
||युद्ध में अनाथ बच्चे ||
उनकी हँसी
घास के एक तिनके की नोक पर बसी
ओस की अस्थायी बूंद में झिलमिलाती होगी
उनके रुदन की आवाज़
शाम ढले गुम हुए पशुओं को ढूँढते
चरवाहे की कातर आवाज़ से कम नहीं होगी

उनके आँसू
चाय के गिलास पर जमी भाफ जैसे
गालों पर ठहर गए होंगे
युद्ध की विभीषिका में
सब कुछ समाप्त हो जाने की ख़बर में
उनके बच जाने की कोई पंक्ति
शामिल नहीं होगी
कुछ नहीं लौटेगा अब
न हँसी न मुस्कान न जीवन
बस दुःख लौटेगा बार बार ।

शरद कोकास





