चंद्रयान-तीन प्रक्षेपण :लोक संस्कृति और आस्था का प्रतीक चंद्रमा
चन्द्रयान-तीन उड़ा। सबकी निगाहें ऊपरउठीं।सभी लोग चैतन्य हो चन्द्रयान विषयक जानकारी केलिए अतिउत्सुक हो उठे।मिशन चंद्रयान एक ऐसी मिसाल है कि सम्पूर्ण भारतीयों ने एकमत से वैज्ञानिकों के अथक परिश्रम की प्रशंसा की, सराहना की।किन्तु वह कौन-सा चन्द्रमा है, जो हमारे लोक के चन्द्रमा से भिन्न है।लोक का चन्द्रमा बच्चों को रिझाता है। लोक का चन्द्रमा आस्था और प्रेम का प्रतीक है।वहाँ किसी को जाना नहीं पड़ता, वह स्वयं आता है।लोक ने चन्द्रमा को ऐसा आत्म सात किया है कि उन्होंने उसे जीवन के विभीन्न आयामों से जोड़ लिया है .
कभी दूज का चन्द्रमा, चन्द्र दर्शन का कहलाता है, तो कभी वह ईद की खुशी का चन्द्रमा, ईद का चाँद कहलाता है। कभी चतुर्थी का वक्र चन्द्र, तो करवा चौथ के चन्द्र दर्शन का चन्द्रमा कहलाता है, तो कभी वह शरद पूनम का सुधा-वृष्टि-कर्ता कहलाता है, तो कभी वह कृष्ण के महारास का रासानन्द कहलाता है, तो कभी वह प्रियतमा संग प्रणय निवेदन का चन्द्र कहलाता है। कभी वह चन्द्रमा चातक का हितैषी है, तो कभी माँ की गोदी के बालकृष्ण का खिलौना। चन्द्रमा कभी तो तन्वंगी रूपसी नवयौवना की उपमा है, तो कभी गले का चन्द्रहार। हमारे लोक का चन्द्रमा कुछ अलग ही है। वह हमारी संस्कृति को आलोकित करता है। वह हमारी कल्पनाओं में उछाल लाता है। जनजीवन पर चन्द्रमा की सोलह कलाओं का अपना एक अलग प्रभाव है, वह कभी ज्योतिष को प्रभावित करता है, तो कभी किन्हीं ग्रहों का मैत्री भाव है, तो किन्ही ग्रहों का द्रोही भाव होता है।
चन्द्रमा हमारी लोक संस्कृति का मूलाधार है, तभी तो लोक ने सबसे पहला परिचय चन्द्रमा का अपने शिशु को माँ की गोदी से ही दिया। चन्द्रमा, चन्दा मामा माँ की ममता, लाड़, स्नेह और वात्सल्य से भी ऊपर माँ और माँ से मामा हो गया। जैसे ही शिशु की निगाह थोड़ी स्थिर हुई, निगाह जमी कि माँ अपने लाड़ले को अपने वक्ष से लगा कर, चन्द्रमा को दिखाते हुए, उससे चन्द्रमा का परिचय कराती है। चन्दा मामा, लोक का चन्द्रमा हमसे दूर नहीं होता है, हमें उस तक जाना नहीं होता। वह तो स्वयं ही हमारे पास आ जाता है। माँ के कहने पर वह उसके शिशु के लिये मामा बनकर उनके पास आ जाता है और माँ बाल-शिशु की उँगली को चन्दा की ओर दिखा कर गीत गाने लगती हैं और शिशु अपने कोमल हाथों से चन्दा मामा को बुलाता है –
आऽ रेऽ चाँदऽ भसी बाँधऽ
दूध घीवऽ का कुण्डा, मामा थारा फुन्दा
भावार्थ: हे चाँद, तू आ जा। हमारे घर भैंस बाँध जा। दूध घी के कुण्ड के कुण्ड भर जा। मेरे कोमल नाजुक शिशु का तू मामा है।
चाँद आता है। माँ अपने बेटे को भोजन कराती है, बेटा नखरे करता है, भोजन नहीं करता, तब वह चन्दा मामा से गीत के माध्यम से अरज करती है, कि हे चन्दा मामा तू आजा। यह गीत है –
चन्दा मामा आइजाऽ
घीवऽ मंऽ रोटी बोळई जाऽ
नानो म्हारो खायऽ नीऽ
नऽ झुम्मक लाड़ी लायऽ नीऽ
चन्दा मामा चन्दी दऽ
खीरऽ खाण्डऽ का जीमण दऽ
ठंडी ठंडी गिरी दऽ
रसऽ भरी नंऽ पूरी दऽ
भावार्थ: हे चन्दा मामा, तू आजा। हमारे लाड़ले सलौने के लिये घी में रोटी डुबो दे। अगर घी में डूबी रोटी यह नन्हा नहीं खायगा, तो इसकी सुन्दर लाड़ी (पत्नी) भी नहीं आयगी। चन्दा मामा तू अपनी चाँदनी हमारे लाड़ले को दे दे। खीर रबड़ी का जेवन दे। ठंडी-ठंडी रस मलाई दे। रसऔर पूरी हमारे लाड़ले को खिला।
अपने लाड़ले को भोजन कराने के लिये माता उसकी कितनी मनुहार करती है। और सहज में चन्दा मामा बालक के पास उपस्थित दिखाई देता है।
कृष्ण भक्त सूर ने भी बालकृष्ण की लीलाओं के वर्णन में कृष्ण के बालपन की ज़िद के पद लिखे हैं। माँ की गोद में मचलते बालकृष्ण चन्द्रमा की माँग करते हैं। माँ थाली में जलभर कर रखती है। उसमें चन्द्रमा की परछाई पड़ती है और उसे पकड़ने के लिए कृष्ण अपना हाथ जल में डालते हैं, तो जल के हिलते ही परछाई जल में विलीन हो जाती है। उनके रुदन का सूर ने इस प्रकार वर्णन किया है- ’मैया चन्द्र खिलौनों लैहो’
लोक में लोकगीतों में इस आशय के अनेक गीत मिलते हैं। हर बोली, हर भाषा में चन्द्र खिलौने के गीत मिलते हैं। निमाड़़ में भी इस आशय का एक बड़ा सुन्दर गीत है-
मैया मखऽ चन्द्र खिलौणों लई दऽ
नई तो मखऽ तारा दई नंऽ समझई दऽ
कदरो नीऽ चईये मखऽ कुण्डळ नीऽ चईये
मैया मखऽ चन्द्रहारऽ घड़ई दऽ
मैया मखऽ चन्द्र खिलौणों लई दऽ
भावार्थ: हे माँ, मुझे चन्द्रमा का ही खिलौना ला दे। अगर नहीं, तो तारे देकर ही मुझे समझा दे। माँ, मुझे न कदरा (कमर बन्द) चाहिये, न कुण्डल चाहिये, तू चन्द्रमा का ही हार गढ़वा दे! माँ, न तो मुझे खेलने के लिए गेंद चाहिये, और न ही फिरकी चाहिए, मुझे तो बहुत चम-चम कर चमकने वाले चन्द्रमा की ही गोटी ला दे। मैया, मुझे तो सिर्फ़ चन्द्रमा का ही खिलौना चाहिए।
बालक और बालरूप में चन्द्रमा ही बच्चों का एक आकर्षण होता है। एक रोता हुआ बच्चा चन्द्रमा को देखकर एकदम चुप हो जाता है।
निमाड़ में विवाह के अवसर पर मण्डप निर्माण एवं मण्डप प्रतिष्ठा के अवसर पर एक बड़ा ही सुन्दर गीत गाया जाता है। इस गीत में पारिवारिक एक-जुटता एवं आपसी स्वभाव के अन्तर का वर्णन मिलता है। संयुक्त परिवारों में भाइयों में, बहुओं में, स्पर्धा होड़ की जो प्रवृत्तियाँ होती हैं, इससे दूर रहने की सीख का यह एक अनुपम उदाहरण है। चाँद और सूरज दो भाई है। प्रस्तुत गीत में इन्हें एक दूसरे से होड़ न करने की शिक्षा दी गई है। यह गीत है –
मण्डुवा रळकऽ रह्यो दस मासऽ
जड़ावऽ काऽ रेऽ माण्डुवा होऽऽ
मण्डुवा, बठी थारा छाया का माँयऽऽ
जड़ावऽ कऽ रेऽ माण्डुवा होऽ
मैं तोहे चन्द्रमाँ वरजियाऽ
भाई तुमऽ सुरिमलऽ सी
भावार्थ: हे मण्डप, तेरी शोभा न्यारी है। दस महीने में तेरा निर्माण किया है। हे मण्डप, मैं तेरी छाया में बैठी हूँ। तेरी छवि अत्यंत शोभनीय है। हे भाई चन्द्रमा, मैं तुझे वर्जना देती हूँ, चेतावनी देती हूँ कि तू अपने बड़े भाई सूर्य की होड़, उसकी बराबरी मत कर। वह तो नौ खण्ड पृथ्वी पर चलता है। चैबीस घण्टा घूमता है; किन्तु तुम तो सिर्फ़ रात में ही चलते हो। अतः तुम उससे होड़ मत करो।
निमाड़ी लोकगीतों में इसी प्रकार सूर्य और चन्द्र को साथ में लेकर कई गीत मिलते हैं। चन्द्रमा और सूर्य को लोक ने अपने से पृथक् नहीं समझा। अगर उसे अलग किया भी है, तो लोक देवता के रूप में, जागृत देवता के रूप में माना है और उसे पूजा है।
पति-पत्नी के प्रेम मिलन में भी चन्द्रमा की बहुत बड़ी भूमिका रही। चन्द्रमा की शीतलता, उसका उज्ज्वल रूप, उसकी निर्मल चाँदनी प्रतीक है निर्मल प्रेम का। विवाह के अवसर पर एक ऐसा ही प्रणय गीत गाया जाता है-
चाँदा थारी चकमकऽ रातऽ जीऽ
कईंऽ चाँदाराउजियाळाचौसर खेल साऽ
तू छेऽ गोरी निधन घरऽ की डीकरी जीऽ
कईं चैसर खेलाँऽ राजकुंवारी सी
एतरो जो सुणतऽ आई गयो रोसणू जीऽ
कई हम खऽ ते कसाऽ वखाणियाऽ
हमारा जो बापऽ घरऽ सौ-सौ चरवा द्रव्यऽ द्रव्यऽ का जीऽ,
कई तुमरा सरीका नीऽ निरवाणिंयाँ
राजा जी खऽ आई गयो रोसणूऽ जीऽ कईंऽ
गोरा सा मुखड़ा पर मारी थापड़ीऽ
जी कईंऽ पतली सी कम्मर पर मारी लाकड़ीऽ
राणी जी खऽ आई गयो रोसणूऽ जीऽ कईंऽ
उठो दासी दिवलो संजोआजी कईंऽ
कागदऽ लिखाऽ निरधनऽ बापऽ खऽ
दीवलो लावतऽ हुई गई वेऽ जीऽ
कईं चाँदा रा उजियाळा कागद लिखियाऽ
चाँदा रा उजियाळा कागद मोकल्या जीऽ
कईऽचाँदाराउजियाळा लश्कर आवियाऽ
भावार्थ: चन्द्रमा तेरी चकमक चाँदनी रात है। चाँद के उजियाले में राणी ने राजा से चौसर खेलने की बात कही। राजा ने विनोद में कहा, कि तुम तो ग़रीब घर की बेटी हो, चौसर तो बराबरी के राजघराने वालों से खेलते हैं। इतना सुनते ही रानीजी को क्रोध आ गया, वे बोलीं, ‘‘मेरे बाप घर तो सौ-सौ चरवे द्रव्य सोने-चाँदी से भरे हैं, तुम्हारे जैसे दरिद्री की बात नहीं करते। राजा को भी क्रोध आ गया। उन्होंने रानी के गोरे गाल पर थप्पड़ जड़ दिया और पतली नाजु़क कमर पर लकड़ी से मारा। रानी को भी रोस भर गया। रानी ने कहा, ‘‘दासी लाओ दीवला जला कर दो, मैं अपने ग़रीब बाप के घर पत्र लिखती हूँ।’’ दीपक लाने में दासी को विलम्ब हुआ, तो राणी ने चाँद के प्रकाश में ही पत्र लिख दिया। चाँद की उजियाली रात में ही रानी का पत्र पिता घर पहुँचा और चाँद के उजियाले में ही रानी के भाई लोग लाव लश्कर और फ़ौज लेकर राजा के राज्य पर चढ़ाई करने लगे।
चन्द्रमा के प्रकाश की महिमा अनन्त है। शरद पूर्णिमा को मधु पूर्णिमा और कोजागरी पूनम भी कहते हैं। ऐसी मान्यता है कि इस रात का चन्द्रमा सबसे अधिक आलोकित होता है। यह पृथ्वी पर अमृत की वर्षा करता हैं। शरद पूर्णिमा के चन्द्रमा से निकली धवल रोशनी में उज्ज्वल किरणों में शरीर को निरोग करने की शक्ति होती है। इसीलिये वैद्य लोग कुछ विशेष औषधि तैयार कर रातभर शरद पूर्णिमा को चन्द्रमा के प्रकाश में रखते हैं, जिससे औषधि की गुणवत्ता कई गुना बढ़ जाती है। चन्द्रमा के प्रकाश में सुई में डोरा डालने से आँखों की रोशनी तेज होती है।
लोक मान्यता है कि शरद पूर्णिमा का चन्द्रमा अपनी किरणों के माध्यम से अमृत की वर्षा करता है। रात्रि बारह बजे चन्द्रमा का पूजन कर, आरती कर, सबको अमृत रूपी दूध पिलाया जाता, रबड़ी और खीर खिलाई जाती है। निमाड़ में आज पूर्णिमा के दिन संत सिंगाजी की कढ़ाई की जाती है। कढ़ाई याने घी का सीरा, हलवा बनाकर चन्द्रमा को भोग लगाकर सबको बाँटा जाता है।
‘साँझा-फूली’ का गीत गाते हुए बालिका गीत गाती है-
चाँद गयो गुजरातऽ हरिणी का बड़ा-बड़ा दांतऽ
संजा तू थारा घर जाऽ कि थारी माँय, मारऽ गऽ कि डाटऽ गऽ
भावार्थ: चाँद गुजरात चला गया। हिरणी के बड़े-बड़े दाँत दिखाई दे रहे हैं। साँजा बहन बड़ी रात हो गई है, तू डर जायगी। देर होने से तेरी माँ तुझे डाँटेगी, मारेगी। अब तू अपने घर जा।
चन्द्रयान मिशन की तैयारी के समय से ही बहुत से वक्तव्य आए और हास-विनोद का दौर चला, कि ‘जब हम चाँद पर रहने चले जायँगे, तो करवा चौथ की पूजा कैसे करेंगे, चाँद पर रहने लगेंगे, तब शरद पूर्णिमा पर दूध कहाँ रखेंगे। आदि आदि। दुनिया में सब कुछ होगा; किन्तु हम भारतीयों की आस्था का चाँद सदा अलग ही रहेगा। जन्म से छठी के दिन शिशु के गले में छठी माता के साथ चाँदी का चन्द्रमा भी पहनायेंगे, नन्हें सुकोमल के मस्तक पर काजल से चन्द्रमा भी बनायँगे। शिशु को हाथ से चन्दा मामा को बुलाना भी सिखायँगे। चन्द्रमा की पूजा भी करते रहेंगे। और दूध भी रखेंगे और चाँद से उसकी चाँदनी भी माँगेंगे। यह हमारी अपनी दुनिया है, यह हमारा अपना संसार है, वो दूसरी दुनिया है, वो दूसरा संसार है। यह हमारी दुनिया चन्दा मामा के साथ की शीतल मधुर रात है और हम उस रात में गरबा भी करेंगे और गीत भी गायँगे।
धार्मिक, पौराणिक एवं लोक कथाओं में भी चन्द्रमा पूजनीय बताया जाता है। प्रत्येक मास कृष्ण पक्ष की चतुर्थी के दिन व्रत रखकर रात्रि में चन्द्रमा के दर्शन और चन्द्रपूजन के पश्चात् ही व्रत खोला जाता है। जब बादल वाली रात होती है, तो ऐसी स्थिति में सिंधूर से दीवाल पर चन्द्राकृति बनाकर उसको पूज लिया जाता है।
पौराणिक कथाओं में तो सूर्य चन्द्र को दोष लगा था – राहु और केतु क्रमशः सूर्य और चन्द्र को ग्रस लेते हैं, सूर्य को अमावस और चन्द्रमा को पूनम के दिन ग्रहण लगता है।चन्द्रमा हमारी लोक संस्कृति और लोक समाज का अभिन्न अंग है। लोक का चन्द्रमा आकाश में नहीं होता है, वह तो लोक के साथ यत्र-तत्र-सर्वत्र रहता है। वह तो लोक के कंठ से स्वर में प्रकट होता है, वह चावड़ी-चौपाल की कथाओं में बसता है। कभी महिलाओं के वरत-वर्तुला की कथाओं में बसता है, वह लोक के हृदय में बसता है। वह लोक की कल्पनाओं में बसता है, उसकी अल्पनाओं में रेखाओं के माध्यम से निखरता है। वह तो शिवशंकर के मस्तक पर अर्द्धचन्द्र के रूप में चमकता है, तो वही चाँद नवजात शिशु के सिर पर काजल के रूप में रुचता है, और वही जल देवी के पूजन के घर-कोट में हल्दी से रचता है। कुँआरी कन्याओं की साँझा-फूली में वह उनके नगर-कोट में गोबर से बनता है, तो घर के कवले पर जिरोती माण्डने में हल्दी से उभरता है। दशहरे के अवसर पर वह घर के आँगन में गेरू के पाट पर खड़ी से दशहरे में शोभित होता है, तो कभी वह नवपरिणिता के विरह में उभर कर आ जाता है। तत्संबंधी एक एग गीत –
अरेऽ चन्दा तू मति डूबी जाजे, पियो म्हारो जायऽ नी परदेश होऽ
चाँद पर जाने की वैज्ञानिकों ने कई तरह से सफल कोशिशें की हैं।जब सब कुछ सत्य है, विज्ञान भी, ज्ञान भी; किन्तु लोक की आस्था सबसे ऊपर है, वह तो चाँद को पूजता था, पूजता हैऔर सदा पूजता ही रहेगा
डॉ सुमन चौरे
लोक संस्कृति विद् और लोक साहित्यकार