यह पुणे में दर्ज एक प्राथमिकी पर आधारित है, जिसमें आरोप लगाया गया है कि प्रतिबंधित नक्सली समूहों ने भीमा कोरेगांव की लड़ाई की 200वीं वर्षगांठ की पूर्व संध्या पर 31 दिसंबर, 2017 की शाम को एल्गार परिषद का आयोजन किया था। पुलिस का दावा है कि एल्गार परिषद में दिए गए भाषण अगले दिन हिंसा भड़काने के लिए कम से कम आंशिक रूप से जिम्मेदार थे। इसके अलावा, पुणे पुलिस का दावा है कि जांच के दौरान उसे ऐसी सामग्री मिली थी, जिससे प्रतिबंधित नक्सली समूहों के एक बड़े भूमिगत नेटवर्क के संचालन के बारे में सुराग मिले थे।बाद में, अदालतों में, पुणे पुलिस ने दावा किया कि गिरफ्तार कार्यकर्ताओं के प्रतिबंधित सीपीआई (माओवादी) से सक्रिय संबंध थे, जो कथित तौर पर देश को अस्थिर करने और राष्ट्रीय सुरक्षा के खिलाफ काम करने में लगा हुआ था। इसने यहां तक दावा किया था कि गिरफ्तार किए गए लोग प्रधानमंत्री मोदी की हत्या की साजिश से जुड़े थे। दशकों से, साजिश के आरोप का इस्तेमाल कानून प्रवर्तन एजेंसियों द्वारा संदिग्धों की लंबी कानूनी हिरासत के लिए किया जा रहा है – इस मामले में हाई-प्रोफाइल कार्यकर्ता और वकील जिन्हें सबसे पहले ‘शहरी नक्सली’ कहा गया था – जबकि जांचकर्ता आरोपों के समर्थन में महत्वपूर्ण सबूतों को एक साथ जोड़कर अपना मामला आगे बढ़ाते हैं।
देश के दुश्मन सिर्फ आतंकी, जिहादी और बंदूकधारी नक्सली ही नहीं हैं बल्कि इसे अंदर से खोखला करने का सपना देखने वाले अर्बन नक्सल सबसे बड़ा खतरा हैं। सरकार, पुलिस और सेना आतंकियों, नक्सलियों से तो निपट लेती है, लेकिन ‘बुद्धिजीवी’ की खाल में छिपे अर्बन नक्सल देश विरोधियों की नई फौज तैयार कर लेते हैं। इसलिए देश में शांति और प्रगति की नींव मजबूत करनी है तो अर्बन नक्सलों की जमात का समूल नष्ट करना होगा। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने इसी मकसद से कानून लागू करने वाली एजेंसियों से कहा है कि वो ‘शहरी नक्सलियों’ के नाभि नाल पर चोट करें जो उनको देश के दुश्मनों से होने वाली फंडिंग है।
शाह ने कानून प्रवर्तन एजेंसियों को निर्देश दिया कि वो वामपंथी उग्रवाद के समर्थकों ‘अर्बन नक्सल’ की पहचान करके उनकी फंडिंग की गहन छानबीन करें। वामपंथी उग्रवाद के इकोसिस्टम पर अंतिम प्रहार करने और माओवादी फंडिंग को रोकने की रणनीति के तौर पर शाह ने यह कड़ा संदेश दिया है। सरकार का संकल्प है कि मार्च 2026 तक देश को वाम उग्रवाद से मुक्त करा दिया जाए | असल में सरकार के साथ अन्य सामाजिक संगठनों और कानूनविदों , अदालतों तथा शैक्षणिक और मीडिया संस्थानों को इस अभियान में सहयोग देना होगा | आतंकी और दूर दराज इलाकों से महानगरों तक सक्रिय खतरनाक लोगों अपराधियों के सबूत आसानी से नहीं मिलते हैं | फिर कथित मानव अधिकार संगठन और मीडिया का एक वर्ग क़ानूनी शरण लेकर बचाव का प्रयास करता है | अंतर्राष्ट्रीय नेटवर्क को भी नियंत्रित करने के लिए जांच एजेंसियों और कूटनीतिक प्रयासों की आवश्यकता होगी |
आलोक मेहता
आलोक मेहता एक भारतीय पत्रकार, टीवी प्रसारक और लेखक हैं। 2009 में, उन्हें भारत सरकार से पद्म श्री का नागरिक सम्मान मिला। मेहताजी के काम ने हमेशा सामाजिक कल्याण के मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया है।
7 सितम्बर 1952 को मध्यप्रदेश के उज्जैन में जन्में आलोक मेहता का पत्रकारिता में सक्रिय रहने का यह पांचवां दशक है। नई दूनिया, हिंदुस्तान समाचार, साप्ताहिक हिंदुस्तान, दिनमान में राजनितिक संवाददाता के रूप में कार्य करने के बाद वौइस् ऑफ़ जर्मनी, कोलोन में रहे। भारत लौटकर नवभारत टाइम्स, , दैनिक भास्कर, दैनिक हिंदुस्तान, आउटलुक साप्ताहिक व नै दुनिया में संपादक रहे ।
भारत सरकार के राष्ट्रीय एकता परिषद् के सदस्य, एडिटर गिल्ड ऑफ़ इंडिया के पूर्व अध्यक्ष व महासचिव, रेडियो तथा टीवी चैनलों पर नियमित कार्यक्रमों का प्रसारण किया। लगभग 40 देशों की यात्रायें, अनेक प्रधानमंत्रियों, राष्ट्राध्यक्षों व नेताओं से भेंटवार्ताएं की ।
प्रमुख पुस्तकों में"Naman Narmada- Obeisance to Narmada [2], Social Reforms In India , कलम के सेनापति [3], "पत्रकारिता की लक्ष्मण रेखा" (2000), [4] Indian Journalism Keeping it clean [5], सफर सुहाना दुनिया का [6], चिड़िया फिर नहीं चहकी (कहानी संग्रह), Bird did not Sing Yet Again (छोटी कहानियों का संग्रह), भारत के राष्ट्रपति (राजेंद्र प्रसाद से प्रतिभा पाटिल तक), नामी चेहरे यादगार मुलाकातें ( Interviews of Prominent personalities), तब और अब, [7] स्मृतियाँ ही स्मृतियाँ (TRAVELOGUES OF INDIA AND EUROPE), [8]चरित्र और चेहरे, आस्था का आँगन, सिंहासन का न्याय, आधुनिक भारत : परम्परा और भविष्य इनकी बहुचर्चित पुस्तकें हैं | उनके पुरस्कारों में पदम श्री, विक्रम विश्वविद्यालय द्वारा डी.लिट, भारतेन्दु हरिश्चंद्र पुरस्कार, गणेश शंकर विद्यार्थी पुरस्कार, पत्रकारिता भूषण पुरस्कार, हल्दीघाटी सम्मान, राष्ट्रीय सद्भावना पुरस्कार, राष्ट्रीय तुलसी पुरस्कार, इंदिरा प्रियदर्शनी पुरस्कार आदि शामिल हैं ।