Chhattisgarh’s Expert Woman in Postmortem – Santoshi Durga: 800 शवों का पोस्टमार्टम करने वाली देश की पहली नान डॉक्टर महिला
अनिल तंवर की खास रिपोर्ट
यथा नाम तथा गुण को सार्थक करती छत्तीसगढ़ की संतोषी दुर्गा – जिनमें संतोष और शौर्य का अद्भुत समागम देखा जा सकता है। दुर्गा के समान अपने कार्य के प्रति कठोर और संतुष्ट अर्थात संतोषी .
रायपुर में कार्यरत वरिष्ठ पत्रकार और इंदौर निवासी प्रियंका कौशल ने हाल में ही दुर्गा सन्तोषी से मुलाक़ात की . वे बताती है कि संतोषी दुर्गा, जिसके नाम में ही संतोष और शौर्य समाया हुआ है . बस्तर जिले में नरहरपुर ब्लॉक में रहने वाली यह महिला अब तक 800 शवों का पोस्टमार्टम कर चुकी हैं .
बस्तर के एक जिले कांकेर की रहने वाली संतोषी दुर्गा छत्तीसगढ़ की अकेली महिला हैं, जो शवों की चीरफाड़ यानी पोस्टमार्टम करती हैं। (सम्भवतः देश में भी वो अकेली ही होगी) . इसमें भी ख़ास बात यह है कि वे बगैर किसी नशे के ये काम करती हैं . अमूमन पुरुषों के वर्चस्व वाले इस कार्य को करने वाले लोग शराब या अन्य नशा लेने के बाद ही कर पाते हैं क्योंकि कई बार सड़ी – गली , पुरानी, बदबूदार लाश पोस्टमार्टम के लिए लाई जाती है और कोई भी व्यक्ति या डाक्टर भी ऐसी लाश के पास जाने से झिझकते है . लेकिन यह महिला अपने कर्तव्य के प्रति पूर्ण रूप से समर्पित होकर कार्य करती है.
दरअसल संतोषी के पिता भी शराब पीकर ही शवों की चीरफाड़ का कार्य किया करते थे . जब संतोषी ने उन्हें शराब छोड़ने के लिए कहा तो उन्होंने जवाब दिया कि वे बगैर नशा किए पोस्टमार्टम जैसा अमानवीय कार्य नहीं कर पाएंगे . तब संतोषी ने कहा कि वह यदि बगैर शराब पिए यह कार्य करके दिखाएंगी तो उन्हें शराब छोड़नी होगी . बस यहीं से संतोषी का सफर शुरु हुआ .
अपनी कहानी बताते हुए संतोषी बड़े गर्व से बताती है कि — “मेरे पिता इसी काम के लिए शासकीय चिकित्सालय नरहरपुर में नौकरी करते थे . लेकिन जब भी पोस्टमॉर्टम के लिए लाश की चीर – फाड़ कर घर पर आते थे तब वह शराब के नशे में बेहोश से हो जाते थे. समझाने पर वह जिद करते थे कि लाश की चीर – फाड़ होशो-हवास में हो ही नहीं सकता।” पिता की इस लत से परेशान संतोषी ने एक दिन शर्त लगा ली कि बिना नशा किए वो पोस्टमॉर्टम कर सकती हैं . वो कहती हैं, “मैंने पहला पोस्टमॉर्टम 2004 में किशनपुरी गाँव से पांच दिन पुरानी कब्र खोद कर निकाली गई क्षत-विक्षित लाश का किया था।”
शराब के प्रति नफरत और पिता से लगाई शर्त की वजह से लाश का सिर फोड़ते हुए ना तो उसके हाथ कांपे और ना ही बदबू की वजह से वह पीछे हटी . बाप ने बेटी के आगे झुककर शराब तो बंद कर दी पर कुछ ही दिनों के बाद दुनिया से चले गए और यह काम संतोषी लिए जीवन-यापन की मजबूरी बन गया . सन्तोषी 14 वर्षों से नरहरपुर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में पोस्टमॉर्टम का काम कर रही हैं . पिता की मौत के बाद संतोषी पर अपनी 6 बहनों की जिम्मेदारी भी आ गई . उसके भी दो बच्चे हैं . यही नहीं नरहरपुर तहसील के अमोड़ा और दुधावा के अस्पताल में भी पोस्टमॉर्टम के लिए स्वीपर नहीं होने के कारण इस कार्य के लिए उसे ही बुलाया जाता है. संतोषी कहती हैं, “नरहरपुर चिकित्सालय में जीवन दीप योजना के तहत 26 सौ रुपए वेतन पर उसे संविदा नियुक्ति दी गई .
छह बहनों में सबसे बड़ी संतोषी दुर्गा उन तमाम लोगों के लिए मिसाल हैं, जो विपरीत परिस्थितियों में हार मान लेते हैं. कभी लोग उनपर तंज किया करते थे, अब वही लोग उनकी तारीफ करते थकते नहीं है.