बदलता भारत: आजादी के बाद के देश से अलग है मोदी युग का भारत

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बदलता भारत

आजादी के बाद के देश से अलग है मोदी युग का भारत

यूं तो यह एक राजनीतिक नारा है कि मेरा भारत बदल रहा है, लेकिन इस समय की हकीकत भी कुछ ऐसी ही है। इस पर बहस और मत भिन्नता हो सकती है कि ये बदलाव सकारात्मक हैं या नहीं । यह भी कि ये बदलाव भारत को नई और बेहतर पहचान देंगे या पीछे धकेल देंगे। हम मानते और जानते तो हैं कि परिवर्तन प्रकृति का नियम है, किंतु जब खुद की बारी आती है तो तमाम दुराग्रहों के साथ मजबूती से खड़े हो जाते हैं। फिर भी मेरा ऐसा मानना है कि जिस तरह से दुनिया ने 1990 के बाद समूल परिवर्तन का वो दौर देख लिया, जो इस सृष्टि की रचना के बाद से न तो वैसा हुआ था, न ही सोचा गया।

Social Media

मोबाइल,इंटरनेट,वीडियो कॉलिंग,व्हाट्सएप्प चैटिंग,फेसबुक सरीखे अनेक सोशल मीडिया के मंच, मनुष्य और मवेशी की क्लोनिंग करने की कवायद,रोबोट,आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस तक ऐसे बेशुमार आयाम है, जो कल तक हमारी कल्पना से बाहर थे और आज भी कल्पना ही नही की जा सकती कि और क्या-क्या बदलाव आयेंगे।कुछ इसी तरह के बदलाव भारत के राजनीतिक,सामाजिक ढांचे में भी आये हैं,जो विस्मित करता है। साथ ही उम्मीदें भी जगाता है कि यदि बदलावों का यह सिलसिला जारी रहा तो आने वाले 25 बरसों में हम इतना कुछ बदल चुके होंगे कि खुद आईने के सामने खड़े हुए तो एकबारगी पहचान नहीं पाये? मैं बात कर रहा हूं 2014 में सत्ता परिवर्तन के बाद बदले भारत के बारे में।

मनुष्य स्वभावत: भौतिक बदलावों के प्रति आसानी से आकर्षित होता है,जबकि चरित्रगत परिवर्तन के लिये काफी मशक्कत लगती है। भारत में यह बदलाव चरित्रगत हो रहा है। आम भारतीय में इस समय राष्ट्रवाद हिलोरे ले रहा है। हम जानते हैं कि कुछ राजनीतिक और सामाजिक वर्ग को यह रास नहीं आ रहा, लेकिन यह उनकी समस्या है। देश का बहुसंख्यक वर्ग पहले की अपेक्षा ज्यादा सजग,आत्म विश्वास से भरा हुआ और मुझे क्या करना है इस ग्रंथि से उबरता हुआ दिख रहा है।राजनीतिक चेतना तो पहले भी रही है, लेकिन वह सीमित समय के लिये हुआ करती थी। चुनाव खत्म तो राजनीतिक मसले भी खत्म। जो एक बड़ी बात इस समय नजर आ रही है, वह यह कि लोगों को लगने लगा है कि यह उनकी अपनी सरकार है या वे ही सरकार हैं। 2019 के आम चुनाव को लेकर तो तमाम समीक्षकों-विश्लेषकों तक की राय रही कि वह चुनाव तो जनता ने लडा, भाजपा या मोदीजी ने नहीं । उसका सबसे बड़ा प्रमाण चुनाव परिणाम हैं,जो हर किसी के लिये चौंकाने वाले रहे।

BJP's New Ticket Formula

भाजपा के ज्यादातर लोगों के लिये भी। जब सारी अटकलें जैसे-तैसे सरकार बना लेने की लग रही थी और कांग्रेस नीत सरकार के भी गठन की संभावनायें टटोली जा रही थी, तब देश ने भाजपा को 303 सीटें देकर सबके होश उड़ा दिये थे। इसके बाद ऐसा ही कुछ 2021 के उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव को लेकर भी हुआ । जहां पूर्ववर्ती दलों ने सरकार बनाने की तैयारियां कर लीं, वहीं योगी सरकार फिर से ससम्मान लौट आई।

कहने को ये राजनीतिक मसला है, लेकिन मैं इसे देश के चरित्र में आये बदलाव के तौर पर देखता हूं। इससे पहले इंदिरा गांधी और राजीव गांधी को भी जनता ने अपार बहुमत देकर सत्ता में बिठाया था, लेकिन वे विशुद्ध‌ राजनीतिक कारण थे और तात्कालिक प्रतिक्रिया थी।आजादी के बाद हुए सत्तारोहण का जिक्र इसलिये गैर जरूरी है कि तब कोई भी होता तो उसे जनता का बेहतरीन प्रतिसाद मिलता ही। भारत के इतिहास में 2014 का सत्ता हस्तांतरण 1947 से ज्यादा महत्वपूर्ण माना जायेगा। यूं दोनों में तुलना भी ठीक नहीं। दासता से मुक्ति का माहौल और स्वतंत्रता की 67 वर्ष की यात्रा के बीच कोई साम्य नहीं । इसलिये 2014 में हुआ परिवर्तन युगांतरकारी साबित होगा। यह महज देश से कांग्रेस युग की समाप्ति तक सीमित नहीं रहने वाला। कांग्रेस तो फिर भी कभी सत्ता में लौट सकती है, किंतु जो माहौल,चेतना और राष्ट्रवादी सोच विकसित हुआ है,उसका दमन अब टेढ़ी खीर होगा। विश्व इतिहास का यह बिरला उदाहरण ही रहेगा कि कोई मुल्क एक विदेशी आक्रांता के शिंकजे से तो मुक्त हुआ, किंतु उसके पूर्व के आक्रांता वहां तब भी पूजनीय,सम्मानीय बने रहे। उन कारणों,घटनाओं और पात्रों पर सोशल मीडिया में भऱ्रपूर रोशनी डाली जाती रहती है।

विश्व इतिहास में ऐसी मूर्खतापूर्ण मिसाल भी नहीं मिलेगी कि जिस देश को आजादी ही धर्म के आधार पर बंटवारे के साथ मिली हो, उस बंटवारे के सात दशक बाद भी धार्मिक समस्या सर्वाधिक विकराल रूप में बरकरार है। याने जिन मुगल आक्रमणकारियों ने 300 बरस तक जिस देश की अवाम पर बेतरह जुल्म ढाये हो और जिन्होंने किसी दूसरे आक्रमणकारी के सामने घुटने टेक दिये हों,उससे मुक्ति के बावजूद मूल देश और उसकी जनता अभी तक मुगलों का महिमामंडन बरदाश्त कर रही है। वे मुगल पाठ्य पुस्तकों में पूजनीय,वंदनीय हैं। उनके स्मारक,मजारों पर मेले लग रहे हैं। उनके नाम पर सडकें,भवन,गांव,शहर बसे हुए हैं। इतना ही नहीं तो हमारे जिन शूरवीरों ने उन्हीं मुगलों से लोहा लिया, उनके जुल्म सहे और दासता अस्वीकार कर शहादत चुनी, वे तो कहीं गुम कर दिये गये और आक्रांताओं को महान घोषित कर दिया गया।

ऐसे दुर्भाग्यपूर्ण और अफसोसजनक हालात में पैदा,पली-बढ़ी हुई तीन पीढियों के चेतन,अवचेतन में भी हमारे युग पुरुषों,बलिदानियों की छवि अंकित ही नहीं हो पाई। इस मानसिक गुलामी की जंजीरों से मुक्ति का बोध 2014 में हुआ, जब राष्ट्रवाद और आत्म सम्मान को पहचानने की समझ विकसित करने का मौका मिला। सचमुच भारत बदल रहा है।

(क्रमश:)

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रमण रावल

 

संपादक - वीकेंड पोस्ट

स्थानीय संपादक - पीपुल्स समाचार,इंदौर                               

संपादक - चौथासंसार, इंदौर

प्रधान संपादक - भास्कर टीवी(बीटीवी), इंदौर

शहर संपादक - नईदुनिया, इंदौर

समाचार संपादक - दैनिक भास्कर, इंदौर

कार्यकारी संपादक  - चौथा संसार, इंदौर

उप संपादक - नवभारत, इंदौर

साहित्य संपादक - चौथासंसार, इंदौर                                                             

समाचार संपादक - प्रभातकिरण, इंदौर      

                                                 

1979 से 1981 तक साप्ताहिक अखबार युग प्रभात,स्पूतनिक और दैनिक अखबार इंदौर समाचार में उप संपादक और नगर प्रतिनिधि के दायित्व का निर्वाह किया ।

शिक्षा - वाणिज्य स्नातक (1976), विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन

उल्लेखनीय-

० 1990 में  दैनिक नवभारत के लिये इंदौर के 50 से अधिक उद्योगपतियों , कारोबारियों से साक्षात्कार लेकर उनके उत्थान की दास्तान का प्रकाशन । इंदौर के इतिहास में पहली बार कॉर्पोरेट प्रोफाइल दिया गया।

० अनेक विख्यात हस्तियों का साक्षात्कार-बाबा आमटे,अटल बिहारी वाजपेयी,चंद्रशेखर,चौधरी चरणसिंह,संत लोंगोवाल,हरिवंश राय बच्चन,गुलाम अली,श्रीराम लागू,सदाशिवराव अमरापुरकर,सुनील दत्त,जगदगुरु शंकाराचार्य,दिग्विजयसिंह,कैलाश जोशी,वीरेंद्र कुमार सखलेचा,सुब्रमण्यम स्वामी, लोकमान्य टिळक के प्रपोत्र दीपक टिळक।

० 1984 के आम चुनाव का कवरेज करने उ.प्र. का दौरा,जहां अमेठी,रायबरेली,इलाहाबाद के राजनीतिक समीकरण का जायजा लिया।

० अमिताभ बच्चन से साक्षात्कार, 1985।

० 2011 से नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने की संभावना वाले अनेक लेखों का विभिन्न अखबारों में प्रकाशन, जिसके संकलन की किताब मोदी युग का विमोचन जुलाई 2014 में किया गया। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी को भी किताब भेंट की गयी। 2019 में केंद्र में भाजपा की सरकार बनने के एक माह के भीतर किताब युग-युग मोदी का प्रकाशन 23 जून 2019 को।

सम्मान- मध्यप्रदेश शासन के जनसंपर्क विभाग द्वारा स्थापित राहुल बारपुते आंचलिक पत्रकारिता सम्मान-2016 से सम्मानित।

विशेष-  भारत सरकार के विदेश मंत्रालय द्वारा 18 से 20 अगस्त तक मॉरीशस में आयोजित 11वें विश्व हिंदी सम्मेलन में सरकारी प्रतिनिधिमंडल में बतौर सदस्य शरीक।

मनोनयन- म.प्र. शासन के जनसंपर्क विभाग की राज्य स्तरीय पत्रकार अधिमान्यता समिति के दो बार सदस्य मनोनीत।

किताबें-इंदौर के सितारे(2014),इंदौर के सितारे भाग-2(2015),इंदौर के सितारे भाग 3(2018), मोदी युग(2014), अंगदान(2016) , युग-युग मोदी(2019) सहित 8 किताबें प्रकाशित ।

भाषा-हिंदी,मराठी,गुजराती,सामान्य अंग्रेजी।

रुचि-मानवीय,सामाजिक,राजनीतिक मुद्दों पर लेखन,साक्षात्कार ।

संप्रति- 2014 से बतौर स्वतंत्र पत्रकार भास्कर, नईदुनिया,प्रभातकिरण,अग्निबाण, चौथा संसार,दबंग दुनिया,पीपुल्स समाचार,आचरण , लोकमत समाचार , राज एक्सप्रेस, वेबदुनिया , मीडियावाला डॉट इन  आदि में लेखन।