Climate Guilt: बड़ों में यह जलवायु-अपराध बोध क्यों नहीं है?

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Climate Guilt

Climate Guilt: बड़ों में यह जलवायु-अपराध बोध क्यों नहीं है?

 मनोज श्रीवास्तव
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सुबह हम लोग घूमने जाते हैं। प्राय: वहाँ हम कुछ ऐसे अधेड़ या वरिष्ठ लोगों को देखते हैं जो अपने साथ कुत्ता भी ले जाते हैं और रास्ते में उसे न केवल खिलाते जाते हैं बल्कि अन्य कुत्तों को भी खिलाते हैं। बाकी चलते चलते कुत्ते जो करते हैं वो करते हैं। उनके दिये बिस्किट आदि की पन्नियाँ भी आराम से राह में बिखरती रहती हैं पर वे अपनी धुन में मस्त चलते जाते हैं।
उधर अक्सर वहाँ युवाओं की ऐसी टोली भी प्राय: दिखती हैं जो वहाँ आकर बिखरी हुई तमाम पोलीथिन, पन्नी और अन्य कचरे को साफ़ करती हैं।
यह जेन-जी है। पर्यावरण के प्रति चिन्ताशील ही नहीं सक्रिय भी।
कभी कभी मुझे यह बात बहुत प्रतीकात्मक लगती है। हर युग में पुरानी पीढ़ी का छोड़ा हुआ कचरा नई पीढ़ी ही साफ करती है। पर पुरानी पीढ़ी को क्या यह भान है कि अपने पीछे नई पीढ़ी को क्या देके जाने का दायित्व उन पर है!
समाजशास्त्री कार्ल मैनहाइम (Karl Mannheim) की ‘जेनरेशन थ्योरी’ के अनुसार, प्रत्येक पीढ़ी अपने सामाजिक-ऐतिहासिक संदर्भ से प्रभावित होती है। पुरानी पीढ़ी, जो औद्योगिक क्रांति या आर्थिक विकास के युग में बड़ी हुई, पर्यावरण को संसाधन के रूप में देखती है, जबकि डिजिटल युग और जलवायु संकट में पली-बढ़ी जेन-Z पर्यावरण संरक्षण की आवश्यकता मानती है।
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वे अधेड़ या वरिष्ठ लोग उस सड़क को अपनी मिल्कियत समझते हैं। वे युवा लड़के लड़कियाँ स्वयं को उस सड़क का ट्रस्टी समझते हैं।
पीढ़ियों के बीच यह संज्ञानात्मक स्वर-असंगति ( cognitive dissonance) क्या बताती है? वे बच्चे इन अंकलों को कुछ नहीं कहते। चुपचाप अपना काम करते हैं और चले जाते हैं।
और यह बहुत माहों से देख रहा हूँ। उन बच्चों को वे भी देखते होंगे। पर उनके व्यवहार में अंतर नहीं आता। न इन युवाओं के संकल्प और उत्साह में कोई फर्क आता है।
क्या यह इसलिए है कि गंदगी अकेले की जा रही है और स्वच्छता कर्म सामूहिक है?
इस नई पीढ़ी ने प्रधानमंत्री के स्वच्छता-संकल्प को ज्यादा भीतर तक महसूस किया है।
पर उनसे बड़ों में यह जलवायु-अपराध बोध ( क्लाइमेट गिल्ट) क्यों नहीं है?
मैं कोई सामान्यीकरण नहीं कर रहा। न सब बड़े गंदगी कर रहे न सब युवा वहाँ सफ़ाई कर रहे। कुछ तो वहाँ युवा जोड़े भी हैं जिनका मिलने का स्थल वह है। सबकी अपनी अपनी प्राथमिकताएँ हैं।
पर भारत की यह नई पीढ़ी ग्रेट ब्रिटेन के उन प्रवासी युवाओं से कितनी भिन्न है जो सड़क पर बोरी भर भर लाया कचरा जानबूझकर फैलाते हैं।
मनोज श्रीवास्तव
सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी,  एमपी के राज्य निर्वाचन आयुक्त