

‘इंसाफ़ की डगर पे, बच्चो दिखाओ चल के, ये देश है तुम्हारा’ …
कौशल किशोर चतुर्वेदी
आज अगर देश को जरूरत है तो इन्हीं भावों की और इन्हीं शब्दों की। क्योंकि बच्चे देश का भविष्य होते हैं और अगर देश का भविष्य ईमानदारी से अपना कर्तव्य का निर्वहन करता है तो आदर्श राष्ट्र की कल्पना की जा सकती है। 1961 में बनी फिल्म गंगा-जमुना के इस गीत को हेमंत कुमार ने अपनी आवाज दी थी। पर बड़े दुख की बात है कि 1961 से 2025 तक 66 साल के लंबे अरसे में भारत के बच्चों का इंसाफ जैसे शब्दों से ही भरोसा उठने लगा है। और जिन बच्चों की वजह से यह भरोसा उठ रहा है वह पीढ़ी 1961 में बच्चों के रूप में ही बड़ी हो रही थी। अगर यह पीढ़ी ईमानदारी से अपने कर्तव्यों का निर्वहन करती तो शायद इंसाफ कायम रहता।
पहले गायक हेमंत कुमार की आवाज और संगीतकार नौशाद अली द्वारा संगीतबद्ध किए गीतकार शकील बदायुनी के इस गीत पर नजर डालते हैं।
इन्साफ़ की डगर पे, बच्चों दिखाओ चल के ये देश है तुम्हारा, नेता तुम्हीं हो कल के
दुनिया के रंज सहना और कुछ न मुँह से कहना सच्चाइयों के बल पे आगे को बढ़ते रहना
रख दोगे एक दिन तुम संसार को बदल के
इन्साफ़ की …
अपने हों या पराए सबके लिये हो न्याय देखो कदम तुम्हारा हरगिज़ न डगमगाए रस्ते बड़े कठिन हैं चलना सम्भल-सम्भल के
इन्साफ़ की …
इन्सानियत के सर पर इज़्ज़त का ताज रखना
तन मन भी भेंट देकर भारत की लाज रखना
जीवन नया मिलेगा अंतिम चिता में जल के,
इन्साफ़ की …
इस गीत में वह सभी भाव भरे हुए थे जिसमें भविष्य के भारत का नेतृत्व करने वाले बच्चों से वही अपेक्षा की गई थी जिसका भय गीतकार के मन में बेचैनी ला रहा था। पर गीत गीत बनकर रह गया और बच्चों ने जिस राह पर कदम बढ़ाए उसमें भारत का नेतृत्व करने वाले उस समय के बच्चे ही पूरी तरह से उम्मीदों पर खड़े नहीं उतर पाए और देश दूसरी राह पर चला गया। आज अगर एक न्यायाधीश के घर में काले धन से भरा कमरा आग पकड़ता है तो बोरियों में भरे नोट जलकर हकीकत बयां कर देते हैं। नए-नए नौकरशाह अगर भ्रष्टाचार के मामले में एक्सपोज होते हैं तो भारत की दुर्दशा सामने आ जाती है। और इन सबकी जड़ें कहीं ना कहीं भारत के नेतृत्व में समय नजर आती हैं। खैर आज हमारा उद्देश्य नसीहतों का अंबार लगाना नहीं है। आज तो हम हेमंत कुमार को याद कर रहे हैं जिनका आज जन्मदिन है। एक संगीतकार के रूप में हेमन्त कुमार ने बहुत नाम कमाया। उनके संगीत से सजे गीतों की सूची बहुत लम्बी है। इनमें शामिल गीतों में ‘याद किया दिल ने कहाँ हो तुम’ – पतिता (1953), ‘जाग दर्द इश्क जाग’ – अनारकली (1953), ‘मन डोले मेरा तन डोले’ – नागिन (1954), ‘नैन से नैन मिले’ – झनक-झनक पायल बाजे (1955), ‘जाने वो कैसे लोग थे, जिनके प्यार को प्यार मिले – प्यासा (1957), ‘है अपना दिल तो आवारा, ना जाने किस पे आयेगा’ – सोलहवां साल (1958), ‘इंसाफ़ की डगर पे, बच्चो दिखाओ चल के, ये देश है तुम्हारा’ – गंगा जमुना (1961), ‘न जाओं सैंया छुड़ा के बहिंयाँ’ – साहिब बीबी और ग़ुलाम (1962), ‘बेकरार करके हमें यूँ न जाइए’ – कहीं दीप जले कहीं दिल, ‘ज़रा नज़रों से कह दो जी निशाना चूक न जाये’ बीस साल बाद (1962), ‘ना तुम हमें जानो’ – बात एक रात की (1962), ‘ये नयन डरे-डरे’ – कोहरा (1964), ‘दिल की सुनो दुनिया वालों’ – अनुपमा (1966), ‘मुझे पुकार लो तुम्हारा इंतज़ार है’ – खामोशी आदि प्रमुख हैं। तो हेमंत कुमार को आज उनके गीतों को सुनकर हम सच्चे दिल से याद कर सकते हैं। यह गीत कल भी प्रासंगिक थे, आज भी प्रासंगिक हैं और कल भी प्रासंगिक रहेंगे। भले ही नई पीढ़ी इनसे मुंह मोड़े लेकिन उनके जीवन में भी यह गीत बहार बनकर उमड़ते घुमड़ते नजर आते हैं।
पचास के दशक में हेमन्त कुमार ने बंगला और हिन्दी फ़िल्मों में संगीत निर्देशन के साथ-साथ गाने भी गाए। फ़िल्म ‘आनंदमठ’ की सफलता के बाद हेमन्त कुमार बतौर संगीतकार फ़िल्म इंडस्ट्री में स्थापित हो गए। ‘आनंदमठ’ में लता मंगेशकर की आवाज़ में गाया हुआ ‘वंदे मातरम्’ आज भी श्रोताओं को जोश से भर देता है। 1959 में हेमन्त कुमार ने फ़िल्म निर्माण के क्षेत्र में भी क़दम रखा और ‘हेमन्ता बेला प्रोडक्शन’ के नाम से फ़िल्म कंपनी की स्थापना की। इस बैनर के तले मृणाल सेन के निर्देशन में एक बंगला फ़िल्म ‘नील आकाशेर नीचे’ का निर्माण किया गया। इस फ़िल्म को ‘प्रेसिडेंट गोल्ड मेडल’ मिला। इसके बाद हेमन्त कुमार ने अपने बैनर तले ‘बीस साल बाद’ (1962), ‘कोहरा’ (1964), ‘बीबी और मकान’ (1966), ‘फ़रार’ (1965), ‘राहगीर’ (1969) और ‘खामोशी’ (1969) जैसी कई हिन्दी फ़िल्मों का भी निर्माण किया। सत्तर के दशक मे हेमन्त कुमार ने हिन्दी फ़िल्मों के लिए काम करना कुछ कम कर दिया। हालाँकि बंगला फ़िल्मों के लिए वे काम करते रहे। 1971 में हेमन्त कुमार ने एक बंगला फ़िल्म ‘आनंदिता’ का निर्देशन भी किया था, लेकिन यह फ़िल्म बॉक्स ऑफ़िस असफल रही।
तो ऐसे हम सबके हेमन्त कुमार मुखोपाध्याय (जन्म- 16 जून,1920, वाराणसी, उत्तर प्रदेश; मृत्यु- 26 सितम्बर,1989, पश्चिम बंगाल) हिन्दी फ़िल्म जगत् के महान् पार्श्वगायक और संगीतकार थे। वे ‘हेमन्त दा’ के नाम से प्रसिद्ध हुए थे, जिनके गीत आज भी श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर देते हैं। बांग्ला और हिन्दी फ़िल्म संगीत की जानी-मानी शख्सियत हेमन्त कुमार न सिर्फ़ मौसिकी के माहिर थे, बल्कि बेहतरीन फ़िल्म निर्माता भी थे। बांग्ला भाषा के अनेक ग़ैर-फ़िल्मी एल्बम को सुर देने वाले हेमन्त कुमार ने कई मशहूर हिन्दी गीतों को भी अपनी मधुर आवाज़ दी थी। इसके साथ ही उन्होंने एक ऐसी फ़िल्म का निर्माण भी किया, जिसे ‘राष्ट्रपति स्वर्ण पदक’ से नवाज़ा। फ़िल्म समीक्षक ज्योति वेंकटेश के मुताबिक़ हेमन्त कुमार अपने दौर के सबसे प्रतिभाशाली फ़नकारों में से थे। संगीत की नब्ज़ का मिज़ाज समझने में दक्ष इस कलाकार को ‘रवींद्र संगीत’ का विशेषज्ञ भी माना जाता था। आइए आज हेमंत दा के गीतों को गुनगुनाते हुए दिन बिताते हैं। और उम्मीद करते हैं कि उनकी आवाज में गाए गए गीत की उम्मीदों का भारत आकार लेकर रहेगा…।