Chironji Dry Fruit: जहाँ मिल जाये चार वहीं रात हो गुलजार

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Chironji Dry Fruit: जहाँ मिल जाये चार वहीं रात हो गुलजार

यह पंक्ति शायद इसीलिये बनी है कि चार के फलों और बीजों की चाहत रखने वाले इसकी ओर खिंचे चले आते हैं।
जहाँ चार-यार मिल जाये वहीं रात हो गुलजार यह पंक्ति शायद इसीलिये बनी है कि चार के फलों और बीजों की चाहत रखने वाले इसकी ओर खिंचे चले आते हैं।
क्योंकि ये जब जब चार के पास पहुँचते हैं तो दिन हो या रातें, गुलजार तो होनी ही है। इस चार को चार नामो से जाना जाता है, एक तो हुआ अचार, दूसरा चार, तीसरा चारोली और चौथा चिरौंजी। अरे इससे भी कमाल की बात तो यह है कि पेड़ों के भागों के हिसाब से भी इसके 4 ही नाम हैं- इसके फल पिंडी कहलाते हैं, जिसे स्वादिष्ट जंगली फल की तरह खाया जाता है। बीज की गिरी यानि बीजी को चिरौंजी कहते है, यह ड्राई फ्रूट की रानी है। जबकि इसका पेड़ अचार या चार कहलाता है। इसकी सूखी गुठलियाँ जो जंगलों से कलेक्ट की जाती हैं, इन्हें चारोली कहते हैं।
उलझ गये न चार जे गणित में, तो चलिये अब इस माथापच्ची वाली गणित से बाहर निकलते हैं और कुछ मजेदार सा स्वादिष्ट सा जानते हैं।
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चिरौंजी, सतपुड़ा की गोद मे बसे हमारे छिंदवाड़ा जिले के पातालकोट सहित अन्य सभी जंगली भागो में पाया जाने वाला स्वादिष्ट फल है, जो गर्मियो के मौसम में हम पर मेहरबान होता है, और हम प्रत्योक वर्ष इसका स्वाद उठा पाते हैं। इस समय तो इसके पेड़ स्वादिष्ट खट्टे मीठे फलों से लदे हुये हैं। दुनिया मे बहुत कम लोग ऐसे हैं जो इसके सभी रूपों से परिचित हैं, क्योंकि ज्यादातर लोग तो केवल इसे ड्राय फ्रूट के रूप में ही जानते हैं, लेकिन जितना स्वादिष्ट यह ड्राई फ्रूट के रूप में उससे कहीं अधिक यह फल के रुप मे है। सूखे मेवे के मामले में तो यह सूखे मेवों की रानी है। शायद ही कोई सूखा मेवा हो जो कीमत में इसके आसपास भटके। जिसे यह मिल जाये वयः भाग्यशाली है समझो। अगर इसकी गिरी सूखे मेवों की रानी है तो फल भी कम नही है। यह फलों की दुनिया का बेताज बादशाह है, क्योंकि फलों के राजा का ताज आम के नाम है, इसीलिये यह बेताज होकर भी जंगलों में अपनी हुकूमत फैलाये हुये है।
चिरौंजी के पत्ते छोटे-छोटे अंडाकार और खुरदरे होते हैं। यह भी बता दें, चिरौंजी की गुठलियां अलग से संग्रहित की जाती हैं। ये गुठलियां कई दिनों तक स्टोर की जा सकती हैं और बाद में चिरौंजी निकालकर खाई जा सकती हैं। चिरौंजी को चावल, हलवा, मिठाई और लड्डू जैसे पकवानों में डाला जाता है, जिससे पकवानों का स्वाद दोगुना बढ़ जाता है।
ऐसा नही है कि यह सिर्फ फल और मेवे के रूप में पसंद किया जाता है, बल्कि इसकी गिरी से निकला तेल वहुत ही औषधीय महत्व का होता है। इससे उच्च गुणवत्ता वाली कॉस्मेटिक क्रीम बनाई जाती है। इसका तेल गर्म स्वभाव का होता है व बहुत अच्छी कफ निवारक औषधि है। इसके तेल या बीजों के गूदे को हल्दी और दूध के साथ चेहरे और लेपन करने से चेहरे में निखार आता है,व झाइयाँ तथा दाग धब्बे दूर हो जाते हैं। पौधे की गोंद एक बढ़िया दर्द निवारक औषधि है जो गर्मियों में होने वाले तलवों व पिंडलियों के दर्द को दूर करती है। इसे सुबह सुबह बकरी के दूध में घिसकर चटाया जाता है।
इसके पेड़ छोटे या सामान्य आकार के होते है जिनका जीवनकाल कुछ वर्षों का होता है। इसकी लकड़ी काफी कमजोर होती है जो फलों के भार से ही अक्सर टूट जाया करती है। सुबह सुबह गाय के दूध में डालकर इसकी गिरी का सेवन करने से याददाश्त में वृध्दि होती है।
इसके बीज की गिरी में प्राकृतिक शर्करा, विटामिन्स और महत्वपूर्ण द्वितीयक उत्पाद पाये जाते हैं। जिसके कारण इसमें ज्वरनाशक व एन्टीबैक्टीरिअल गुण पाए जाते हैं। कई तरह के सूक्ष्म एवं वृहद पोषक तत्व जैसे आयरन, कैल्शियम, मैग्नीशियम, पोटेशियम, सल्फर, आदि भी इसमें अच्छी खासी मात्रा में पाए जाते हैं। कुल मिलाकर इसे अगर जंगलों की दुनिया का पॉकेट साइज पावर हाउस कहूँ तो भी कोई अतिशियोक्ति नही होगी।
डॉ. विकास शर्मा
वनस्पति शास्त्र विभाग
शासकीय महाविद्यालय चौरई
जिला छिन्दवाड़ा (म.प्र.)