शिबू की राह पर तो नहीं हैं चंपई …!

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शिबू की राह पर तो नहीं हैं चंपई …!

राजनीति का जो यह मौसम है, वह बहुत ही कातिलाना है। कब किस प्रदेश में कोई सरकार गिर जाए या मुख्यमंत्री पाला बदलकर भगवा हो जाए, पता ही नहीं चलता। ऐसे में झारखंड ने बहुत हिम्मत जुटाई है। ‘झारखंड टाइगर’ दहाड़ रहा है। हेमंत सोरेन के इस्तीफा के बाद कयास लगाए जा रहे थे कि वह अपनी पत्नी को सीएम बनाएंगे, पर यह कोरी ‘कल्पना’ साबित हुई। कल्पना के सामने ताल ठोकने को हेमंत की भाभी सीता मैदान में आ गई थी। पर इस बीच ‘झारखंड टाइगर’ चंपई की महक से झारखंड सराबोर था। राज्यपाल ने भी बुलावा भेज दिया और सीएम पद की शपथ भी दिला दी चंपई को। पर राजनीति के इस मौसम में अभी भी सब कुछ संभव है। कहीं कोई ‘प्लान बी’ एक्टिवेट न हो रहा हो। और पता चले कि चंपई की तो बस चार दिन की चांदनी थी। चंपई वैसे भी झामुमो के पितृ पुरुष शिबू सोरेन का आशीर्वाद लेकर सीएम पद की शपथ लेने गए थे। और शिबू सोरेन खुद भी पहली बार सीएम की शपथ लेकर बहुमत साबित नहीं कर पाए थे। 2 मार्च 2005 को उन्होंने सीएम पद की शपथ ली थी और 12 मार्च को बहुमत साबित न कर पाने के चलते हट गए थे। तब भाजपा के अर्जुन मुंडा ने दूसरी बार झारखंड के सीएम पद की कमान संभाली थी। खैर चंपई ‘झारखंड टाइगर’ हैं और दहाड़ेंगे भी,  शिकार करेंगे या शिकार होंगे…यह वक्त बताएगा।
आज हम चंपई के बारे में जान लेते हैं। चंपई शब्द का अर्थ होता है चंपा के फूल के रंग का। हलका पीलापन लिए उज्जवल वर्ण जिसे सुंदरी नायिका के गौर वर्ण की उपमा दी जाती है। अब हम चंपई सोरेन के बारे में जानते हैं। चंपई सोरेन झारखंड मुक्ति मोर्चा पार्टी से सरायकेला विधानसभा सीट से विधायक हैं। कैबिनेट मंत्री के रूप वह हेमंत सोरेन सरकार में परिवहन, अनुसूचित जनजाति और अनुसूचित जाति और पिछड़ा वर्ग कल्याण विभाग की जिम्मेदारी संभाल रहे थे। अब चंपई सोरेन ने झारखंड के मुख्यमंत्री के रूप में पद की शपथ ले ली है। हेमंत सोरेन के इस्तीफे के बाद चंपई मुख्यमंत्री बने हैं। चंपई के साथ दो और मंत्रियों ने भी शपथ ली है। चंपई हेमंत सोरेन के करीबी बताए जाते हैं। हेमंत सरकार में चंपई कैबिनेट मंत्री की जिम्मेदारी संभाल रहे थे। सरकार में झामुमो के अलावा कांग्रेस, राजद भी सहयोगी हैं।
शिबू की राह पर तो नहीं हैं चंपई ...!
चंपई ने 1974 में जमशेदपुर स्थित राम कृष्ण मिशन हाई स्कूल से 10वीं की पढ़ाई की थी। जब बिहार से अलग झारखंड राज्य की मांग उठ रही थी उस दौरान चंपई का नाम खूब चर्चा में रहा। शिबू सोरेन के साथ ही चंपई ने भी झारखंड के आंदोलन में भाग लिया। इसके बाद ही लोग उन्हें ‘झारखंड टाइगर’ के नाम से बुलाने लगे। चंपई संयुक्त बिहार में 1991 में उपचुनाव जीतकर पहली बार विधायक बने थे। के.सी.मार्डी के इस्तीफा के बाद चंपई ने बतौर निर्दलीय चुनाव जीता था। फिर 1995 में झामुमो के टिकट पर चुनाव जीतकर विधायक बने थे। वहीं 2005 में चंपई झारखंड विधानसभा के लिए चुने गए थे। इसके बाद 2009 में भी विधायक बने। उन्होंने अर्जुन मुंडा वाली सरकार में सितंबर 2010 से जनवरी 2013 तक विज्ञान और प्रौद्योगिकी, श्रम और आवास मंत्री की जिम्मेदारी संभाली। वहीं जुलाई 2013 से दिसंबर 2014 तक खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति, परिवहन कैबिनेट मंत्री थे। 2014 में फिर झारखंड विधानसभा के लिए चुने गए। वहीं 2019 में भी विधायक बने। इसके साथ ही वह हेमंत सरकार में परिवहन, अनुसूचित जनजाति, अनुसूचित जाति एवं पिछड़ा वर्ग कल्याण मंत्री बन गए। 2019 में चंपई ने अपनी संपत्ति 2.55 करोड़ बताई थी।
जब अवैध जमीन घोटाले में फंसे हेमंत सोरेन ने झारखंड के मुख्यमंत्री के पद से अपना इस्तीफा दिया, तब झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) और कांग्रेस गठबंधन ने सोरेन सरकार में परिवहन मंत्री चंपई सोरेन को विधायक दल का नेता चुना था। चंपई झामुमो के उपाध्यक्ष भी हैं।
चंपई सोरेन सरायकेला-खरसावां जिले स्थित जिलिंगगोड़ा गांव के रहने वाले हैं। उनका पिता का नाम सिमल सोरेन है, जो कि खेती किसानी किया करते थे। चंपई चार बच्चों में बड़े बेटे हैं। 10वीं क्लास तक सरकारी स्कूल से चंपई ने पढ़ाई लिखाई की। इस बीच उनका विवाह कम उम्र में ही मानको से कर दिया गया। शादी के बाद चंपई के 4 बेटे और तीन बेटियां हुईं। इसी दौरान बिहार से अलग झारखंड राज्य की मांग उठने लगी। और शिबू सोरेन के साथ ही चंपई भी झारखंड के आंदोलन में उतर गए।
तो उम्मीद यही कि चंपई मुख्यमंत्री बतौर अपनी पारी खेलने में सफल होंगे।‌ वह अर्जुन मुंडा सरकार में भी मंत्री रहे हैं, तो ऐसा भी नहीं है कि उनके संपर्क भी भगवा से कम हैं। पर आगे देखते हैं कि झारखंड क्या गुल खिलाता है। चंपई भी पहली पारी में शिबू सोरेन की राह पकड़ते हैं या फिर अर्जुन के निशाने पर चंपई की राह रंग बदलती है…।